Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
चर्चा में.... | मोटहन की खेती पर नकदी फसलों का ग्रहण
मोटहन की खेती पर नकदी फसलों का ग्रहण

मोटहन की खेती पर नकदी फसलों का ग्रहण

Share this article Share this article
published Published on Feb 7, 2014   modified Modified on Feb 7, 2014
पोषक-तत्वों से भरपूर और वर्षा-सिंचित इलाकों में ऊपज के लिए अनुकूल रागी, ज्वार, बाजरा, सांवा, कोदो, चीना और कुटकी जैसे मोटहन के उत्पादन में भारत का स्थान दुनिया में अव्वल है लेकिन इन फसलों का उत्पादन-क्षेत्र 1961 से 2012 के बीच घटता गया है।

 
हाल ही में जारी नेशनल अकेडमी ऑव एग्रीकल्चरल साइसेंज के नीति-पत्र रोल ऑव मिलेटस् इन न्यूट्रिशनल सिक्युरिटी ऑव इंडिया के अनुसार साल 1955-56 में मोटहन की खेती का रकबा 36.34 मिलियन हेक्टेयर था जो साल 2011-12 में घटकर 18.6 मिलियन हेक्टेयर रह गया है।


मोटहन की खेती के रकबे में कमी इस प्रजाति की हर प्रमुख फसल में हुई है। मिसाल के लिए ज्वार की खेती का रकबा साल 1955-56 में 17.68 मिलियन हेक्टेयर था जो साल 2005-06 में घटकर 8.68 मिलियन हेक्टेयर और साल 2011-12 में 6.25 मिलियन हेक्टेयर रह गया।(वर्षवार और फसलवार मोटहन की खेती के रकबे में आई कमी की जानकारी के लिए देखें नीचे दी गई लिंक)मोटहन की खेती के रकबे का 50 फीसदी हिस्सा अब सोयाबीन, कपास, गन्ना तथा सूर्यमुखी जैसे नकदी फसलों की खेती में इस्तेमाल हो रहा है।


बहरहाल, मोटहन की खेती के घटते हुए रकबे के बीच एक बात संतोष देने वाली साबित हो सकती है। नीति-पत्र के अनुसार कुछ प्रजातियों की उत्पादकता इतनी अधिक है कि रकबे में कमी आने के बावजूद मोटहन का कुल उत्पादन पहले की तुलना में घटा नहीं बल्कि बढ़ा है। मिसाल के लिए साल 1955-56 में मोटहन का कुल उत्पादन 14.07 मिलियन टन(387 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) हुआ था जो साल 2011-12 में बढ़कर 18.63 मिलियन टन(1096 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया).


नीतिपत्र के अनुसार, मोटहन की खेती के रकबे में आई कमी के लिए कई बातें जिम्मेवार हैं। मिसाल के लिए अन्य फसलों की तुलना में मोटहन की खेती से आमदमी कम होती है, गेहूं और चावल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए अनुदानित मूल्य पर देने के कारण इन फसलों की ऊपज की खऱीद फलस्वरुप उत्पादन को बढ़ावा मिलता है। मोटहन का प्रसंस्करण भी अन्य फसलों की तुलना में कठिन है। साथ ही, मोटहन के इस्तेमाल के साथ कुछ सामाजिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं जिसके कारण मध्यवर्गीय भोजन-व्यवहार में इसके इस्तेमाल को ओछा माना जाता है।



गौरतलब है कि वर्षासिंचित इलाकों के लिए मोटहन की खेती कई मायनों में लाभदायक है। एक तो मोटहन में शुमार फसलों में सूखा झेलने की शक्ति होती है, साथ ही इस फसल को कीट आदि से भी कम नुकसान पहुंचता है। इन फसलों में पर्यावरणीय बदलाव के अनुकूल अपने को ढाल लेने की क्षमता होती है। मेहनत-मजदूरी भी अन्य फसलों की तुलना में कम लगती है और इसकी कुछेक प्रजातियां 60-70 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं।


भारत में मौजूद कुपोषण की समस्या को देखते हुए मोटहन की खेती कई मायनों में मानीखेज साबित हो सकती है। मोटहन खनिज-लवण और बी-कॉम्लेक्स तथा लौह-तत्व से भरपूर होते हैं। स्वास्थ्य के लिए जरुरी फाइटोकेमिकल्स के प्रमुख स्रोत के रुप में मोटहन का उपयोग आहार में किया जा सकता है।


देश के वर्षा-सिंचित इलाकों में 60 प्रतिशत किसानों के लिए मोटहन की खेती एक अनिवार्यता है। इससे इलाके के गरीब किसानों को भोजन तो मिलता ही है, पशुचारे की भी व्यवस्था हो जाती है।साथ ही, बहुफसली होने के कारण इस प्रजाति की फसलों की खेती दाल और शाक-सब्जी की खेती के साथ की जा सकती है।
 
इस कथा के विस्तार के लिए देखें कृपया निम्नलिखित लिंक-

Role of Millets in Nutritional Security of India (2013) by Mahtab Bamji et al, National Academy of Agricultural Sciences, December, http://www.im4change.org/siteadmin/http://www.im4change.or
ghttps://im4change.in/siteadmin/tinymce///uploaded/Mille
ts.pdf

Millennium Development Goals: India Country Report 2014, Ministry of Statistics and Programme Implementation, GoI, http://www.im4change.org/docs/242mdg_2014.pdf

The Poor Man's Rich Grain, http://www.im4change.org/news-alerts/the-poor-mans-rich-gr
ain-22386.html

Has Green Revolution failed India's poor?, http://www.im4change.org/blog/has-green-revolution-failed-
indias-poor-12.html

Include Rain-fed farming in Agriculture Policy, http://www.im4change.org/news-alerts/include-rain-fed-farm
ing-in-agriculture-policy-95.html

The Economic Survey 2012-13, http://indiabudget.nic.in/es2012-13/echap-08.pdf

 

पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार- http://old.bioversityinternational.org/fileadmin/bioversityDocs/Announcements/Minor_Millets/Millet%20%28Setaria%20italica%29.JPG से




Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close