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चर्चा में.... | वाहन उद्योग: सुस्ती से उबारने के लिए निजी वाहन नहीं, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना जरुरी है
वाहन उद्योग: सुस्ती से उबारने के लिए निजी वाहन नहीं, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना जरुरी है

वाहन उद्योग: सुस्ती से उबारने के लिए निजी वाहन नहीं, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना जरुरी है

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published Published on Sep 30, 2019   modified Modified on Sep 30, 2019
बिक्री के मोर्चे पर सुस्ती झेल रहे वाहन उद्योग को गति देने के लिए बीते 23 अगस्त को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई अहम घोषणाएं की. इसमें सरकारी विभागों पर वाहनों की खरीद के मामले में लगी रोक को हटाना, घोषणा के दिन से मार्च 2020 तक खरीदे गये वाहनों पर 15 फीसद अतिरिक्त मूल्यह्रास की अनुमति देना (15 फीसद का मूल्यह्रास पहले से लागू होने के कारण अब यह 30 फीसद हो जायेगा) और भारत चरण-4 श्रेणी के वाहनों को उनके पंजीकरण की पूरी अवधि तक चलाने की अनुमति देना प्रमुख है.

वित्तमंत्री ने 23 अगस्त के अपने ऐलान में यह भी कहा कि वाहनों की मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकार पुराने वाहनों को कबाड़ के रुप में बदलने से जुड़ी नीति लायेगी और पेट्रोल तथा डीजल से चलने वाले वाहनों का पंजीकरण जारी रहेगा. वाहनों के पंजीकरण शुल्क में इजाफे की बात को जून 2020 तक टाल देने की बात भी मंत्री ने कही.


लेकिन ये सारे कदम वाहनों के मांग बढ़ाने से जुड़े हैं और गौर से देखें तो जाहिर होगा कि सरकार ने इन घोषणाओं के जरिये कारपोरेट जगत को प्रोत्साहन दिया है ताकि वे क्षेत्र में अपना निवेश बढ़ायें. मीडिया रिपोर्टों में यही जिक्र हावी रहेगा कि दोपहिया या चार पहिया सरीखे निजी वाहनों की खरीद और उत्पादन में कमी आयी है. गौरतलब है कि साल 1991 के बाद से वाहन-उद्योग देश में आर्थिक गतिविधियों के एक संकेतक के तौर पर देखा जाता रहा है.

 

लेकिन कारोबार के मोर्चे पर सुस्ती से जूझ रहे वाहन उद्योग को संकट से उबारने के लिए केंद्र सरकार (राज्य की सरकारों की सक्रिय भागीदारी से) को सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने की नीति की घोषणा करनी चाहिए थी. सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में निवेश के बढ़ने (मिसाल के लिए एक पारदर्शी नीति बनाकर घरेलू स्तर पर विनिर्मित सार्वजनिक परिवहन के वाहनों की खरीद) तथा सड़क, हाईवे या फिर बस रैपिड ट्रांजिट(बीआरटी) कॉरिडोर में निवेश बढ़ाने से ऑटोमोबाइल सेक्टर और इसकी सहयोगी इकाइयों को निश्चित ही सुस्ती से उबरने में मदद मिलती. सड़क और बीआरटी आदि में निवेश से लौह एवं इस्पात उद्योग में भी उत्पादन के मोर्चे पर इजाफे की सूरत बनती.

 

गौरतलब है कि वित्तमंत्री की हालिया घोषणा से पहले भूतल परिवहन मंत्रालय ने इस साल जुलाई में एक अधिसूचना जारी की थी. इस अधिसूचना में प्रस्ताव किया गया था कि सरकार नयी बसों का पंजीकरण शुल्क 1500 रुपये से बढ़ाकर 20,000 रुपये कर सकती है.


वाहन-उद्योग के सामने आन खड़े संकट की गंभीरता को समझने के लिए वाहनों के पंजीकरण के हाल के आंकड़ों को देखना जरुरी है. परिवहन सेवा पोर्टल पर मौजूद नये आंकड़ों से पता चलता है कि लगातार सात माह (फरवरी 2019 से) तक देश में परिवहनों के पंजीकरण में नकारात्मक वृद्धि दर कायम है. मिसाल के लिए, पिछले साल के अगस्त से इस साल के अगस्त के बीच वाहनों के पंजीकरण की संख्या 16.73 लाख से घटकर 15.90 लाख हो गई है. यह एक साल के भीतर 4.96 प्रतिशत की कमी है.(आंकड़ों को विस्तार से जानने के लिए हमारी वेबसाइट के अंग्रेजी संस्करण पर मौजूद तालिका-1 देखें)
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यों अर्थशास्त्र का एक नियम (से'ज लॉ) है कि आपूर्ति अपने लिए स्वयं ही मांग का निर्माण करती है लेकिन ये नियम मांग के संकट से जूझ रही आज की हमारी अर्थव्यवस्था पर ठीक-ठीक लागू नहीं होता. आपूर्ति-पक्ष की तरफ से उठाये जाने वाले जिन कदमों (जैसे विनिर्माताओं के लिए सूद की कम दर पर ऋण) की घोषणा वित्तमंत्री ने पिछले माह की है वे कदम बहुत संभव है निजी वाहनों के उपभोग को बढ़ाने में सक्षम साबित ना हों क्योंकि कामगार तबके के पारिश्रमिक में ठहराव बना है और इस वर्ग के वेतन में वृद्धि बहुत धीमी गति से हो रही है. साथ ही, रोजगार के अवसर घटे हैं और नौकरीशुदा लोगों की छंटनी भी हो रही है. इसलिए, सरकार अगर सीधे हस्तक्षेप करते हुए वाहनों की खरीद को उतरे, स्वयं निवेश को कदम बढ़ाये और टैक्स में छूट दे तो वाहन-उद्योग को सुस्ती से उबरने के लिए जरुरी मदद मिल सकती है.


सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ने के कई फायदे हैं. एक तो वाहनों से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है, दूसरे सड़कों पर वाहनों का जमावड़ा कम होता है और तेल तथा पेट्रोलियम के आयात में होने वाले खर्चे में कमी आती है. सो, सुस्ती की चपेट में आयी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए पर्यावरण हितैषी नजरिये से कदम उठाये जाते तो यह कहीं बेहतर विकल्प होता.


शोध-रिपोर्ट का आकलन है कि चरण-4 श्रेणी के वाहनों से चरण-5 श्रेणी के वाहनों की तरफ जाना विनिर्माताओं और ग्राहकों दोनों की जेब पर भारी पड़ सकता है. वित्तमंत्री की हाल की घोषणाओं (मिसाल के लिए चरण-4 श्रेणी के जिन वाहनों की खरीद 31 मार्च 2020 तक होगी उन्हें पंजीकरण की पूरी अवधि के दौरान चलने की छूट देना) से तात्कालिक तौर पर राहत महसूस हो सकती है लेकिन सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में निवेश करने की जरुरत पहले से ज्यादा बनी रहेगी ताकि हमारा कल सुरक्षित हो सके और पर्यावरण की रक्षा हो सके.


भूतल परिवहन मंत्रालय के नये आंकड़ों का संकेत है कि पंजीकृत बसों का अनुपात (इस न्यूज एलर्ट में पंजीकृत बसों की संख्या को सार्वजनिक परिवहन के एक संकेतक के रुप में देखा गया है) देश में पिछले 15 सालों से पंजीकृत कुल वाहनों की संख्या का महज 1.08 प्रतिशत है. यह आंकड़ा हाल के सालों में और भी नीचे गया है और साल 2007 से 2017 के बीच पंजीकृत बसों की कुल संख्या घटकर 1.40 प्रतिशत से घटकर 0.74 प्रतिशत पर आ गई है. देश को ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में बेहतर और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन की जरुरत है.( इससे संबंधित तालिका-2 के लिए यहां क्लिक करें)


हमारी वेबसाइट के अंग्रेजी संस्करण में उपलब्ध तालिका-3 के ब्यौरे से पता चलता है कि प्रत्येक 100 पंजीकृत निजी वाहनों (कार, जीप, दोपहिया आदि) में बसों की संख्या साल 2007 में 1.65 थी जो 2017 में घटकर 0.84 रह गई. अगर साल 2003 से 2017 की अवधि के लिए आंकड़े पर गौर करें तो नजर आयेगा पंजीकृत बसों की वार्षिक वृद्धि दर (7.13 प्रतिशत) पंजीकृत कार, जीप, टैक्सी (10.26 प्रतिशत) की तुलना में कम रही है.

 

इस कथा के विस्तार के लिए कृपया देखें निम्नलिखित लिंक्स:

 

Presentation made by Union Finance & Corporate Affairs Minister Smt. Nirmala Sitharaman on measures to boost Indian Economy, Press Information Bureau, Ministry of Finance, 23rd August, 2019, please click here to access

 

Annual Report 2018-19 of Ministry of Road Transport and Highways, please click here to access

    

Dip in tractor sales indicate further deepening of rural distress, News alert by Inclusive Media for Change dated 27th August, 2019, please click here to access


Which one is a better indicator for depicting the problem of joblessness -- Proportion Unemployed Or Unemployment Rate?, News alert by Inclusive Media for Change dated 20th June, 2019, please click here to access 


Explained: Old reasons and new red flags in continuing auto slowdown -Yashee Singh, The Indian Express, 3 September, 2019, please click here to access 


Hardly the brick and mortar of a revival -Jayati Ghosh, The Hindu, 27 August, 2019, please click here to access


For India Inc's sob story, Sitharaman has a sop story. But will it help? -Aunindyo Chakravarty, TheWire.in, 27 August, 2019, please click here to access


Economic slump: Modi govt re-arranging furniture when house is on fire -Subodh Varma, Newsclick.in, 24 August, 2019, please click here to access 


Finance Minister Nirmala Sitharaman announces slew of measures for the auto sector, Moneycontrol.com, 23 August, 2019, please click here to access 


Auto sector slowdown hits scrap dealers, micro units in Coimbatore -M Soundariya Preetha, The Hindu, 22 August, 2019, please click here to access 


No hike in vehicle registration fee! Govt puts plan on hold amid slowdown, BusinessToday.in, 21 August, 2019, please click here to access 


Private sector salaries logged slowest growth in a decade -Vineet Sachdev, Hindustan Times, 21 August, 2019, please click here to access 


EVs to run on pink slips? -Abhijit Mukhopadhyay, Observer Research Foundation, 12 August, 2019, please click here to access


Auto sector: Proposal to hike registration fees of new vehicles could aggravate slowdown -Nandana James, The Hindu Business Line, 5 August, 2019, please click here to access 

 

'2019 will be a challenging year for bus market', IANS, The Economic Times, 13 March, 2019, please click here to access 



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