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न्यूज क्लिपिंग्स् | उत्तर प्रदेश: मंडियों की कमाई में आई 770 करोड़ रुपए की कमी, विवादित कृषि कानून बना प्रमुख कारण

उत्तर प्रदेश: मंडियों की कमाई में आई 770 करोड़ रुपए की कमी, विवादित कृषि कानून बना प्रमुख कारण

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published Published on Dec 19, 2021   modified Modified on Dec 23, 2021

-न्यूजलॉन्ड्री,

उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि बीते साल मंडी शुल्क में भारी कमी आई है. जवाब के मुताबिक जहां 2019-20 में मंडी शुल्क के रूप में 1390.60 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे, वहीं 2020-21 में घटकर 620.81 करोड़ रुपए हो गया.

मंडी शुल्क में आई इस कमी की एक वजह केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन विवादित कृषि कानूनों में से एक कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 को बताया गया है.

समाजवादी पार्टी के नेता और मुरादाबाद के बिलारी से विधायक मोहम्मद फहीम इरफान ने गुरुवार 16 दिसंबर को सवाल पूछा कि कृषि विपणन मंत्री बताने की कृपा करेंगे कि वित्तीय वर्ष 2017-18, 2018-19, 2019-20 एवं 2020-21 में उत्तर प्रदेश में मंडी परिषद को मंडी शुल्क के रूप में कितनी धनराशि प्राप्त हुई है? क्या सरकार के संज्ञान में है कि मंडी शुल्क के रूप में प्राप्‍त होने वाली धनराशि में कमी आई है?

इसका जवाब देते हुए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राम चौहान ने बताया कि 2017-18 में 1075.92 करोड़, 2018-19 में 1258.52 करोड़, 2019-20 में 1390.60 करोड़ और 2020-21 में 620.81 करोड़ रुपए मंडी शुल्क आया है.

राज्यमंत्री राम चौहान द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 2019-20 की तुलना में 2020-21 में करीब 770 करोड़ रुपए कम मंडी शुल्क प्राप्त हुआ.

जवाब में आगे मंत्री मंडी शुल्क में आई कमी के कारणों का जिक्र करते हैं. राम चौहान बताते हैं, ‘‘ई-नाम की स्थापना के साथ, 05 जून, 2020 को आया भारत सरकार का अध्यादेश जो बाद में 27 सितंबर को कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 में बदल गया. इसके बाद कृषि उत्पादों को व्यापार मंडी परिसर के बाहर करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई थी. मंडी परिसर के बाहर कृषि उत्पादों के व्यापार को मंडी शुल्क से मुक्त कर दिया गया था. वहीं मंडी परिसर के अन्दर कृषि उत्पादों के व्यापार पर मंडी शुल्क घटाकर 2 प्रतिशत से 1 प्रतिशत कर दिया गया है. साथ ही 45 फल-सब्जी को मंडी शुल्क से मुक्त किया गया है. इन वजहों से 2021 में मंडी शुल्क की धनराशि में वित्तीय वर्ष 2020-21 में कमी आयी.’’

केंद्र सरकार तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस ले चुकी है. इन कानूनों के खिलाफ नवंबर 2020 से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान भी अपने घरों को लौट गए हैं. प्रदर्शन कर रहे किसानों के मन में इन तीनों कृषि कानूनों को लेकर कई आशंकाएं थीं. 'कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020' जिसका जिक्र राज्यमंत्री ने किया है इसको लेकर किसानों को आशंका थी कि इसके कारण मंडियां खत्म हो जाएंगी.

प्रदर्शन कर रहे किसानों का दावा था कि टैक्स नहीं देने की स्थिति में प्राइवेट खरीदार मंडी की तुलना में ज्यादा पैसे देकर कुछ सालों तक खरीदारी करेंगे. ऐसे में किसान मंडी से दूर होते जाएंगे और धीरे-धीरे मंडी खत्म हो जाएंगी. मंडी सिस्टम खत्म होने के बाद प्राइवेट खरीदार अपने हिसाब से खरीद करेंगे. प्रदर्शनकारी किसान इसके लिए बिहार के किसानों का उदाहरण देते हैं. जहां एमएसपी खत्म होने के बाद मंडियां खत्म हो गईं और किसान अपना उत्पादन औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं.

मंडी शुल्क खरीदारी करने वाले कारोबारियों को देना होता है. अलग-अलग राज्यों में मंडी शुल्क अलग-अलग हैं. जानकारों की माने तो मंडी शुल्क का इस्तेमाल मंडी समितियां ग्रामीण इलाकों में सड़क बनाने के साथ-साथ नए मंडियों के निर्माण पर भी करती हैं.

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मलिक मंडी शुल्क के इस्तेमाल को लेकर कहते हैं, ‘‘मंडी अधिनियम के मुताबिक जो मंडी शुल्क एकत्रित होगा उसे कृषि संबंधित शोध पर खर्च किया जाना था, किसानों के लिए स्ट्रक्चर बनेगा, किसानों को अलग-अलग सुविधाएं दी जाएंगी. समय-समय उन्हें उपहार दिए जाएंगे. और साथ ही किसानों के बच्चों को मंडी समिति छात्रवृति देगी. अधिनियम में उपरोक्त सभी बातें कही गई थीं. हालांकि यह सब औपचारिकता बनकर रह गया है. पहले किसानों के बच्चों को छात्रवृति मिलती थी, लेकिन अब मंडी के सचिव और उनके रिश्तेदारों के साथ-साथ कुछ लोगों तक सीमित रह गया है.’’

मलिक आगे बताते हैं, ‘‘यूपी में भवन और सड़क निर्माण के लिए तो कई संस्थाएं हैं लेकिन मंडी समिति भी किसानों को सुविधाएं देने के बजाय निर्माण का ही काम कर रही है. यूपी में तो मंडियां आवास बनवा रही हैं. जब बसपा की सरकार थी तो मंडियों ने कांशीराम आवास बनवाए, सपा की सरकार में लोहिया आवास बनवाए गए और बीजेपी सरकार दीनदयाल आवास बनवा रही हैं. इससे किसानों को क्या फायदा है? मंडी शुल्क के पैसे किसानों के हित पर खर्च होने चाहिए. हमारे यहां धान की नमी जांचने की जो मशीन है वो थर्ड क्लास है. उसे बदला जाए. वजन करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक कांटे क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं. आज भी तराजू और बाट से वजन करते हैं. मंडी अधिनियम भी यही कहता है.’’

कृषि कानूनों पर राज्यसभा में बहस के दौरान कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा था, ‘‘मंडियों में टैक्स किसान नहीं, खरीदार देता है. पंजाब में साढ़े छह प्रतिशत, हरियाणा में चार प्रतिशत टैक्स सरकार को मिलता है. हरियाणा-पंजाब में ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर आज अच्छा क्यों है. हर गांव में अच्छी सड़कें क्यों है? क्योंकि ये जो टैक्स जाता है उसका इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर, मंडियों और किसान के विकास पर खर्च होता है.’’

बीते दिनों 20 अगस्त को उत्तर प्रदेश विपणन राज्यमंत्री श्रीराम चौहान ने विधानसभा में ही नई मंडियों की स्थापना को लेकर पूछे गए सवाल पर बताया था, ‘‘जून, 2020 को पारित अध्‍यादेश/अधिनियम के प्रकाश में बदली हुई परिस्थितियों में परिसर के बाहर मंडी शुल्‍क की देयता नहीं रह गई है, जिसके फलस्‍वरूप मंडी की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में समिति की 58वीं बैठक जो 13 जून 2020 को हुई थी, उसमें निर्णय लिया गया है कि बदली हुई परिस्थितियों में नवीन निर्माण के स्‍थान पर पूर्व से सृजित अवस्‍थापना सुविधाओं की मरम्‍मत एवं आधुनिकीकरण पर बल प्रदान किया जाए.’’

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


बसंत कुमार, https://hindi.newslaundry.com/2021/12/19/yogi-government-agriculture-law-grain-market


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