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चर्चा में.... | सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप-- 'मनरेगा को धीमा जहर दे रही है सरकार'
सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप--  'मनरेगा को धीमा जहर दे रही है सरकार'

सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप-- 'मनरेगा को धीमा जहर दे रही है सरकार'

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published Published on Sep 12, 2017   modified Modified on Sep 12, 2017

दरम्याना कद- बस इतना-सा कि कुर्सी से पीठ टिकाकर बैठने पर पुश्त से कुछ इंच नीचा ही नजर आता है. आंखों से हल्का पीलापन.. गहरे सांवले रंग के चेहरे पर बरसों से जमे हुए तनाव और आशंका ने अब झुर्रियों का रुप ले लिया है.

 

सूती साड़ी में लिपटी बहुत दुबली देह.. मानो कह रही हो कि काम ना करें तो कैसे खाएं-जीएं ! पल्लू से आधे ढंके माथे से कुछ धूसर कुछ सफेद बाल झांककर चुगली कर रहे हैं कि उम्र अब 50 की दहलीज पार कर रही है !

 

एक महिला दिल्ली की एक प्रेस-वार्ता में अंग्रेजी और हिन्दी के पत्रकारों के बीच अपनी रामकहानी बिहार की बज्जिका बोली में सुनाने के लिए बैठी है. ट्रेन से दिल्ली पहुंचने की थकान और मंच पर बोलने के लिए अपनी बारी आने के इंतजार में बीच-बीच में उसे झपकी आ जाती है.

 

मिलिए, बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की गंगादेबी से जो दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर 11 से 15 सितंबर तक चलने वाले मनरेगा मजदूरों की रैली में आयी है. नरेगा संघर्ष मोर्चा के झंडे तले जन्तर-मन्तर पर एकजुट उसके साथ मुजफ्फरपुर के कुल 275 साथी हैं.

 

प्रेस-वार्ता में वह कुछ क्रोध और कुछ निराशा भरी आवाज में जन्तर-मन्तर पर जुटने का कारण बताती है-" मांगो तो भी काम नहीं मिलता, बहुत देर-देर से मिलता है, मजदूरी भी बहुत इंतजार के बाद मिलती है.. इस बार हमलोगों की मजदूरी 1 रुपया (सरकार ने) बढ़ाया..सरकारी कर्मचारी को तो कम से कम 18 हजार देता है सब.. फिर हमलोगों को इतना कम क्यों ? "

 

मनरेगा मजदूरों की मांग को मुखर करने के लिए जन्तर-मन्तर पर धरने की अगुवाई कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक निखिल डे प्रेस-वार्ता के मंच से गंगादेबी की बात को समझाते हुए कहते हैं-"कई सालों से नरेगा के मद में पर्याप्त धनराशि नहीं दी जा रही. केंद्र सरकार ने 2009-10 में नरेगा के मद में अबतक की सबसे ज्यादा धनराशि दी. यह देश की जीडीपी का 0.6 प्रतिशत था. लेकिन 2015-16 और 2016-17 में यह राशि घटकर 0.3 प्रतिशत रह गई."

 

केंद्र सरकार से हासिल फंड के मामले में इस साल नरेगा की हालत और भी ज्यादा गंभीर है. निखिल अफसोस भरी आवाज में बताते हैं- " इस वित्तवर्ष में केंद्र सरकार ने जो रकम दी उसका 75 प्रतिशत हिस्सा अबतक  खर्च हो चुका है, वित्तवर्ष के लगभग छह माह बाकी हैं, नरेगा के मजदूरों को आगे का काम कैसे मिलेगा ? सरकार ने अभी तक कोई संकेत नहीं दिया कि वह नरेगा के लिए पूरक बजट ला सकती है."

 

निखिल ने ध्यान दिलाया कि इस साल सरकार ने नरेगा के लिए 48 हजार करोड़ रुपये की धनराशि मंजूर की थी लेकिन इसमें 11 हजार करोड़ रुपये पिछले साल के बकाया थे. स्वराज इंडिया की एक अर्जी की सुनवाई के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने जब नरेगा के लिए फंड के पर्याप्त इंतजाम ना करने के लिए सरकार को फटकार लगायी तो इस साल के नरेगा के बजट में पिछले साल की बकाया राशि सरकार ने जोड़ दी और कहा कि नरेगा के मद में इस साल सबसे ज्यादा राशि दी गई है.

 

निखिल डे की बात की गंभीरता को समझाते हुए पत्रकार-वार्ता में शामिल यूपी के संगतिन समूह की कार्यकर्ता रिचा सिंह ने कहा कि यूपी समेत कई राज्यों में मनरेगा का काम फंड की कमी के कारण रुक गया है या कम हो रहा है. उनका कहना था- " 2016 के दिसंबर महीने में यूपी में मनरेगा के मद में 600 करोड़ की राशि बकाया थी इसलिए मनरेगा के अंगर्गत आगे के किसी काम के लिए भुगतान कैसे किया जा सकता है."

 

प्रेस-वार्ता को संबोधित करने के लिए तैयार किए गए मंच पर गंगादेवी के बगल में एक बुजुर्ग महिला जाखो देवी बैठी है. उसे बीच-बीच में खांसी के धसके आ रहे हैं. वह राजस्थान की बोली में लगभग हांफती हुई आवाज में बताती है -" मजदूरी में देरी के लिए कोई मुआवजा नहीं मिल रहा. मजदूरी भी बस 65 रुपये मिल रही है.."

 

प्रेस-वार्ता में आये पत्रकार जानना चाहते हैं- "मजदूरी इतनी कम क्यों, क्या मनरेगा के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी भी राजस्थान में नरेगा के मजदूरों को नहीं मिल रही.."

 

प्रेस-वार्ता में मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता शबाना बताती हैं- "राजस्थान मे नरेगा के लिए एक दिन के काम के लिए निर्धारित मजदूरी 165 रुपये है. लेकिन काम की नापी ठीक से नहीं होती. मजदूरी का भुगतान मजदूर के बैंक-खाते में होता है और खाता आधार-कार्ड से जोड़ दिया गया है. सो, एक नया चलन सामने आया है जिसमें मजदूर के अंगूठे का निशान मशीन पर लेकर उससे कहा जाता है कि तुम्हारा भुगतान हो गया. मजदूर जान ही नहीं पाता कि कितने दिन की मजदूरी का भुगतान हुआ और काम के लिए कितनी मजदूरी मिली."

 

शबाना ने मनरेगा की मजदूरी की भुगतान-प्रक्रिया के बारे में जमीनी अध्ययन किया है. वे अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए कहती हैं-" नियम के मुताबिक काम पूरा होने के 15 दिन के अंदर नरेगा में मजदूरी का भुगतान हो जाना चाहिए लेकिन बीते पांच सालों में नरेगा के अंतर्गत 50 प्रतिशत मामलों में मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं हुआ है. हमने 10 राज्यों के 3446 ग्राम-पंचायतों के एक सैंपल के अध्ययन में पाया कि केवल 21 प्रतिशत मामलों में मजदूरी का भुगतान समय पर हुआ है."

 

नरेगा की मजदूरी में होने वाली देरी के एवज दिए जाने वाले मुआवजे बारे में पत्रकार-वार्ता में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता और समाज-विज्ञानी अंकिता अग्रवाल ने कहा कि भुगतान में देरी होने पर नरेगा मजदूर को नियम के मुताबिक 0.05 प्रतिशत के हिसाब से रोजाना का मुआवजा मिलना चाहिए. मुआवजे की यह रकम बहुत कम है लेकिन यह भी मजदूरों को नहीं दिया जा रहा क्योंकि मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टन(एमआईएस) में मजदूरी के भुगतान में होने वाली देरी की गिनती फंड ट्रांसफर आर्डर जारी होने के समय तक ही की जाती है. इसके बाद के समय में भुगतान में जो समय लगता है उसकी गिनती नहीं की जाती. साथ ही, प्रखंड स्तर के कार्यक्रम अधिकारी चाहे तो एमआईएस में आये मुआवजे के हिसाब को नामंजूर कर सकता है.

 

मांग के अनुरुप काम का ना मिलना, तकनीकी कारणों के बहाने मजदूरी के भुगतान में देरी करना, देरी के एवज में दिए जाने वाले मुआवजे को टालना और नरेगा की मजदूरी में बढ़ोत्तरी को रोककर रखना - क्या इतनी सारी परेशानियों के बीच मनरेगा का कार्यक्रम चल पायेगा ?

 

प्रेस-वार्ता में शामिल पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति के अनुराधा तलवार को लगता है सरकार ऐसा जान-बूझकर कर रही है ताकि मनरेगा का कार्यक्रम आगे ना चलाया जा सके. उन्होंने याद दिलाया कि कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस कार्यक्रम का यह कहते हुए मजाक उड़ाया था कि गरीबी के समाधान में यह कार्यक्रम नाकाम साबित हुआ है और अब "सरकार इस कार्यक्रम को मारने के लिए धीमा जहर दे रही है."

 

( नरेगा मजदूरों से संबंधित विशेष जानकारी के लिए आप nrega.sangharsh.morcha@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं या अंकिता अग्रवाल (9818603009) तथा फराह जिया (9560511667) से फोन पर बात कर सकते हैं)

 

तस्वीर साभार- द वायर हिन्दी 



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