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न्यूज क्लिपिंग्स् | आंगनबाड़ियों में नहीं मिल रहा दोपहर का भोजन, कागजों में चल रही योजनाएं

आंगनबाड़ियों में नहीं मिल रहा दोपहर का भोजन, कागजों में चल रही योजनाएं

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published Published on Nov 24, 2017   modified Modified on Nov 24, 2017
रवि श्रीवास्तव, राजगढ़। जिले में पोषाहार, स्नेह सरोकार, ममता अभियान सहित सांझा चूल्हा आदि योजनाओं के जरिए कुपोषण भगाने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। लेकिन कुपोषण बधाों का पीछा नहीं छोड़ रहा। महिला बाल विकास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में 2 हजार 820 बच्चे अतिकुपोषित एवं 26 हजार 35 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।


दोनों श्रेणियों को मिला दें तो कुल 28 हजार 855 में से 15 हजार 380 बालिकाएं एवं 13 हजार 775 बालक कुपोषण का दंश झेल रहे हैं। आंकड़ों से जाहिर है जिले में कुपोषण ने बालकों की अपेक्षा बालिकाओं को अधिक घेर रखा है। बड़ी तादात में कुपोषित बच्चे सामने आने के बाद कलेक्टर ने प्रशासनिक अफसरों से अति कुपोषित बच्चों को गोद लेकर उनकी देखभाल करने के निर्देश दिए हैं। इधर कुपोषण से ग्रस्त बच्चों को ठीक करने के लिए माता-पिता नीम हकीमों की शरण में जा रहे हैं। सितम्बर माह में झाड़ फूंक के चक्कर में बरखेड़ा गांव की ढाई वर्षीय दीपिका की जान चली गई थी।


नहीं मिल रहा दोपहर तीन बजे का भोजन


जिले में अति कुपोषित बच्चों को थर्ड मील योजना के तहत आंगनबाड़ियों के माध्यम से दोपहर तीन बजे भोजन देने की योजना फ्लॉप हो गई है। जिले में कहीं भी व्यवस्थित ढंग से यह योजना लागू नहीं है। मामले में मबावि अधिकारी चंद्रसेना भिड़े ने स्वीकारा कि जिले में थर्ड मील का क्रियान्वयन व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पा रहा है। कलेक्टर साहब से चर्चा कर जल्द इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा। ज्ञात हो कि जिले में 2 हजार 417 आंगनवाड़ी केंद्र है।


दो बच्चों के बीच दो साल का अंतर जरूरी


सीएमएचओ डॉ अनुसूईया गवली के अनुसार बच्चों में कुपोषण उनकी माताओं के खानपान एवं पोषण स्तर से हो रहा है। समाज के पिछड़ेपन की वजह से माताएं दो बच्चों के बीच में कम से कम दो साल का अंतर नहीं रखती। साथ ही पर्याप्त डाइट भी नहीं लेती। इसलिए माता एवं होने वाली संतान दोनों ही कमजोर रहती है। कम उम्र में शादी होना भी शारीरिक कमजोरी की एक प्रमुख वजह है। ज्ञात हो कि जिले में बालविवाह आज भी मोटे पैमाने पर हो रहे हैं।


कारगर साबित नहीं हो रही योजनाएं


स्नेह सरोकार: शासन की इस योजना के तहत अति कुपोषित बच्चों को सामाजिक कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि, सरकारी अधिकारी या किसी भी संपन्न् व्यक्ति द्वारा गोद लेकर पोषण आहार देने की जिम्मेदारी ली जाती है।


सांझा चूल्हा: इस योजना के तहत आंगनबाड़ियों में 3 से 6 साल के बच्चों को प्रतिदिन नाश्ता एवं भोजन दिया जाता है।


पोषाहार: इस योजना के तहत आंगनबाड़ियों से तीन साल तक के बच्चों एवं गर्भवतियों को सूखे राशन के पैकेट देकर 125 ग्राम प्रतिदिन पकाकर डाइट देने की व्यवस्था है।


इलाज न मिले तो हो सकती है मौत


काम्पलीकेशन यानी जटिलताओं वाले बच्चे जिनमें खून, शूगर, पानी आदि की कमीं हो जाती हैं। ऐसे बच्चों को गंभीर जटिलता की श्रेणी में रखा जाता हैं। ऐसे बच्चों को यदि समय पर इलाज न मिले तो वह मरणासन्न् अवस्था में पहुंच सकते हैं। बिना डाक्टरों की जांच के इनका चि-ांकन नहीं किया जा सकता।


-डॉ सुरेश जैन, शिशु रोग विशेषज्ञ

कुपोषण से नहीं मरने देंगे एक भी बच्चा


अतिकुपोषित बच्चों की पहचान करके उन्हें एनआरसी में भर्ती कराने के लिए महिला बाल विकास अधिकारी को कहा है। ओपीडी से भी बच्चों को केंद्र में भर्ती किया जा रहा है। हम नेगेटिव नहीं हैं। कुपोषण से एक भी बच्चे को मरने नहीं देंगे।


डॉ अनुसूईया गवली, सीएमएचओ


विभाग बना रहा सूची


महिला बाल विकास अधिकारी से कहा है कि वह गंभीर एवं विशेष आवश्यकता वाले बच्चों एवं ऐसे परिवार को चिन्हित करें जो वास्तव में गरीब हो। सूची को हम अफसरों को उपलब्ध करा रहे हैं। बच्चों को गोद लेकर सरकारी अफसर पोषाहार देकर देखभाल करेंगे। स्वयहायता समूहों के माध्यम से ऐसे परिवारों की महिलाओं को रोजगार देने की योजना भी है। मीडिया एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी अपील है कि अति कुपोषित बच्चों को गोद लेकर देखभाल की जिम्मेदारी लें।


कर्मवीर शर्मा, कलेक्टर राजगढ़


परियोजनावार कुपोषण की स्थिति


परियोजना का नाम- कुपोषित, अति कुपोषित

ब्यावरा- 2हजार 800, 332,

जीरापुर- 3 हजार 104, 308,

खिलचीपुर- 2 हजार 795, 314,

खुजनेर- 1 हजार 425, 173,

कुरावर- 2 हजार 988, 299,

नरसिंहगढ़- 2 हजार 801, 411,

पचोर- 2 हजार 319, 196,

राजगढ़- 1 हजार 972, 183,

सारंगपुर- 3 हजार 183, 391,

सुठालिया- 2 हजार 648, 213,

कुल- 26 हजार 35, 2 हजार 820,

(नोट- आंकड़े मबावि से प्राप्त जानकारी के अनुसार हैं।)


http://naidunia.jagran.com/madhya-pradesh/rajgarh-lunch-is-not-available-in-anganwadis-schemes-running-in-paper-1416470?utm_source=naidunia&utm_medium=home&utm_content=mp


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