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न्यूज क्लिपिंग्स् | असली रंग तो नरेगा का है

असली रंग तो नरेगा का है

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published Published on Oct 18, 2010   modified Modified on Oct 18, 2010
लखनऊ,: दरवाजे-दरवाजे पर चिपके रंगीन पोस्टर, बैनरों की भरमार और रफ्तार भरतीं महंगी गाडि़यां। कुछ ऐसा नजारा दिख रहा है ग्राम प्रधानी चुनाव में।
ग्राम प्रधान के लिए अतीत के चुनावों पर नजर डालें तो गांव की कुछ खास दीवारों पर ही कुछ खास उम्मीदवारों के गिनती के श्वेत-श्याम पोस्टर नजर आते थे, लेकिन इस बार तो यह संख्या हजारों में तो पहुंच गई है। पोस्टर में तमाम किस्म के रंग उसकी लागत स्वयं ही बता रहे हैं। ग्राम प्रधानी का पीछे से चुनाव लड़ाने वाले भी मानते हैं कि अब तो ग्राम प्रधान बनने में नरेगा का उत्साह अधिक दिख रहा है। ऐसे में दमदार लोग भी चुनावी मैदान में हैं।
अभी तक ग्राम प्रधानी कुछ घरों की देहरी से बाहर नहीं निकल पाती थी। समय के साथ ग्राम प्रधान के अधिकारों में वृद्धि और नरेगा योजना के आने से प्रधानी को अब लोग सोने की चिडि़या मानने लगे हैं। नरेगा के कार्यों के भुगतान में ग्राम प्रधान का सीधे हस्तक्षेप का असर मौजूदा चुनाव में साफ दिख रहा है।
ग्राम प्रधान व सचिव का संयुक्त खाता होने और नरेगा में बड़े पैमाने पर पैसा आने के कारण ही हर कोई इस संयुक्त खाते का एक खाता धारक बनने को आतुर है। राजधानी में एक बड़े प्रिटिंग प्रेस के मालिक हारुन नोमानी भी मानते हैं कि ग्राम प्रधानी का चुनाव महंगा हो गया है। वह बताते हैं कि पहले प्रधानी के चुनाव में कुछ लोग ही पोस्टर, स्टिकर व पम्फलेट छपवाने आते थे, वह भी श्वेत-श्याम होता था। पांच सौ से हजार की संख्या में ही पोस्टर छपते थे। मौजूदा चुनाव में एक-एक प्रत्याशी रंगीन पोस्टर 20 से 40 हजार तक छपवा रहा है। इसके साथ ही प्रचार की अन्य सामग्री भी खरीदी जा रही है

http://www.pressnote.in/org.news_97215.html


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