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चर्चा में.... | सेहत के मानकों पर देश के सबसे पिछड़े 50 जिलों में एक है मुजफ्फरपुर !
सेहत के मानकों पर देश के सबसे पिछड़े 50 जिलों में एक है मुजफ्फरपुर !

सेहत के मानकों पर देश के सबसे पिछड़े 50 जिलों में एक है मुजफ्फरपुर !

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published Published on Jun 18, 2019   modified Modified on Jun 18, 2019

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में अगर कोई बच्चा साफ-सफाई की कमी से होने वाली ‘डायरिया' जैसी आम बीमारी से पीड़ित हो तो इस बात की कितनी संभावना है उसे प्राथमिक उपचार के तौर पर जीवन-रक्षक घोल(ओआरएस) मिल जाये?

बच्चों के तंत्रिका-तंत्र पर आघात करने वाली एक्यूट इन्सेफलाइटिस सिन्ड्रोम (एईएस) सरीखी गंभीर बीमारी से बचाव और उपचार की व्यवस्था को पल भर भूल जायें और मुजफ्फरपुर जिले में मौजूद बुनियादी स्वास्थ्य-ढांचे की हालत का पता देने वाले इस सवाल का जवाब तलाशें. चमकी' के चंगुल में जान गंवा रहे बच्चों की बढ़ती तादाद के बीच जब बिहार की सरकारी चिकित्सा-व्यवस्था और प्रशासन सवालों के घेरे में है तो यह सवाल पूछा जा सकता है.

 

ऊपर के सवाल के जवाब के लिए आपको राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(एनएफएचएस-4) के आंकड़ों पर नजर डालनी होगी. ये आंकड़े ( साल 2015-16) ज्यादा पुराने नहीं है. प्रदेशवार और जिलावार स्वास्थ्य की दशा के कुछ बुनियादी संकेतकों का जायजा लेने वाले इन आंकड़ों के मुताबिक सर्वेक्षण से ऐन दो हफ्ते पहले के वक्त में मुजफ्फरपुर जिले के 16 प्रतिशत बच्चे (5 साल से कम उम्र के) डायरिया से पीड़ित थे. इनमें से मात्र 29.9 प्रतिशत बच्चों को प्राथमिक उपचार के तौर पर मुफ्त दिया जाने वाला ओआरएस का घोल हासिल हो सका. डायरिया के निवारण के लिए दिया जाने वाला सूक्ष्म-पोषक तत्व जिंक मात्र 7.6 फीसद बच्चों को नसीब हुआ.

 

एनएफएचएस-4 के तथ्य बताते हैं कि जिले में डायरिया-पीड़ित 54.7 प्रतिशत बच्चे ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या फिर सहायक स्वास्थ्य केंद्र में उपचार के लिए ले जाये गये. सवाल उठता है शेष बच्चों(लगभग 55 प्रतिशत) का क्या हुआ ? एनएफएचएस के आंकड़ों से इस सवाल का कोई सीधा जवाब तो नहीं मिलता लेकिन कुछ तथ्यों से डायरिया-पीड़ित शेष बच्चों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि सर्वे के ऐन दो हफ्ते पहले जिले में श्वांसनली के गंभीर संक्रमण(एक्यूट रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन) से पीड़ित बच्चों की तादाद 4.7 प्रतिशत थी लेकिन जीवन-रक्षा के लिए त्वरित उपचार की मांग करने वाली ऐसी दशा में भी मात्र 55.6 प्रतिशत बच्चे ही उपचार-केंद्रों तक पहुंचाये जा सके.

 

जाहिर है, इन तथ्यों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि चाहे डायरिया जैसी आम बीमारी हो या फिर श्वांस नली के गंभीर संक्रमण सरीखी विशेष उपचार की मांग करने वाली बीमारी- मुजफ्फरपुर में सरकारी स्वास्थ्य-व्यवस्था का बुनियादी ढांचा ऐसा नहीं कि वहां के लगभग 45 प्रतिशत बच्चों को जरुरत के वक्त चिकित्सा हासिल हो सके.

 

स्वास्थ्य-सेवा की उपलब्धता और सुपुर्दगी के मामले में मुजफ्फरपुर जिले की स्थिति पूरे देश के हिसाब से कैसी है इसका अनुमान लगाने के लिए जरा ऊपर के आंकड़ों की तुलना एनएफएचएस-4 के अखिल भारतीय आंकड़ों से करें. सर्वेक्षण के ऐन दो हफ्ते पहले देश में डायरिया पीड़ित बच्चों की औसत तादाद 9.2 प्रतिशत थी यानि मुजफ्फरपुर की तुलना में लगभग लगभग डेढ़ गुना कम. देश स्तर पर डायरिया पीड़ित 50 प्रतिशत बच्चों को प्राथमिक उपचार के तौर पर दिया जाने वाला ओआरएस का घोल हासिल हुआ यानि मुजफ्फरपुर की तुलना में दोगुना ज्यादा और डायरिया के उपचार के लिए जरुरी सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक 20.3 प्रतिशत बच्चों को हासिल हुआ यानि मुजफ्फरपुर से जुड़े समान आंकड़े की तुलना में तीन गुना ज्यादा.

 

देश स्तर पर अस्पताली सुविधा हासिल करने वाले डायरिया-पीड़ित बच्चों की तादाद (67.9 प्रतिशत) भी मुजफ्फरपुर(54.7 प्रतिशत) की तुलना में ज्यादा है. यही स्थिति श्वांस नली के गंभीर संक्रमण से ग्रस्त बच्चों की संख्या ( देशस्तर पर 2.7 प्रतिशत, मुजफ्फरपुर 4.7 प्रतिशत) तथा इस रोग के उपचार के लिए अस्पताली सुविधा हासिल करने वाले बच्चों (मुजफ्फरपुर में 55.6 प्रतिशत, देश स्तर पर 73.2 प्रतिशत) के मामले में है.

 

बाल-मृत्युदर (प्रति हजार जीवित शिशुओं के जन्म पर), अवरुद्ध-विकास (स्टंडेट ग्रोथ) वाले बच्चों का अनुपात, मानक से कम बॉडी-मॉस इंडेक्स वाले स्त्री-पुरुषों की संख्या तथा तपेदिक सरीखी बीमारी से ग्रस्त (दस लाख की आबादी में तपेदिक से पीड़ित लोगों की संख्या) लोगों की तादाद सरीखे मानकों के आधार पर नीति-आयोग के दस्तावेज में मुजफ्फरपुर जिले को देश के सर्वाधिक पिछड़े 50 जिलों में एक माना गया है. इसे एस्पिरेशनल ड़िस्ट्रिक्टस् में एक करार देते हुए विशेष ध्यान देने और स्वास्थ्य-सेवा के विशेष कार्यक्रम चलाने की बात कही गई है.

 

इस कथा के विस्तार के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक देखें:

Association of acute toxic encephalopathy with litchi consumption in an outbreak in Muzaffarpur, India, 2014: a case-control study

https://www.thelancet.com/journals/langlo/article/PIIS2214
-109X(17)30035-9/fulltext?fbclid=IwAR1fvj1FDIGI0nwGqRBw5S2
QdDLWDpnhS5Wab47D82xtWHa-DrUzwvaCQ2k

 

District Fact Sheet Muzaffarpur Bihar

http://rchiips.org/nfhs/FCTS/BR/BR_FactSheet_216_Muzaffarpur.pdf

 

National Family Health Survey 2015-16- India Fact Sheet

http://rchiips.org/NFHS/pdf/NFHS4/India.pdf

 

The 50 districts with the poorest health outcomes in India

https://www.livemint.com/Politics/aubiq1yR8CiYZ6G9T7NWiP/A
yushman-Bharat-health-insurance-districts.html

 

About the Aspirational Districts Programme

https://niti.gov.in/content/about-aspirational-districts-p
rogramme

 

नीति आयोग: आकांक्षी जिले का परिवर्तन

https://niti.gov.in/writereaddata/files/PRIMER-ASPIRATIONA
L-DISTRICTS-HINDI_0.pdf

 

Transformation Of Aspirational Districts

https://niti.gov.in/writereaddata/files/document_publicati
on/AspirationalDistrictsBaselineRankingMarch2018.pdf

 

‘It’s absurd to blame litchi for AES, malnourishment the real cause’

https://www.downtoearth.org.in/interviews/health/-it-s-abs
urd-to-blame-litchi-for-aes-malnourishment-the-real-cause-
-65130

 

चमकी बुखार: 108 की मौत, 16 बच्चों की हालत गंभीर, DM बोले- इलाज से CM संतुष्ट

https://aajtak.intoday.in/story/bihar-chamki-fever-case-cm
-nitish-kumar-dm-alok-ranjan-ghosh-1-1093901.html

 

मुज़फ़्फ़रपुर: क्या मरते बच्चों की वजह लीची है?

https://www.bbc.com/hindi/india-48671742?fbclid=IwAR1QZMcJ
7zE0rwZoZxValXUVVgmUC5AiQLXPXlYZItQsLaZZ7DUZhxYh_gE
 

 

पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार प्रभात खबर 



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