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न्यूज क्लिपिंग्स् | विलुप्त हो रहीं औषधीय जड़ी-बूटिया

विलुप्त हो रहीं औषधीय जड़ी-बूटिया

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published Published on Apr 12, 2010   modified Modified on Apr 12, 2010

इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड के पहाड़ों पर पायी जाने वाली जीवनरक्षक जड़ी-बूटियों की कई प्रजातिया खत्म होने के मुहाने पर हैं। कई औषधीय पौधे को तो इंडेंजर्ड प्लाट की श्रेणी में डाल दिया गया है। इनकी सूची भी तैयार कराई जा रही है। समय रहते इनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो ये हमें सलाम कर जायेंगे। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के आकड़े तो यही कहते हैं। वनस्पति विज्ञानियों की मानें तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं झारखण्ड आदि राज्यों में सफेद मूसली, शतावर, पापड़, अगड़ी, बड़ी हंसिया व हरसिंगार जैसी महत्वपूर्ण जड़ी-बूटिया बहुतायत पायी जाती थीं। इसके अतिरिक्त वन तुलसी, इंद्रजौ, रोहणी, धामिन से इन प्रदेशों की पहाड़िया समृद्ध थीं लेकिन अब धीरे-धीरे ये विलुप्त हो रही हैं। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में पायी जाने वाली लगभग पांच हजार प्रजातियों जिनमें चमेली और गूलर आदि भी शामिल हैं को इंडैंजर्ड प्लाट यानी विलुप्तप्राय की श्रेणी में डाल दिया गया है। इसमें मध्य प्रदेश में पाया जाने वाला डायोस्पाइरॉस, होलियाना, जैसमिनम प्रिविपटियोटेस्टिम [चमेली की एक प्रजाति] फाइकस कपुलेटा [गूलर की एक जाति] और उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली इंडो पिप्टाडेनिया शामिल हैं। इसमें डायोस्पाइरास होलियाना को अंतिम बार 1922 के देखा गया था, जबकि जैसमिनम प्रिविपटियोटेस्टिम 1859 के बाद देखा ही नहीं गया। भारतीय वनस्पतिक सर्वेक्षण के अनुसार ऐसे संकटग्रस्त पौधों की लिस्ट बनायी जा रही है जिनका अस्तित्व संकट में है। ताकि उन्हें चिंहिंत कर खत्म होने से रोका जा सके। भारतीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रो. जीके पाण्डेय का कहना है कि विश्व के 12 वृहत्तम विविधपूर्ण देशों में एक भारत में लगभग 45 हजार पौधों की और 89 हजार जन्तुओं की प्रजातिया मौजूद हैं। पेड़ पौधों की जाति को विकसित होने में हजारों वर्ष लग जाते हैं यदि इन्हें संरक्षित नहीं किया गया मानव जाति खतरे में न पड़ जाये।

बेरोकटोक हो रहा दोहन- इलाहाबाद के प्रसिद्ध हकीम मो. शरीफ का कहना है कि देश की पहाड़ियों पर औषधीय पौधों का भंडार है। जो जड़ी बूटियों के जानकार हैं वे इनका दोहन कर रहे हैं। कलिहारी की जड़ पहले जंगलों में खूब पायी जाती थी, जिसका गठिया के इलाज में प्रयोग होता है। इसी तरह अन्य कई साध्य-असाध्य बीमारियों में यहा के औषधीय पौधे रामबाण साबित होते थे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6331246.html


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