Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | उत्तर प्रदेशः नाराज किसान महती चुनौती

उत्तर प्रदेशः नाराज किसान महती चुनौती

Share this article Share this article
published Published on Apr 7, 2021   modified Modified on Apr 7, 2021

-आउटलुक,

“चुनावी वर्ष में भाजपा ने लंबी-चौड़ी नई कार्यसमिति बनाई, ताकि किसान नाराजगी, बेरोजगारी, विपक्ष की लामबंदी की काट तलाशी जा सके”

किसानों ने औरंगजेब से लेकर अंग्रेजों की सत्ता भी एक हद तक ही स्वीकार की थी। ऐसे में मुझे डर है कि कहीं हमारे खिलाफ वैसा ही माहौल न बन जाए।” उत्तर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के एक नेता की यह बेचैनी काफी कुछ बयान करती है। बिगड़ते जमीनी समीकरण का एहसास अब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी हो चला है। इसलिए 15 मार्च को जब प्रदेश भाजपा की नई कार्यसमिति की बैठक हुई तो उसमें कृषि कानूनों से पैदा हुई नाराजगी को संभालने की चर्चाएं ही छाई रहीं। कार्यसमिति की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “हम सभी किसान परिवारों से हैं, सरकार किसी भी मुद्दे को सुलझाने के लिए तैयार है। कृषि के लिए जो भी संशोधन जरूरी है, वह भी करने को तैयार है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) किसी भी हालत में नहीं खत्म होगा।”

दरअसल कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के प्रदेश में बढ़ते दायरे से भाजपा के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। आंदोलन का सबसे ज्यादा असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है। इसलिए भाजपा की नई कार्यसमिति में पश्चिमी यूपी के गुर्जर और जाट नेताओं को जगह दी गई है। प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को तो शामिल किया ही गया है, ताकि कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का संदेश दिया जा सके।

शायद यही वजह है कि प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने 11 मार्च को 323 सदस्‍यीय लंबी-चौड़ी कार्यसमिति की घोषणा की। आखिर उन्हें कई समीकरण जो साधने हैं। कार्यसमिति में पश्चिमी क्षेत्र से 58 सदस्यों को जगह दी गई है। इसमें गुर्जर वोट साधने के लिए पूर्व एमएलसी वीरेंद्र सिंह, जाटों को साधने के लिए हरवीर मलिक, पवन तरार और प्रियंवदा तोमर और सैनी प्रतिनिधित्व के लिए प्रमोद अट्टा को शामिल किया गया है।

हालांकि यह कवायद कितनी कामयाब होगी, यह तो आने वाले पंचायत चुनाव और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में ही दिखेगा। लेकिन भाजपा के नेता दबी जुबान में यह स्वीकार कर रहे हैं कि पश्चिमी यूपी की करीब 100 विधानसभा सीटों पर किसान निर्णायक असर रखते हैं और वहां भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। उनका कहना है कि स्थानीय स्तर पर अब बात केवल कृषि कानून की नहीं रह गई है। लोग यह कहने लगे हैं कि सरकार को हमने जिताया लेकिन वह हमारी सुनने को तैयार नहीं है।

यहां तक कि लोग भाजपा नेताओं का बहिष्कार भी करने लगे हैं। 17 फरवरी को मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली में हुई पंचायत में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के प्रमुख नरेश टिकैत ने कहा, “कोई भाजपा के मंत्री या किसी नेता को शादी वगैरह के कार्यक्रम में चिट्ठी देकर बुलाएगा तो अगले दिन 100 लोगों की रोटी का दंड भुगतना पड़ेगा। किसी भी कार्यक्रम में उन्हें कतई न बुलाया जाए।” इसका असर भी दिखने लगा है। कुछ नेताओं को निमंत्रण देकर उसे वापस लेने की मिसालें भी मिलने लगी हैं।

यही नहीं, किसान आंदोलन से प‌श्चिमी यूपी में जाट और मुसलमानों के बीच कड़वाहट भी  कम होती जा रही है, जो 2013 के दंगों के बाद गहरी हो गई थी और जिसका लाभ भाजपा को मिला। प्रदेश भाजपा के एक धड़े का यह भी मानना है कि अभी तक हुए नुकसान की भरपाई करना संभव नहीं है, इसलिए पार्टी को दूसरे क्षेत्रों और मुद्दों पर ज्यादा जोर देना चाहिए, ताकि किसानों की नाराजगी का नुकसान कम किया जा सके। इसलिए कार्यसमिति के गठन में पूर्वांचल के प्रतिनिधत्व पर खासा जोर दिया गया। इसके तहत काशी क्षेत्र से 57 और गोरखपुर क्षेत्र से 53 नेताओं को कार्यसमिति में जगह दी है। फिर वरिष्ठ नेताओं जैसे पूर्व मंत्री नरेंद्र कुमार सिंह गौड़, पूर्व विधायक श्याम देव राय चौधरी और पूर्व विधायक प्रभाशंकर पांडे को कार्यसमिति में शामिल कर असंतोष को रोकने की कोशिश की गई है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी खास जोर पूर्वांचल पर है, जहां 28 जिलों में 160 से ज्यादा विधानसभा सीटें हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को कुल 312 सीटों में 110 इसी इलाके से मिली थीं। खुद मुख्यमंत्री गोरखपुर से आते हैं। वे किसी भी सूरत में नहीं चाहेंगे कि पूर्वांचल से सीटों में कमी आए। वह भी तब, जब उनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसी वजह से भाजपा प्रदेश में “नए भारत का नया उत्तर प्रदेश” नारे के साथ विधानसभा चुनावों में उतरने की तैयारी कर रही है। इसके लिए कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि योगी आदित्यनाथ सरकार के चार साल की उपलब्धियों को घर-घर लोगों तक पहुंचाएं। इसके अलावा, प्रदेश के 826 ब्लॉकों में किसानों के पास प्रदेश अधिकारियों को भी भेजने की तैयारी है। पार्टी रेहड़ी, खोमचे वालों के लिए कोविड-19 के दौर में शुरू की गई कर्ज योजना का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की भी तैयारी में है।

आगामी पंचायत चुनावों और विधानसभा चुनावों में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर को भी बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी है। इसके संकेत राजनाथ सिंह के संबोधन में भी मिले। उन्होंने कहा, “यह भी संयोग है कि जब अयोध्या में ढांचा गिरा था तो प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, और जब राम मंदिर बन रहा है तो फिर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सरकार है।”

यह रणनीति कार्यसमिति के गठन में भी दिखती है। उसमें अयोध्या के पांच नेताओं को जगह मिली है। इनमें रघुनंदन चौरसिया, राम निहाल निषाद, रामू प्रियदर्शी, शक्ति सिंह और अनिल तिवारी शामिल हैं। सांसद लल्लू सिंह को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में जगह दी गई है। इसके अलावा कार्यसमिति में 55 से ज्यादा दलित और ओबीसी को जगह मिली है।

अगले एक साल में पार्टी का सबसे ज्यादा जोर चार साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की सख्त छवि, कोविड-19 के दौरान सरकार के किए काम, अयोध्या मुद्दा, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने जैसे कार्यों को लोगों तक पहुंचाने पर रहने वाला है। कार्यसमिति की बैठक में योगी आदित्यनाथ ने कहा, “वे (विपक्ष) अपराधियों के एनकाउंटर पर सवाल उठा रहे हैं, वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे हमेशा से अपराधियों का संरक्षण करते आ रहे हैं।” कृषि कानूनों पर विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा, “कांग्रेस केवल किसानों को बरगलाने का काम कर रही है।”

उधर, विपक्ष ने भी योगी सरकार का हमले तीखे कर दिए हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, “योगी सरकार प्रचारजीवी है। झूठे आंकड़े फैलाकर लोगों को भ्रमित करती है। राज्य में किसान, युवा, महिलाएं, कारोबारी सब परेशान हैं।"

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अब अपनी सक्रियताएं बढ़ा दी हैं। उनका कहना है, “2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा सबने पहचान लिया है। सरकार की जन-विरोधी नीतियां जनता के लिए परेशानी का सबसे बन गई हैं।”

वैसे, विपक्ष अभी बंटा हुआ है। अखिलेश कई बार किसी बड़े दल से गठबंधन न करने की बात कह चुके हैं। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी साफ किया है कि आगामी चुनावों में किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं होगा। यानी 2022 के विधानसभा चुनावों में 2019 के लोकसभा चुनाव जैसी स्थिति नहीं दिखने वाली है, जब सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था।

 कांग्रेस भी इस बार प्रदेश चुनाव पूरी तैयारी के साथ लड़ना चाहती है। पार्टी क्या किसी दल के साथ गठबंधन करेगी, इस पर अजय कुमार लल्लू का जवाब है, “इस बार हमने जनता के साथ गठबंधन किया है।” दूसरी तरफ सपा के मुखिया छोटे दलों के साथ गठबंधन की कोशिश में लगे हुए हैं। संकेत हैं कि राष्ट्रीय लोकदल, भीम आर्मी के अलावा उनके चाचा शिवपाल यादव भी पुराने गले-शिकवे मिटाकर हाथ मिला सकते हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर भी छोटे दलों को जोड़कर अपना कुनबा बड़ा कर रहे हैं। उन्हें एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का साथ मिल गया है। ओवैसी ने बलरामपुर में कहा कि एनकाउंटर में मारे गए लोगों में से 37 फीसदी मुसलमान हैं।

जाहिर है, भाजपा की नई कार्यसमिति के पास 2022 में पार्टी को दोबारा सत्ता में लाने की बड़ी चुनौती है। देखना यह होगा कि क्या 2019 के लोकसभा चुनावों से एक साल पहले 2018 में हुई कार्यसमिति की बैठक की तरह 15 मार्च को हुई बैठक पार्टी के लिए भाग्यशाली साबित होती है?

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


प्रशांत श्रीवास्तव, https://www.outlookhindi.com/story/uttar-pradesh-angry-farmers-face-great-challenge-2887


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close