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न्यूज क्लिपिंग्स् | कोविड: सरकारी वादों के बावजूद निकट भविष्य में वैक्सीन की किल्लत का समाधान नज़र नहीं आता

कोविड: सरकारी वादों के बावजूद निकट भविष्य में वैक्सीन की किल्लत का समाधान नज़र नहीं आता

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published Published on May 31, 2021   modified Modified on May 31, 2021

-द वायर,

अपनी गफलत भरी वैक्सीन नीति के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभी और अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है. देश के 29 राज्यों को अलग-अलग वैश्विक वैक्सीन निर्माताओं से सीधे वैक्सीन खरीदने की इजाजत देने का उनका फैसला- जिसे ज्यादातर लोगों द्वारा अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के तौर पर देखा जा रहा है- भारत में उल्टा पड़ने वाला है.

फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी वैश्विक कंपनियों की भारतीय राज्यों के साथ अलग-अलग बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. उन्होंने किसी एकल एजेंसी के साथ ही बात करने की अपनी इच्छा जताई है. इसका मतलब यह है कि वे चाहती हैं कि केंद्र सरकार ही भारतीय राज्यों की जरूरतों को जोड़कर उस हिसाब से उनकी तरफ से बातचीत करे.

इसका पहला संकेत तब आया जब महाराष्ट्र जैसे राज्यों द्वारा मंगाई गई निविदाओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. अमेरिकी दवाई निर्माता कंपनी मॉडर्ना ने पंजाब से कहा कि वह राज्य द्वारा जारी टेंडर पर जवाब देने की अपेक्षा सीधे केंद्र से बात करना पसं
द करेगी
.

वैश्विक टेंडर की प्रक्रिया खरीददारों के बाजार में काफी कारगर होती है, जिसमें बड़े खरीददार सीमित संख्या में होते हैं और विक्रेताओं की संख्या ज्यादा होती है, जो अपने उत्पाद को बेचने के लिए एक दूसरे से प्रतियोगिता करते हैं. लेकिन वैक्सीन के मामले में बाजार का स्वरूप विक्रेता बाजार वाला है, जिसमें 150 से ज्यादा देश अपनी जनता का जितनी जल्दी हो सके टीकाकरण करवाने के लिए टीके की खरीद के लिए व्याकुल हैं.

वैश्विक स्तर पर विक्रेताओं की संख्या कम है और तेज गति से बड़ी जनसंख्या का टीकाकरण करवाने के हिसाब से उत्पादन क्षमता सीमित है. इन स्थितियों में वैश्विक वैक्सीन कंपनियों के पास अलग-अलग भारतीय राज्यों से वैक्सीन सौदा करने लायक धैर्य नहीं है. सिर्फ संप्रभु राष्ट्रीय सरकारों के साथ सीधे सौदा करने को ही वे तरजीह दे रही हैं.

यह बेहद विचित्र और समझ से परे है, मगर हकीकत यह है कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां एक संप्रभु राष्ट्र ने खुद को 29 इकाइयों में विभक्त कर दिया है और हर इकाई वैक्सीन खरीदने के लिए अलग-अलग वैक्सीन कंपनियों का दरवाजा खटखटा रहा है.

इससे बिल्कुल उलट तरीके से अफ्रीकी देशों ने एक अफ्रीकी यूनियन ट्रस्ट का निर्माण किया है जो जॉनसन एंड जॉनसन से 22 करोड़ तक टीके खरीदने के लिए सामूहिक तौर पर बातचीत कर रहा है. यहां तक कि यूरोपियन यूनियन भी संघ के 27 देशों की तरफ से वैक्सीन खरीद संबंधी बातचीत कर रहा है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उल्टे रास्ते पर चल रहे हैं और अब वैश्विक वैक्सीन कंपनियां उन्हें अपना अतार्किक रवैया छोड़ने और समझदारी दिखाने के लिए मजबूर कर रही हैं.

भारत के विदेश मंत्री अमेरिकी कारोबारी संघों के साथ इस गतिरोध पर चर्चा करने के लिए अमेरिका में हैं, जिन्होंने ‘आत्मनिर्भर’ भारत को कोविड की विनाशकारी लहर से निबटने में मदद करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है.

अमेरिकी वैक्सीन कंपनियां अपने देश की जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने, जिसमें वैक्सीन का एक बड़ा स्टॉक तैयार करना भी शामिल है, की प्रक्रिया में हैं. उनकी क्षमता को खाली होने में कुछ महीने लग ही जाएंगे. निकट भविष्य में भारत को कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पुतनिक की मौजूदा सप्लाई से ही काम चलाना पड़ेगा.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


एमके वेणु, http://thewirehindi.com/171444/covid-19-vaccine-market-pharma-companies-modi-govt/


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