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न्यूज क्लिपिंग्स् | अब लॉकआउट की वैधता पर बहस, श्रमिकों के प्रवेश पर रोक

अब लॉकआउट की वैधता पर बहस, श्रमिकों के प्रवेश पर रोक

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published Published on Jul 23, 2012   modified Modified on Jul 23, 2012
गुड़गांव. मारुति सुजूकी प्रबंधन ने मानेसर प्लांट में शनिवार शाम 6.15 बजे लॉकआउट का नोटिस चस्पा कर दिया। प्लांट में श्रमिकों के प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही लॉकआउट की वैधता को लेकर बहस शुरू हो गई है। कंपनी ने फिलहाल लॉकआउट के लिए सरकार से अनुमति नहीं ली है। इस मुद्दे को लेकर श्रमिक कोर्ट भी जा सकते हैं। अब यह मुद्दा गर्मागर्म बहस का बन चुका है।

असुरक्षा आधार को बनाया आधार

लॉकआउट के लिए कंपनी ने प्लांट में व्याप्त असुरक्षा को आधार बनाया है। नोटिस में कंपनी ने जाहिर किया है कि मानेसर प्लांट में काम करने की स्थिति नहीं है। कंपनी में सुपरवाइजरों और प्रबंधकों की जान को श्रमिकों से खतरा है। कामगारों ने प्लांट, भवन, उपकरण आदि पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया है। इस स्थिति में प्लांट में उत्पादन का काम करवाना संभव नहीं है।

वैध या अवैध

नोटिस में इस बात का जिक्र नहीं है कि लॉकआउट के लिए प्रदेश सरकार से अनुमति ली गई है या नहीं। हालांकि, गंभीर परिस्थिति में कंपनी को उसी तरह से लॉकआउट करने का अधिकार है, जिस तरह श्रमिकों को हड़ताल करने का। मगर, लॉक आउट औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत वैध है या अवैध, इसका फैसला बाद में लेबर कोर्ट करती है। नियमानुसार जिस कंपनी में 50 से अधिक कर्मी काम करते हैं, उसमें प्रबंधन द्वारा लॉकआउट का फैसला लेने से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है।

यूनियन के समक्ष रास्ता

कंपनी द्वारा स्वघोषित लॉकआउट को लेकर कर्मचारी यूनियन के लिए लेबर कोर्ट का रास्ता खुला है। यूनियन कंपनी के फैसले को चुनौती दे सकती है। ऐसी स्थिति में कंपनी को साबित करना होगा कि लॉकआउट वैध है। अवैध साबित होने की स्थिति में श्रमिकों को लॉकआउट अवधि का भी वेतन देना पड़ सकता है।

लॉकआउट नोटिस में घटनाक्रम

कंपनी ने बताया कि 18 जुलाई की सुबह 8.30 बजे श्रमिक जिया लाल ने सुपरवाइजर संग्राम किशोर मांझी के साथ हाथापाई की, प्रबंधन ने जिया लाल के निलंबन का आदेश जारी कर दिया, जिसे जिया लाल ने लेने से मना किया।जिया लाल ने यूनियन प्रतिनिधियों से संपर्क किया। यूनियन ने ए-शिफ्ट से लौट रहे कर्मियों को प्लांट नहीं छोड़ने का आदेश दिया।

इस बीच बी-शिफ्ट के कर्मी भी उनके साथ हो गए। इसी बीच प्रबंधन ने यूनियन प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई, जिसमें एचआर गुड़गांव प्लांट के वाइस प्रेसिडेंट सीएस राजू, एचआर मानेसर प्लांट के वाइस प्रेसिडेंट बिरेंद्र प्रसाद, जीएम अवनीश कुमार देव, जीएम अनिल गौड़ शामिल हुए। प्रबंधन ने यूनियन प्रतिनिधियों को समझाने की कोशिश की कि जिया लाल की हरकत को माफ नहीं किया जा सकता।

यूनियन प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी कि निलंबन आदेश वापस नहीं किया गया तो, परिणाम गंभीर होगा। यूनियन के आदेश पर शाम 6 बजे बी-शिफ्ट के कर्मी काम छोड़कर बाहर निकल आए और लोहे का रॉड, डंडे, शॉकर और लोहे का भारी समान लेकर सुपरवाइजरों और प्रबंधकों पर हमला कर दिया।जगह-जगह आग लगा दी।अवनीश देव के दोनों पैर तोड़ दिए, फिर आग लगा दी। नोटिस में कंपनी ने वर्ष 2011 में हुई श्रमिक हड़ताल का भी जिक्र किया है।

काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत

लॉकआउट औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947 के तहत लॉकआउट वैध होने की स्थिति में काम नहीं तो वेतन नहीं का नियम लागू होगा। लॉक आउट की अवधि में श्रमिकों को वेतन नहीं मिलेगा।यहां प्रबंधन ने केवल कर्मियों के प्रवेश पर रोक लगाई है। इसलिए काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत केवल श्रमिकों पर लागू होगा। सुपरवाइजर और प्रबंधकों पर यह सिद्धांत लागू नहीं होगा।


मानेसर प्लांट में लॉक आउट का फैसला लेने से पहले कंपनी प्रबंधन ने सरकार से अनुमति नहीं ली है। इस तरह के मामले में अंतिम फैसला लेने का अधिकार सरकार को है। परिस्थिति को देखकर सरकार फैसला लेती है। विरोध की स्थिति में सरकार मामले को लेबर कोर्ट में भेज सकती है।
जेपी मान, डिप्टी लेबर कमिश्नर


http://www.bhaskar.com/article/HAR-OTH-now-the-debate-on-the-legality-of-the-lockout-the-workers-stop-3557457.html


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