Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | जंगल से कटकर सूख गये मालधारी- शिरीष खरे

जंगल से कटकर सूख गये मालधारी- शिरीष खरे

Share this article Share this article
published Published on Apr 28, 2010   modified Modified on Apr 28, 2010
एशियाई शेरों के सुरक्षित घर कहे जाने वाले गिर अभयारण्य में बरसों पहले मालधारियों का भी घर था. ‘माल’ यानी संपति यानी पशुधन और ‘धारी’ का मतलब ‘संभालने वाले’. इस तरह पशुओं को संभाल कर, पाल कर मालधारी अपनी आजीविका चलाते थे. एक दिन पता चला कि अब इस इलाके में केवल शेर रहेंगे. फिर धीरे-धीरे मालधारियों को उनकी जड़ों से उखाड़कर फेंकने का सिलसिला शुरु हुआ.

जंगल में मालधारी

आज की तारीख में वन्यजीव अभयारण्य के चलते गिरी के जंगलों से बेदखल हुए मालधारी समुदाय के पास जहां रोजीरोटी एक प्रश्नवाचक चिन्ह की तरह हो गया है, वहीं बुनियादी सुविधायें भी सिरे से लापता हैं. अपनी सामाजिक पहचान बनाने की जद्दोजहद के बीच उनके सामने शिक्षा और सेहत जैसे कई सवाल हैं, जिसका जवाब कोई नहीं देना चाहता.

मालधारियों का घर
गुजरात में शुष्क पर्णपाती जंगल, नम पर्णपाती जंगल, घास के बड़े-बड़े मैदान, समुद्र के लंबे-लंबे किनारे और बहुत सारे दलदली इलाके हैं. यहां 4 राष्ट्रीय उद्यान और 20 अभयारण्य हैं, जो 13 विकासखण्डों की 24 जगहों पर बसे हैं. प्रदेश के 4 राष्ट्रीय उद्यान जहां कुल 47,967 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में हैं, वहीं 20 अभयारण्य कुल 16,74,224 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हैं.

इन्हीं में एक गिर का अभयारण्य भी है, जो एशियाई शेरों का सुरक्षित घर कहलाता है. यह 1424 वर्ग किलोमीटर में फैला सघन जंगल, देश के सबसे बड़े शुष्क पर्णपाती जंगलों में से एक है. यही वह फैलाव है, जिसके आसपास मालधारी समुदाय का जीवन अपना विस्तार पाता था.

आरक्षित जंगल वाले इस इलाके को 70 के दशक में वन्य अभयारण्य के तौर पर अधिसूचित किया गया था. सबसे पहले 1972 में, सरकार ने यहां के 845 मालधारी परिवारों में से 580 परिवारों को जंगल से बाहर करने की कवायद शुरु की और देखते ही देखते 129 बस्तियों से तकरीबन 5000 आबादी को जंगल से उजाड़ दिया गया. तब से अब तक, यहां वन्य संरक्षण के नाम पर मालधारियों का शिकार बाकायदा जारी है.

बरदा एक ऐसा ही इलाका है, जो विस्थापन की सूची से फिलहाल तो छूटा हुआ है लेकिन वन विभाग का जंगल राज जब तब यह अहसास कराता रहता है कि मालधारियों की कोई औकात नहीं है और वन विभाग जब चाहे मालधारियों को जानवरों की तरह हकाल सकता है.

बरदा के जेसिंगभाई, हरिसिंग भाई, रामगुलाब, चंदाभामा जैसे लोगों से अगर आप बात करें तो सब के पास अब केवल पुराने दिनों की यादें शेष हैं. एक-एक आदमी के पास अपने-अपने किस्से हैं. वन-विभाग के आने के पहले तक उनका जीवन कितना मस्त, आजाद, आत्मनिर्भर, सरल, व्यवस्थित और हरा भरा था. लेकिन पिछले 40 सालों में सरकार ने मालधारियों को उनकी जड़ों से ऐसा काटा कि उनका जीवन सूख ही गया.

जानवरों के नाम पर
70 के दशक में विभाग ने यहां सर्वे किया, जंगलों को नापा और जमीनों की हदबंधी की. देखते ही देखते, उसने जंगल की जमीनों को राजस्व की जमीनों में बदलना चालू किया. इसके बाद विभाग ने पानी से लेकर कंदमूल और पेड़ की टहनियों, यहां तक कि जिन पत्थरों और गीली माटी से मालधारियों ने अपने घर बनाए , उनके इस्तेमाल तक पर पाबंदी लगा दी.

सरकार को जंगल के जीवों की देखभाल का तो ख्याल आता रहा, मगर पालतू पशुओं की चराई पर लगी रोक को हटाने का ख्याल एक बार भी नहीं आया. जबकि मालधारियों के पास तो बड़ी संख्या में गिर की मशहूर गाएं थीं, जो अब तेजी से घट रही हैं और जिनके घटने के सवाल पर सरकार भी अब चिंता प्रकट कर रही है.

यहां के लोगों पर चौतरफा मार पड़ी है. सरकार ने जहां उनके काम, धंधे और संसाधनों को उनसे छीना है, वहीं उनकी दुनिया में आए अभावों की ओर पलटकर भी नहीं देखा है. इन मालधारियों का जीवन जंगल पर ही निर्भर था और जब वे जंगल से बेदखल किये गये तो जैसे जिंदगी से ही बेदखल कर दिये गये. सरकार ने विस्थापन से पहले कई वायदे किये लेकिन एक बार जंगल से विस्थापित होने के बाद सरकारी महकमे ने इनकी ओर पलट कर नहीं देखा.

बरदा की पहाड़ियां, पोरबंदर से 15 किलोमीटर दूर हैं. अरब सागर के चेहरे को मानो चूमता सा यह इलाका पोरबंदर और जामनगर जिलों से जुड़ा हुआ है. यहां का जंगल कभी राणावाव और जामनगर के राजाओं के अधीन था, सो अभी भी यह पहाड़ियां राणाबरदा और जामबरदा के नाम से ही जानी जाती है.

पत्थर जैसे जिंदगी
राणाबर्दा और जामबर्दा पहाड़ियों पर कुल 61 बस्तियां बची हैं, जो एक-दूसरे से बहुत दूर-दूर और ऊंची नीची पथरीली जगहों पर हैं. यहां 1154 परिवारों के 6372 लोग रहते हैं, उनमें 14 साल तक के 2774 बच्चे हैं. अब दोनों पहाड़ियों की 61 बस्तियों के इतने बच्चों के सामने जो 14 प्राथमिक स्कूल हैं भी तो उनमें से 7 के भवन नहीं हैं. बाकी 7 प्राथमिक स्कूलों के भवन हैं, मगर उनमें भी छोटे-छोटे 15 कमरे ही हैं. मतलब यहां के सारे बच्चों को ध्यान में रखा जाए तो औसतन 185 बच्चों पर केवल एक कमरा ठहरता है.

दूसरी तरफ, राणाबर्दा के प्राथमिक स्कूलों में तो शिक्षकों की संख्या फिर भी ठीक है, मगर जामबर्दा के 1077 बच्चों के सामने जो 5 प्राथमिक स्कूल हैं, उनमें शिक्षकों की संख्या 6 हैं. मतलब यहां औसतन 180 बच्चों पर केवल एक शिक्षक ठहरते हैं. इन्हीं सबके चलते यहां 14 साल तक के 2774 बच्चों में से केवल 728 बच्चों के नाम स्कूली फाइलों में भरे जा सके हैं. बीते 1 अप्रेल से, केन्द्र सरकार ने देश भर के सारे बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार का कानून लागू किया है, मगर यहां के 2046 बच्चों के लिये तो कम से कम यह कानून नाकाफी है.

सरकारी दावे और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के उलट यहां की 61 बस्तियों के भीतर 6 साल से नीचे के कुल 1354 बच्चे हैं. लेकिन उनकी देखभाल के लिए एक भी आंगनबाड़ी केन्द्र यहां नहीं है. इसी तरह 192 वर्ग मीटर तक फैली इन दो पहाड़ियों के बीच एक भी जगह ऐसी नहीं है, जहां सरकार ने स्वास्थ्य की कोई सेवा उपलब्ध करायी हो. इसलिए तबीयत बिगड़ जाने पर मरीजों को 25 किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है. कच्ची और खराब सड़क के कारण गंभीर बीमारी या दुर्घटना झेलने वाले बहुत सारे मरीजों और गर्भवती महिलाओं को दुर्गम रास्तों के बीच ही अपनी जान गंवानी पड़ती है.

केन्द्र सरकार ने मातृ मृत्यु-दर और शिशु मृत्यु-दर घटाने के लिए एनएचआरएम यानि ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ चलाया है. इसी तर्ज पर गुजरात सरकार ने भी एसएचआरएम यानि ‘राज्य ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ छेडा हुआ है. मगर यहां से ऐसा लगता है जैसे न केवल स्वास्थ्य सेवा बल्कि बुनियादी सहूलियत से जुड़ी हर एक नीति, योजना और कार्यक्रम से मालधारियों का यह बरदा इलाका छूटा हुआ है. कुछ ऐसे, जैसे 21वी शताब्दी के 10 साल गुजरने के बाद भी यह इलाका 1970 के जमाने में ही छूट गया हो.

 

http://raviwar.com/news/321_forest-0f-gir-maldhari-shirish-khare.shtml


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close