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न्यूज क्लिपिंग्स् | बुंदेलखंड: बादल मेहरबान, किसान फिर भी परेशान

बुंदेलखंड: बादल मेहरबान, किसान फिर भी परेशान

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published Published on Aug 19, 2021   modified Modified on Aug 19, 2021

-डाउन टू अर्थ,

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में झांसी जिले के किसान सुबोध यादव पिछले तीन दशक से सफल किसान के रूप में अपनी फसलों से संतोषजनक पैदावार ले रहे थे। लेकिन पिछले पांच सालों में मौसम, खासकर बारिश के बदले मिजाज ने खरीफ की फसलों के उनके हिसाब किताब गड़बड़ा दिया है।

इस साल उन्होंने बारिश के पहले अपने नौ बीघा खेत में दस हजार रुपए की लागत से तिल और मूंगफली की बुआई की। बुआई के बाद पहले दिन की बारिश से अच्छी उपज होने की उम्मीद जगी, लेकिन अगले चार दिन की तेज बारिश में पूरा बीज सड़ कर खराब हो गया। इस नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने बारिश की अधिकता का लाभ, धान की उपज से लेने की कोशिश की। उसी खेत में धान रोपने के बाद अब 15 दिन से निकली तेज धूप ने खेत में भरा पानी सुखा दिया। आलम यह है कि अब धान की फसल, पानी के अभाव में पीली पड़ने लगी है। 

कुछ इसी तरह की कहानी, मऊरानीपुर के धवाकर गांव के नवोदित किसान रोहित शर्मा की है। हाल ही में कोरोना संकट के दौरान गुजरात से अपना काम धंधा समेट कर गांव और खेती बाड़ी की ओर रुख करने वाले शर्मा ने भी दस बीघे में तिल की बुआई की थी, लेकिन बारिश की अधिकता ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया।
 
खरीफ में तिल की फसल से ही उम्मीद पाले बैठे शर्मा ने धान बोने के बारे में न सोचा था और ना ही इसकी बुआई की कोई तैयारी की थी। नतीजा, अब उन्हें खरीफ के दौरान अपना खेत खाली रखना पड़ा है। 
 
मानसून के असमान वितरण के कारण यह दशा बुंदेलखंड के अधिकांश किसानों की है। पिछले दो दशकों में किसानों की बदहाली के लिये बदनाम हो चुके बुंदेलखंड इलाके में इस साल इंद्रदेव खूब मेहरबान दिखे। बावजूद इसके, बारिश की मेहरबानी से इलाके के किसानों की दुश्वारियां कम होती नजर नहीं आ रही है। जानकारों की राय में इसकी मूल वजह, जलवायु परिवर्तन है, जिसका स्पष्ट असर अब, विदर्भ से लेकर बुंदेलखंड तक, क्षेत्रीय आधार पर दिखने लगा है।
 
बुंदेलखंड में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की अगर बात करें तो भौगोलिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों तक सीमित यह इलाका, लगातार सातवें साल, बारिश के असमान वितरण का सामना कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के इस मूल गुण का सीधा असर इलाके के फसल चक्र और इससे प्रत्यक्षत: जुड़े किसानों की आजीविका पर पड़ना स्वभाविक है।
 
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अकेले झांसी जिले में ही इस साल 15 अगस्त तक 550 मिमी बारिश दर्ज की गयी है। जो कि पिछले साल (2020-21) में पूरे बारिश के मौसम में हुई कुल 402 मिमी बारिश से ज्यादा है। वहीं 2019-20 में यह आंकड़ा 562 मिमी था।
 
2013-14 के बाद बुंदेलखंड के इस सबसे बड़े जिले में सात साल के दौरान बारिश का स्तर लगातार गिरा है। विभाग के अनुसार 2013-14 के दौरान झांसी में 1300 मिमी दर्ज की गयी बारिश का स्तर लगातार घटते हुये 2020-21 में 402 मिमी तक आ गया।
 
इससे इतर पास में स्थित मध्य प्रदेश के दतिया जिले में जून के पहले सप्ताह में 430 मिमी बारिश दर्ज हुई, जबकि अगस्त के दूसरे सप्ताह में यह जिला 25 मिमी बारिश की कमी से जूझता नजर आया। वहीं मध्य प्रदेश के ही छतरपुर जिले के शहरों में सात दिन तक हुयी लगातार बारिश ने जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिया जबकि इसी जिले के कुछ गांवों में बेहद कम बारिश ने किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। 
 
बारिश के असमान वितरण का यह गहराता संकट, कृषि और पर्यावरण क्षेत्र के जानकारों की चिंता का सबब बन गया है। फसल चक्र के शोध से जुड़ी हैदराबाद स्थित अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘‘इक्रीसेट’’ के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रमेश कुमार की अगुवाई में पिछले कुछ सालों से बुंदेलखंड में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर कृषि पद्धति में बदलाव पर अध्ययन जारी है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


निर्मल यादव, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/agriculture/farming/bundelkhand-excess-rainfall-upset-farmer-78517


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