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न्यूज क्लिपिंग्स् | उत्पादन में रोबोट का बढ़ रहा है दखल, जॉब्स पर असर..

उत्पादन में रोबोट का बढ़ रहा है दखल, जॉब्स पर असर..

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published Published on Jun 14, 2016   modified Modified on Jun 14, 2016
उत्पादन की प्रक्रियाओं में रोबोट के बढ़ते दखल से दुनियाभर में जॉब्स को लेकर चिंता बढ़ रही है. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन भी पिछले दिनों इस संबंध में चिंता जता चुके हैं.

अनेक वैश्विक संस्थाएं लगातार इसका अध्ययन कर रही हैं और उनकी रिपोर्ट बताती है कि वाकई में भविष्य में अनेक प्रकार के इनसानी जॉब्स पर रोबोट के हावी होने का खतरा बढ़ रहा है. क्या चिंता जतायी है रघुराम राजन ने और अमेरिकी इनवेस्टमेंट बैंक ‘बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच' द्वारा हाल में जारी रिपोर्ट में रोबोट के बढ़ते असर को किस तरीके से दर्शाया गया है, जानें विस्तार से...

तकनीक तेजी से दुनिया को बदल रही है और इस बदल रही दुनिया में नौकरियों का स्वरूप और स्थान दोनों ही बदल रहा है. पिछले एक दशक से विकास और औद्योगीकरण की राह पर तेजी से आगे बढ़नेवाले देशों में इनसानी कामगारों की जगह रोबोट लेते जा रहे हैं.

इससे एक बड़ी चिंता उभर कर सामने आ रही है कि ये रोबोट इनसानी कामगारों की नौकरियां छीन सकते हैं. हालांकि, भारत में औद्योगिक क्षेत्र में अभी रोबोट के इस्तेमाल की शुरुआत ही हुई है, लेकिन सर्विस सेक्टर में भी इसके बढ़ते इस्तेमाल से इनसानी कामगारों की नौकरियाें पर संकट के बादल मंडराने की आशंका प्रबल होने लगी है.

खासकर उदारीकरण के ऐसे दौर में, जब भारत सरीखे अनेक विकासशील देशों में सर्विस सेक्टर में आउटसाेर्सिंग के जरिये व्यापक तादाद में नौकरियाें के अवसर सृजित हुए और इनकी निरंतरता के पीछे यह नीति सर्वाधिक बड़ा कारण रही. ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया' के गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में इस संदर्भ में चिंता जतायी है कि इमर्जिंग मार्केट इकॉनोमीज, यानी ऐसेदेश जिनकी अर्थव्यवस्था तेजी से उभर रही है, में आउटसोर्सिंग के जरिये मिलनेवाली नौकरियों के मौके खत्म हो सकते हैं.

दरअसल, उदारीकरण के बाद से दुनियाभर में आउटसाेर्सिंग ने जोर पकड़ा और विकसित व औद्योगिक देशों द्वारा विकासशील देशों में आउटसोर्सिंग के जरिये काम कराने का सिस्टम सरल बना.

विकासशील देशों को इससे बड़ा फायदा यह हुआ कि उनके यहां ज्यादा तादाद में रोजगार के नये-नये अवसर पैदा हुए. आउटसोर्सिंग के कारण विभिन्न प्रकार की नौकरियां औद्योगिक और विकसित देशों से विकासशील देशों में आयी हैं. हालांकि, कमोबेश यह सिलसिला अब भी बरकरार है, लेकिन ऑटोमेशन और रोबोटिक्स के बढ़ते प्रभाव के कारण राजन ने चिंता जतायी है कि विकसित देश अब ये काम अपने यहां ही इन तकनीकों से निबटायेंगी.

रोबोटिक्स और ऑटोमेशन से सबसे ज्यादा नुकसान मध्यम वर्ग को : रघुराम राजन

आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने ‘द वर्ल्ड इन 2050' के विमोचन के मौके पर कहा कि ऑटोमेशन और रोबोटिक्स से सबसे ज्यादा नुकसान भारत जैसे देशों में मध्यम वर्ग को होगा, जिन्हें अब तक इसका सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है.

दशकों बाद दुनिया कहां पहुंच जायेगी, इस बारे में अंदाजा लगाना अभी बेहद मुश्किल है, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए आगामी पांच सालों में कितना बदलाव आयेगा, इसका अनुमान लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं है. वर्ष 2050 तक यानी आज से करीब साढ़े तीन दशक बाद यह दुनिया कितनी बदल जायेगी इस बारे में किसी तरह की अटकलबाजी आसान नहीं है.

खबरों के मुताबिक राजन ने चिंता जतायी है कि थ्रीडी प्रिंटिंग और रोबोट जैसी तकनीकों के उभार से आउटसोर्सिंग का काम खतरे में पड़ सकता है. यह काम अब रोबोट कर सकता है.

कई देशों में इसके विरोध में प्रदर्शन भी हो रहे हैं. बहुत से औद्योगिक देश लोकलुभावन नीतियां अपना रहे हैं, जिस कारण भी यह आशंका ज्यादा गहरा रही है. दरअसल, अनेक औद्योगिक देशों के साथ उनके अपने राजनीतिक और आर्थिक हित जुड़े हुए हैं. ब्रिटेन में हुए जनमत संग्रह में देखा गया कि वे यूरोपियन यूनियन के साथ जुड़े रहना तो चाहते हैं, लेकिन अपने लिए अलग सिस्टम भी बनाये रखना चाहते हैं.

दुनियाभर में इस लिहाज से जिस तरह नीतियां बदल रही हैं, उसके संकेत कमोबेश कुछ इसी तरह के हैं. हालांकि, राजन ने यह भी कहा कि इस संदर्भ में एक बड़ा फैक्टर यह भी होगा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में आनेवाले किसी भी असंगत हालात से निबटने के लिए विभिन्न देश अपनी नीतियों में लचीलापन ला सकते हैं या नहीं. मौजूदा वित्तीय सिस्टम के तहत लिबरल मार्केट्स निश्चित रूप से इसकी चपेट में आ सकते हैं, क्याेंकि व्यापक रूप से ये एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.

रोबोट क्रांति से बदलेगी इकोनॉमी

अ गले 20 सालों में रोबोट क्रांति वैश्विक अर्थव्यवस्था को बदल देगी. चूंकि मौजूदा उद्योगों में ज्यादा-से-ज्यादा काम मशीनों के जरिये निबटाये जायेंगे, इसलिए ये बदलाव आयेगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास से अनेक मैनुअल जॉब्स रोबोट के कब्जे में हो जायेंगे. जैसे- रोबोट वैक्यूम क्लीनर के मदद से कमरे की सफाई करेंगे या मशीन पार्ट्स को असेंबल करेंगे.

जिस दिन रोबोट में ‘सोचने' की क्षमता पैदा हो जायेगी, उस दिन वे विश्लेषणात्मक कार्यों को निबटाते नजर आयेंगे, क्याेंकि इस कार्य में इनसान की सोच-समझ की जरूरत होती है. अमेरिका के इनवेस्टमेंट बैंक ‘बैंक आॅफ अमेरिका मेरिल लिंच' इस संदर्भ में लंबे अरसे से अध्ययन कर रहा है और अपनी हालिया रिसर्च रिपोर्ट में उसने इन प्रभावों को दर्शाया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, स्टीम, मास प्रोडक्शन और इलेक्ट्रॉनिक्स के बाद दुनिया में दस्तक दे रही चौथी औद्योगिक क्रांति रोबोटिक्स के जरिये समूची अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में लेने की तैयारी में है. इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक ने चिंता जतायी है कि हम एेसे युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां हमारे सोचने और रहने के तरीकों में तेजी से बदलाव आ रहा है. रोबोट और आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के उदय ने उद्योग-धंधों के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है और अब ये हमारी रोजाना की जिंदगी से जुड़ी चीजों पर असर डालेगा.

रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका जैसे देशों में कुछ चिंताजनक ट्रेंड उभर रहे हैं, क्योंकि हाल के वर्षों में पैदा होनेवाले मैनुअल या सर्विस जाॅब्स अपेक्षाकृत कम भुगतान यानी वेतन वाले देखे जा रहे हैं. साथ ही इसमें रिप्लेसमेंट का बड़ा जोखिम सामने दिख रहा है. इस रिपोर्ट में यह आकलन किया गया है कि वर्ष 2020 तक दुनिया में रोबोट और आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का मार्केट 152.7 अरब डॉलर तक पहुंच जायेगा. साथ ही यह अनुमान भी व्यक्त किया गया है कि इन तकनीकों को अपनाने से कुछ खास उद्योगों में उत्पादकता 30 फीसदी तक बढ़ जायेगी.

जापान का कार उद्योग सबसे एडवांस मैन्यूफैक्चरिंग सिस्टम

जा पान में कार निर्माण उद्योग सबसे एडवांस मैन्यूफैक्चरिंग सिस्टम बन गया है. इस उद्योग में काम कर रहे रोबोट बिना किसी बाधा के महीने के 30 दिनों और 24 घंटे काम करते हैं.

इससे उत्पादकता तेजी से बढ़ रही है. मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर 10,000 कामगारों में औसतन 66 रोबोट्स हैं, जबकि जापान में कार बनानेवाली फैक्टरियों में यह औसत 1,520 है. वहीं दूसरी ओर दुनियाभर में समुद्र के भीतरी हिस्से में अनेक मैन्यूफैक्चरिंग जाॅब्स रोबोट के हाथों में जा रहे हैं. चूंकि यहां तक इनसानों को भेजना और वहां उनके समुचित तरीके से रहने, खाने-पीने और सुरक्षा आदि पर ज्यादा खर्च आता है, लिहाजा यहां रोबोट रखने का खर्चा बहुत कम होगा.

आशंका जतायी गयी है कि ऐसे इलाकों में रोबोट इनसानी कामगारों को 90 फीसदी तक रिप्लेस कर देंगे. वैसे देखा जाये तो मशीनों द्वारा इनसानों के प्रतिस्थापित किये जाने का भय कोई नया नहीं है. 19वीं सदी के आरंभ में जब स्टीम इंजन आधारित मशीनों ने उद्योग-धंधों में दखल दी थी, तब भी यह आशंका जतायी गयी थी. आप पायेंगे कि पिछले 200 सालों के दौरान समाज ने बदल रही तकनीक को अपने फायदे के लिहाज से बेहतरीन रूप से ढालने में कामयाबी पायी है.

‘द गार्डियन' की एक रिपोर्ट में संबंधित विशेषज्ञ के हवाले से बताया है कि हमें रोबोट से डरने की बजाय अपनी कुशलता को विकसित करना चाहिए. शिक्षा और कुशलता इनसान के पास ऐसे दो बड़े हथियार हैं, जिनके सहारे वह खुद को उत्कृष्ट साबित कर सकता है.
बैंक आॅफ अमेरिका मेरिच लिंच की रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य

1. रोबोट ज्यादा सस्ते और ताकतवर हो रहे हैं : वेल्डिंग का काम करने वाले रोबोट की कीमतों में पिछले एक दशक में बहुत कमी आयी है. वर्ष 2005 में जहां इसकी कीमत 1,82,000 डॉलर थी, वहीं पिछले साल ज्यादा विकसित वेल्डिंग रोबोट की कीमत 1,33,000 डॉलर थी. महज एक लाख डॉलर में अब ऐसे रोबोट खरीदे जा सकते हैं, जो एक दशक पहले के मुकाबले दोगुना ज्यादा काम करने में सक्षम हैं.

2. चीन है रोबोट का सबसे बड़ा खरीदार : वर्ष 2014 में चीन ने 57,000 रोबोट खरीदे. यह संख्या उस साल बेची गयी कुल रोबोट की संख्या का करीब एक-चाैथाई है. इसके पिछले साल भी चीन रोबोट का दुनिया में सबसे बड़ा खरीदार रहा था. वर्ष 2014 में चीन में प्रत्येक 10,000 औद्योगिक कामगारों में 35 रोबोट थे, जबकि जापान और जर्मनी में इनकी संख्या क्रमश: 300 और 385 थी. चीन में इसका सबसे बड़ा कारण बूढ़ी हो रही आबादी और तीव्र औद्योगीकरण को बताया गया है.

3. इनोवेटिव इंडस्ट्री खरीद रही बड़ी तादाद में रोबोट : कारों और ट्रकों के निर्माण में अनेक चरणों में कार्यों का निबटारा किया जाता है. वर्ष 2014 में दुनिया में कुल बिके रोबोट में आधे ऑटोमोटिव इंडस्ट्री ने ही खरीदे थे. असेंबली लाइन यानी बार-बार किये जानेवाले एक ही प्रकार के कार्य को इनसान के मुकाबले ज्यादा तेजी और दक्षता से करने में सक्षम है. अमेरिका में इनसानी कामगार से वेल्डिंग का काम कराने की लागत प्रति घंटा 25 डॉलर है, जबकि रोबोट के जरिये यह काम महज आठ डॉलर प्रति घंटे की दर से हो जाता है.

प्रस्तुति - कन्हैया झा

http://www.prabhatkhabar.com/news/khabro-ki-khabar/story/814813.html


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