Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | आर्थिक असमानता: पूंजीवाद बनाम समाजवाद

आर्थिक असमानता: पूंजीवाद बनाम समाजवाद

Share this article Share this article
published Published on Feb 25, 2022   modified Modified on Mar 4, 2022

-न्यूजक्लिक,

पिछले कुछ अर्से में आर्थिक असमानता में हुई भारी बढ़ोतरी के संबंध में काफी कुछ लिखा गया है और ऑक्सफैम जैसी संस्थाओं ने अनेकानेक, हैरत में डाल देने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। ये आंकड़े इनीक्वेलिटी किल्स शीर्षक की रिपोर्ट में पेश किए गए हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि महामारी के आने के बाद से, दस सबसे धनवानों की संपदा दोगुनी हो गयी है, जबकि दुनिया की 99 फीसद आबादी की आय अब, महामारी से पहले की स्थिति के मुकाबले नीचे खिसक गयी है। दुनिया की आबादी के सिर्फ 0.027 की कुल संपदा, 2020 में 450 खरब डालर थी यानी भारत के वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद के 15 गुने से ज्यादा पूंजीवाद में बढ़ती है।

आर्थिक असमानता

कुछ लोगों का दावा तो यह भी है कि आज की दुनिया की खासियत यह है कि इसमें ‘आर्थिक असमानता, मानवीय इतिहास के अपने शीर्ष पर पहुंच गयी है।’(एमआर ऑनलाइन,12 फरवरी) यह दावा असंभव तो हर्गिज नहीं है।चूंकि हरेक सामाजिक व्यवस्था को चलते रहने के लिए उत्पादन की जरूरत होती है और चूंकि उत्पादन जारी रखने के लिए उत्पादनकर्ताओं के लिए एक न्यूनतम स्तर पर गुजर-बसर करने की स्थिति जरूरी होती है, एक न्यूनतम स्तर पर गुजारे के साधनों तक तो सबसे गरीबों की भी पहुंच होती ही है, भले ही उनकी श्रम उत्पादकता का स्तर कितना ही नीचा क्यों न हो। और यह नियम पहले की समाज व्यवस्थाओं पर भी लागू होता था।

दूसरी ओर, आर्थिक अतिरिक्त उत्पाद का हिस्सा, जो श्रम उत्पादकता तथा उत्पादक मजदूरों की मजदूरी की दर के बीच के अंतर को दिखाता है, उत्पादक शक्तियों के विकास के साथ, श्रम की उत्पादकता में बढऩे के साथ बढ़ता रह सकता है।

चूंकि पूंजीवाद में उत्पादक शक्तियों का अब तक का सर्वोच्च विकास हुआ है, इसमें किसी को अचरज नहीं होना चाहिए कि पूंजीवाद के अंतर्गत आर्थिक असमानता यानी उत्पाद में आर्थिक अतिरिक्त मूल्य का हिस्सा आज पहले किसी भी समय के मुकाबले ज्यादा है।

इस तरह के ख्याल के खिलाफ स्वाभाविक रूप से यह दलील दी जाएगी कि उत्पादक शक्तियों के विकास के साथ, उत्पादक मजदूरों की मजदूरी की दर में भी तो बढ़ोतरी हो रही होगी और इसलिए, इसका कारण नहीं बनता है कि आर्थिक अतिरिक्त मूल्य के हिस्से तथा इसलिए, आम तौर पर इससे जुड़ी रहने वाली आर्थिक असमानता में, पूंजीवादी व्यवस्था में इससे पहले की उत्पादन पद्घतियों के दौर के मुकाबले बढ़ोतरी हो ही रही हो।

लेकिन, अगर हम पूंजीवाद को उसकी वैश्विक संस्थिति के साथ रखकर देखें, तो हम यह पाते हैं कि वह हाशियावर्ती क्षेत्रों में जो निरुद्योगीकरण पैदा करता है और इसलिए श्रम की विशाल सुरक्षित सेना पैदा करता है, उसके चलते श्रम की उत्पादकता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होने के बावजूद, वास्तविक मजदूरी बस गुजारे के स्तर के करीब ही बनी रहती है। इसका अर्थ यह होगा कि समग्रता में पूरी दुनिया के स्तर पर, अतिरिक्त मूल्य के पैमाने से परिभाषित असमानता पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत, उससे पहले की उत्पादन पद्घतियों के मुकाबले ठीक इसीलिए ज्यादा होगी कि पूंजीवादी उत्पादन पद्घति में उत्पादक शक्तियों का, उससे पहले वाली उत्पादन पद्घतियों के मुकाबले ज्यादा विकास होता है।

समाजवादी व्यवस्था में इतिहास में सबसे कम असमानता रही थी लेकिन इस अर्थ में भी असमानता पूंजीवादी उत्पादन पद्घति के चलते, मानव इतिहास के इससे पहले के किसी भी समय के मुकाबले आज इसलिए कहीं ज्यादा है क्योंकि अब से सिर्फ तीन दशक पहले ऐसे समाज मौजूद थे जहां असमानता, मानव इतिहास के उससे पहले के किसी भी समय के मुकाबले कम थी। जाहिर है कि मेरा इशारा सोवियत संघ तथा पूर्वी योरप के अन्य समाजवादी देशों की ओर है। इन देशों में समाजवाद के पराभव के बाद, इसका फैशन ही चल पड़ा है कि इन देशों की बात ऐसे की जाए, जैसे असमानता के पहलू से इन देशों और पूंजीवादी देशों में कोई अंतर ही नहीं रहा था और इन समाजों में भी जो अपरात्चिक यानी नौकरशाही थी, वह उसी तरह से अतिरिक्त उत्पाद पर पल रही थी, जैसे पूंजीपति अतिरिक्त उत्पाद पर पलते हैं। लेकिन, असमानता के पहलू से, इन दो समाज व्यवस्थाओं के बीच के अंतर को मिटा ही देने की यह कोशिश, एक बेईमानी भरी विचारधारात्मक तिकड़म है, जो तथ्यात्मक रूप से भी गलत है। उल्टे, असमानता के पहलू से इन दो व्यवस्थाओं के बीच का अंतर, सीधे-सरल शब्दों में कहें तो इतना ज्यादा था कि उसकी कल्पना तक कर पाना मुश्किल है।

ऑक्सफैम के मैक्स लॉसन ने यूगोस्लाव मूल के अर्थशास्त्री, ब्रांको मिलानोविच को उद्यृत कर यह दिखाया है कि पूर्वी योरपीय अर्थव्यवस्थाओं में असमानता (जिसके माप के लिए उन्होंने पीछे मेरे सुझाए पैमाने से भिन्न पैमाने का सहारा लिया है), उस समय में पश्चिमी जर्मनी, फ्रांस या डेन्मार्क में जितनी असमानता थी, उसके भी मुकाबले काफी कम थी, फिर अमरीका का तो जिक्र ही क्या करना, जहां जाहिर है कि असमानता और भी ज्यादा थी। मिलानोविच के अनुसार, इन समाजवादी अर्र्थव्यवस्थाओं में असमानता के कम रहने के कम से कम तीन कारण थे। इनमें पहला कारण था, बोल्शेविक क्रांति के बाद निजी तथा खासतौर पर सामंती संपत्तियों का बड़े पैमाने पर जब्त किया जाना और उसका किसानों के बीच बांटा जाना। भूमि का ऐसा ही पुनर्वितरण, दूसरे विश्व युद्घ के बाद अनेक पूर्वी योरपीय देशों में भी किया गया था। दूसरा कारक था, इन समाजों में सभी को मुफ्त शिक्षा तथा मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होना। हरेक छात्र को सिर्फ मुफ्त शिक्षा ही नहीं मिल रही थी बल्कि पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति भी दी जाती थी। और चूंकि इन देशों में कोई निजी कॉलेज या विश्वविद्यालय थे ही नहीं, सभी को समान शिक्षा हासिल होती थी और उन्नति के समान अवसर उनके लिए उपलब्ध होते थे। कथित रूप से ‘सम्पन्न’ पृष्ठïभूमि से आने के चलते, कुछ छात्रों को दूसरों से बेहतर मौके हासिल होने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। और तीसरा कारक था, गारंटीशुदा रोजगार। सभी के लिए रोजगार सुनिश्चित किया जाता था और इसलिए इसका कोई सवाल ही नहीं उठता था कि कुछ लोग बेरोजगार बने रहें और श्रम की सुरक्षित सेना मुहैया कराएं, जैसाकि पूंजीवाद के अंतर्गत होता है।

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


प्रभात पटनायक, https://hindi.newsclick.in/index.php/wealth-inequality-capitalism-versus-socialism


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close