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न्यूज क्लिपिंग्स् | अस्तित्व बचाने को जूझ रहीं "सभ्यता की जननी"

अस्तित्व बचाने को जूझ रहीं "सभ्यता की जननी"

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published Published on Jun 23, 2015   modified Modified on Jun 23, 2015
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। जिनके आंगन में हजारों वर्षों से मानव सभ्यता फली-फूली, वे ही अपना अस्तित्व" बचाने को संघर्ष कर रहीं हैं। "सभ्यता की जननी" नदियों की हकीकत आज कुछ ऐसी ही है। जो हाल गंगा-यमुना का है वैसी पीड़ा में देश की 275 नदियां हैं।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि जीवनदायिनी नदियों की हालत सुधरने के बजाय बदतर हो रही है। इनको निर्मल और अविरल बनाने की राह में सबसे बड़ा गतिरोध उन राज्यों की उदासीनता है जिनको ये पीने का पानी देती हैं, जिनके खेतों को सींचती हैं और जिनके शहरों की गंदगी को बहाकर ले जाती हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश की 445 नदियों में से 275 नदियां प्रदूषित हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक देश के हर कोने में नदियां प्रदूषण के बोझ से दबी जा रही हैं। इन नदियों के अगर प्रदूषित खंड गिनें तो उनकी संख्या 302 है। स्थिति कितनी भयावह है इसका अंदाजा इससे लगता है कि देश में नदियों की प्रदूषित धारा की कुल लंबाई 12,363 किलोमीटर है।

नदियों के इन प्रदूषित खंडों को अगर एक ही दिशा में जोड़ दिया जाए तो प्रदूषण की यह धारा दिल्ली से न्यूयार्क तक पहुंच जाएंगी। अहम तथ्य यह है कि प्रदूषित नदियों की संख्या बीते पांच साल में दोगुनी हुई है। 2009 में लगभग सवा सौ नदियां ही प्रदूषित थीं।

नदियों में बहता है सीवेज

आखिर क्या वजह है कि नदियां इतनी तेजी से नाले में बदलती जा रही हैं? इनको अविरल और निर्मल बनाने में सबसे बड़ा गतिरोध क्या है? सबसे बड़ा गतिरोध है शहरों से निकलने वाला सीवेज जो अधिकांशतः साफ किए बगैर नदियों में बहता है। देश में 650 महानगर, शहर और कस्बे हैं जिनकी गंदगी इन नदियों में जा रही है।

वर्ष 2009 में इन शहरों से प्रतिदिन 38,254 मिलियन लीटर गंदगी नदियों में गिर रही थी जो अब बढ़कर 62,000 मिलियन लीटर प्रतिदिन हो गई है। जबकि देश में मात्र 18,883 एमएलडी सीवेज को ही साफ करने की क्षमता है। दरअसल शहरों को रोजाना जितने पीने के पानी की आपूर्ति होती है उसका 80 प्रतिशत सीवेज के रूप में बाहर आता है।

औद्योगिक इकाइयां 501 एमएलडी कचरा हैं डालती

नदियों को साफ रखने में दूसरा बड़ा गतिरोध है औद्योगिक गंदगी। देश की सभी नदियों में कितना औद्योगिक कचरा और गंदगी रोजाना प्रवाहित होती है इसके तो आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन गंगा में जाने वाली औद्योगिक गंदगी से इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक 764 प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयां गंगा में रोजाना 501 एमएलडी से अधिक गंदगी बिना साफ किए प्रवाहित करती हैं। इनमें अधिकांश कानपुर के पास जाजमऊ की टेनरियां हैं।

कानून का सख्ती से पालन नहीं

ऐसा नहीं है कि गंदगी रोकने के लिए कानूनी प्रावधान न हो। जल प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम कानून 1974 की धारा-24 के तहत किसी धारा या कुएं का इस्तेमाल प्रदूषित पदार्थ बहाने के लिए नहीं किया जा सकता। लेकिन प्रशासन ने कभी इन प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की कोशिश नहीं की।

राज्य सरकारें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए धन और बिजली की कमी का रोना रोती हैं लेकिन विडंबना यह है कि कई नदियों से जलविद्युत उत्पादन के बावजूद उन नदियों को साफ रखने को वे बिजली मुहैया नहीं करातीं। पर्यावरणविद नदियों पर बने बांधों को भी नदी पर्यावरण बनाए रखने के लिए बड़ा गतिरोध मानते हैं। इसके चलते जलीय जीव-जंतुओं का आवागमन बाधित होता है।

प्रदूषित नदियां

 

उत्तर प्रदेश- गोमती, हिंडन, काली, रामगंगा, राप्ती, रिहंद, साइ, सरयू, गंगा, यमुना, कोसी
उत्तराखंड- गंगा, सुसवा, धेला, भेल्लां, कोसी।
बिहार- गंगा, हरबोरा, मनुसमार, रामरेखा, सीरसिआ
दिल्ली- यमुना
हरियाणा- यमुना, घग्गर
झारखंड- बोकारो, दामोदर, जुमर, कारो, कोएल, नार्थ कोएल, सांख, सबर्णरेखा
पंजाब- घग्गर, सतलुज
छत्तीसग़ढ़- हसदेव, केलो, खारुन, महानदी, शिवनाथ
क्यों जरूरी है नदियों को बचाना

 

फिलहाल देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता सालाना 2,208 घन मीटर है। ब्रहमपुत्र और बराक नदी बेसिन में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 16,589 घन मीटर है जबकि यह साबरमती बेसिन में मात्र 360 घन मीटर है। अगर ब्रहमपुत्र और बराक को अलग रखें तो देश के बाकी भागों में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता मात्र 1583 घन मीटर है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1000 घन मीटर से कम होने पर चिंताजनक माना जाता है।

ब्रह्मापुत्र नदी को छोड़ दें तो उत्तर भारत में कोई भी ऐसी नदी नहीं है जो मौजूदा प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 2,209 घन मीटर के स्तर को बरकरार रख सके। फिलहाल देश में जल के कुल उपभोग में उद्योग जगत की हिस्सेदारी मात्र आठ प्रतिशत है। औद्योगिकीकरण तेज होने पर 2025 में यह बढ़कर 18 प्रतिशत होने का अनुमान है।

 


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