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न्यूज क्लिपिंग्स् | ओडिशा के किसान चाहते हैं नारियल की मंडी और उससे जुड़े उद्योग

ओडिशा के किसान चाहते हैं नारियल की मंडी और उससे जुड़े उद्योग

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published Published on Jun 7, 2021   modified Modified on Jun 9, 2021

-गांव कनेक्शन, ओडिशा के पुरी जिले के किसान भक्त बंधु दास के पास नारियल के 500 से ज्यादा पेड़ हैं। उनकी तरह उनके गांव और जिले के ज्यादातर किसान नारियल के बाग ही लगाते हैं, यही उनका मुख्य पेशा है। नारियल मोटी खेती है, जिसमें नुकसान की आशंका न के बराबर होती है। किसानों का कहना अगर वहां नारियल की मंडी लगने लगे तो नारियल से जुड़े उद्योग लग जाएं तो उन्हें काफी फायदा हो सकता है। ओडिशा में धान के अलावा नारियल की मुख्य तौर पर खेती होती है। तटीय इलाकों में नारियल मुख्य फसल है।

ओडिशा पुरी ज़िले के निमापाड़ा ब्लॉक में दासपुरुषोत्तम पुर गांव के किसान भक्त बंधु दास (50 वर्ष) बताते हैं, "पहले उनके पास 1000 से ज्यादा नारियल के पेड़ थे लेकिन 2019 में आए चक्रवात (फोनी तूफान) में भारी नुकसान हुआ था और 500 पेड़ टूट गए थे। हमारी तरह तमाम दूसरे किसानों के भी पेड़ टूट गए थे।" दास के मुताबिक एक नारियल साल में 4 बार फल देता है। वो कहते हैं, " इन्हीं 500 पेड़ों से साल में करीब 15000-20000 नारियल मिलते हैं। एक नारियल बाजार में 10-20 रुपए में बिक जाता है।"

दास आगे कहते हैं, " अभी या तो व्यापारी हमारे तक आते हैं या हम उनसे संपर्क करते हैं। अगर नारियल किसानों के मिए मंडी बन जाए तो हमको एक बड़ा बाजार मिल जाएगा।" दास चाहते हैं कि सरकार न सिर्फ मंडी का इंतजाम कराए बल्कि नारियल से बने उत्पादों, तेल आदि के व्यापार पर भी जोर दे ताकि नारियल किसानों की आमदनी बढ़ सके।"

तटीय इलाकों होती है नारियल की खेती नारियल की खेती मुख्य तौर पर तटीय इलाकों में होती है। ओडिशा में पुरी के अलावा जगतसिंहपुर और केन्द्रापड़ा कई जिले इसका गढ़ हैं। भक्त बंधु दास कहते हैं, "मेरी समझ से भारत में 90 प्रतिशत नारियल का उत्पादन तटिय और समुद्री क्षेत्रों से होता है। क्योंकि नारियल की खेती के लिये बालुई या दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।" उनके मुताबिक जून और जुलाई नारियल के पेड़ लगाने का सबसे अच्छा समय होता है। इस दौरान नर्सरी में बीज का अंकुरण भी अच्छा होता है। नारियल को पौधे को बढ़ोतरी फल आने के लिए यूरिया, फॉस्फेट और पोटाश जरुरी है। दास कहते हैं, "हम लोग इन खादों का उपयोग वैज्ञानिकों के मानक के अनुसार साल में दो बार करते हैं। पहली बार जनवरी और फरवरी में दूसरी बार साल के आखिर में नवम्बर और दिसम्बर में पौधों में खाद दी जाती हैं।" दास कहते हैं, "हम अपने हर एक पेड़ को अपने बच्चे की तरह से पालते पोसते है।

नारियल के लिए सबसे जरुरी है। पेड़ों पर सूरज की रौशनी भी बहुत अच्छे से पड़नी चाहिए। एक नारियल का पौधा 3 साल में फल देने लायक़ तैयार होता है।" पुरी जिले में ही उच्छूपुर के किसान सरत कुमार दास (45 वर्ष) भी नारियल की मंडी और उससे जुड़े उद्योगों को बढ़ावा देने की बात करते हैं। ओडिशा के 15 से ज्यादा जिलों में कार्यरत किसानों के संगठन नव निर्माण किसान संगठन के राष्ट्रीय संयोजक के अक्षय कुमार जगतसिंहपुर से गांव कनेक्शन को बताते हैं, " फोनी के दौरान नारियल किसानों को बहुत नुकसान हुआ था, दुर्भाग्य बहुत सारे किसानों को कोई मदद नहीं मिली। नारियल की खेती और कारोबार दोनों अंसगंठित हैं। ये इन्हें संगठित कर दिया जाए तो किसानों की आमदनी और जीवन दोनों पर असर पड़ेगा।" अक्षय सरकार को नारियल आधारित उद्योदों बढ़ावा देने की सलाह देते हैं।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


मो. फहाद, https://www.gaonconnection.com/kheti-kisani/odisha-farmers-want-coconut-market-49316


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