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न्यूज क्लिपिंग्स् | क्या बाइडन भारत के लिए ट्रंप से बेहतर साबित होंगे?

क्या बाइडन भारत के लिए ट्रंप से बेहतर साबित होंगे?

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published Published on Nov 18, 2020   modified Modified on Nov 19, 2020

-इंडिया टूडे,

'मुफ्त में कुछ भी नहीं’

एश्ले जे. टेलिस
सीनियर फेलो, कार्नेगी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस, वाशिंगटन डीसी

बाइडन पारंपरिक अमेरिकी राष्ट्रपति के सांचे में ढले होंगे. विदेश से जुड़़े हुए मामलों में अमेरिका की अगुआई के प्रति फिर प्रतिबद्धता, हमारे गठबंधनों में फिर निवेश और बहुपक्षीय संस्थाओं के साथ फिर जुड़ाव होगा. अमेरिका-भारत संबंध अच्छे मुकाम पर हैं और ट्रंप जहां छोड़कर गए हैं, नया बाइडन प्रशासन उसकी रक्षा करना चाहेगा और साथ ही उसे आगे बढ़ाना चाहेगा.

अलबत्ता बाइडन तीन मुद्दों पर भारत को कोई छूट नहीं देंगे: 1) उदारवाद और भारतीय लोकतंत्र का बदलता चरित्र; 2) भारत की आर्थिक गिरावट का उनके साथ व्यापारिक संबंधों पर पडऩे वाला असर; 3) चीन और पाकिस्तान सरीखे देशों के प्रति अमेरिका का रवैया. पाकिस्तान के मामले में, मैं ज्यादा निरंतरता देखता हूं और उन्हें पुरानी अमेरिकी नीति पर निर्भर होते नहीं देखता, न्न्योंकि अमेरिका के लिए पाकिस्तान की उपयोगिता पहले के मुकाबले अब बहुत कम से कम रह गई है.

'साउथ ब्लॉक में राहत’

तन्वी मदान
सीनियर फेलो; डायरेक्टर, द इंडिया प्रोजेक्ट, ब्रूकिंग्ज इंस्टीट्यूशन, वाशिंगटन डीसी
बाइडन के कमान संभालने के साथ साउथ द्ब्रलॉक राहत की सांस लेगा क्योंकि अब अस्थिरता और उतार-चढ़ाव नहीं देखने होंगे. ट्रंप के विपरीत जिन्हें समझने के लिए भारत को जद्दोजहद करनी पड़ती थी, बाइडन अनजान नहीं हैं, भारत भी उन्हें बहुत अच्छे-से जानता है और बाइडन भारत को बहुत अच्छे-से जानते हैं. वे सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने और उन्हें साथ लेकर चलने में यकीन करते हैं.


चीन के मामले में, वे राष्ट्रों के सामूहिक नजरिए की तरफदारी करते हैं ताकि मिलकर एक साथ दबाव डाल सकें. वे अमेरिका को पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते में फिर से शामिल करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा है कि वे डब्ल्यूएचओ से बाहर नहीं जा रहे हैं और वे दूसरी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में मौजूद रहने की और ज्यादा कोशिश करेंगे. ये सब वे चीजें हैं जो भारत पसंद करेगा. बहुत अधिक अनजान आर्थिक पक्ष है और यह कि इस मामले में नए राष्ट्रपति का नजरिया क्या होने जा रहा है.

अमेरिका भारत को अपने खेमे में चाहता है’

अपर्णा पांडे
रिसर्च फेलो और डायरेक्टर, इनीशिएटिव ऑन द क्रयूचर ऑफ इंडिया ऐंड साउथ एशिया, हडसन इंस्टीट्यूट

भारत और अमेरिका के संबंधों में निरंतरता बनी रहेगी, जो बीते दो दशकों के दौरान लगातार आगे बढ़े हैं. रणनीतिक मोर्चे पर मैं फिलहाल कोई बदलाव नहीं देखती. चीन का कारक दुनिया भर पर मंडरा रहा है और अमेरिका अगर किसी एक देश को अपने खेमे में देखना चाहता है तो वह भारत है, और वह उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के केंद्र में रहेगा. मगर आर्थिक मामलों में, व्यापार शुल्क कम करने और भारत के अपनी अर्थव्यवस्था को और खोलने और कम संरक्षणवादी रवैया अपनाने सरीखी चिंताएं बनी रहेंगी. साथ ही, डेमोक्रेटिक प्रशासन होने के नाते, क्या वह भारत से मानवाधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और अपने आदर्शों को संविधानों पर खरा उतरने के लिए कहेगा? हां. लेकिन क्या यह एकमात्र मुद्दा होगा जो तय करेगा कि अमेरिका, भारत के साथ कैसे काम करे? नहीं.

'भारत के पास एक सुरक्षा कवच है—चीन’
माइकल क्रेपन 
को-फाउंडर और डिस्टिंग्विश्ड फेलो, स्टिमसन सेंटर, वाशिंगटन डीसी

जो बाइडन एक किस्म के अंकल हैं और कोई महान चमकती वस्तु नहीं हैं. हम उन्हें जानते हैं, यह भी कि उनकी सीमाएं क्या हैं, और वे अपनी तरफ से अच्छी से अच्छी कोशिश करेंगे. वे भले आदमी हैं और इस मामले में उनके और ट्रंप के बीच फर्क बहुत गहरा है. अमेरिका को ट्रंप प्रशासन के जख्मों को भरने में लंबा वक्त लगेगा.

भारत के पास अमेरिका के साथ अपने संबंधों में एक रक्षा कवच है—चीन. तो बाइडन सुरक्षा के क्षेत्र में भारत को मदद करने के लिए काम करेंगे. मुझे शक है कि आप बाइडन प्रशासन को कश्मीर समस्या का समधान पेश करते हुए देखेंगे—ऐसी आखिरी कोशिश जॉन एफ. केनेडी ने की थी और उसका नतीजा हम सब जानते हैं. बाइडन को उनकी टीम से जो सलाह मिलेगी वह यह कि इसके अलावा देश और विदेश में हमारे सामने और भी बहुत ज्यादा परेशानियां हैं.

'बेहतरी का रुझान  जारी रहेगा’
नवतेज सरना
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत

बाइडन की विदेश नीति मशीनरी भलीभांति बरकरार है. उनके मानक डेमोक्रेटिक विचार हैं जो ज्यादा व्यवस्थित होंगे, सहयोगियों और बहुपक्षीय मुद्दों और संस्थाओं से ज्यादा जुडऩे के बारे में होंगे. यह सब भारत के लिए अच्छा है. बाइडन चीन के प्रति सख्त होंगे, लेकिन अलग ढंग से—चीखते-चिल्लाते हुए नहीं. जहां तक भारत के साथ रणनीतिक मुद्दों की बात है, ट्रंप प्रशासन के साथ चार सालों की बदौलत चीजें काफी कुछ तय और पक्की हो चुकी हैं. व्यापार के मामले में मैं रवैयों में ढील आने और ज्यादा तर्कसंगत होने की उम्मीद करता हूं. मानवाधिकार के मुद्दे और ज्यादा उठेंगे. कश्मीर को बेहतर ढंग से संभालना होगा क्योंकि मानवाधिकार और धार्मिक सहिष्णुता के मुद्दे हैं जो उठाए जा सकते हैं. कुल मिलाकर, बाइडन के कार्यकाल में हम भारत-अमेरिका रिश्तों में आगे बढऩे का रुझान जारी रहते देख पाएंगे.

पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


राज चेंगप्पा, https://www.aajtak.in/india-today-hindi/cover-story/story/will-biden-prove-better-for-india-than-trump-1159353-2020-11-13


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