Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | इलेक्टोरल बॉन्ड: वित्त विधेयक बनाकर इसे राज्यसभा की निगहबानी से कैसे बचाया अरुण जेटली ने

इलेक्टोरल बॉन्ड: वित्त विधेयक बनाकर इसे राज्यसभा की निगहबानी से कैसे बचाया अरुण जेटली ने

Share this article Share this article
published Published on Jan 28, 2020   modified Modified on Jan 28, 2020
कानून मंत्रालय ने मोदी सरकार द्वारा जल्दबाजी में विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित लिये गये फैसले और इलेक्टोरल फंडिंग से जुड़े अन्य कानूनों में संसदीय प्रक्रिया के तहत किये गये बदलावों को आधिकारिक रूप से सहमति दी थी. मंत्रालय की तरफ़ से यह सब गड़बड़ियां की गई. हमें मिले दस्तावेज़ों में इस बात के पूरे साक्ष्य हैं कि मोदी सरकार द्वारा इस पर राज्यसभा को बाइपास करना असंवैधानिक, गैरकानूनी था.

इसमें शेल कंपनियों तक को गुप्त रूप से राजनैतिक दलों को असीमित चुनावी चंदा देने की छूट दे दी गई. यह और चिंताजनक बात है कि सरकार की तरफ़ से यह ग़ैरकानूनी रास्ता अपनाने के पहले अंदरूनी तौर पर क्या विचार-विमर्श किया गया कि इसका कोई आधिकारिक लेखा-जोखा सार्वजनिक रूप से मुहैया नहीं है. चर्चा को ‘अनौपचारिक चर्चा’ का नाम दिया गया जिसमें अज्ञात लोग शामिल रहे. यह सब कुछ पूरी तरह से ग़ैरकानूनी है क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की अवहेलना है और सरकार के कामकाज की नियमावली का उल्लंघन है.

कानून मंत्रालय द्वारा जारी किये गये दो पन्ने का एक दस्ब्तावेज हमें मिला है जिससे हमें पता चलता है कि कानून मंत्रालय ने सरकार के असंवैधानिक क़दम को सहमति देने के अपने फैसले को सरकार को दबे स्वर में यह सुझाव देते हुए न्यायसंगत ठहराया कि भविष्य में इस मामले को नज़ीर के तौर पर न देखा जाए.

2017 में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बजट पेश करने के दौरान अपने भाषण में पहली बार इलेक्टोरल बांड योजना की चर्चा की थी, जिसमें कारपोरेट घरानों, ट्रस्टों, एनजीओ व किसी भी व्यक्ति द्वारा राजनैतिक दलों को असीमित धनराशि गुप्त रूप से देने की छूट दी गई थी.

योजना को अमली जामा पहनाने के लिये तमाम कानूनी फेरबदल की ज़रूरत थी. सबसे विवादास्पद बदलाव कंपनी अधिनियम के अंतर्गत आने वाले ख़ास प्रावधान को ख़त्म करना रहा जिससे केवल लाभ में चल रही कंपनियों को ही राजनैतिक दलों को चुनावी चंदा देने की आज़ादी मिलती थी, शेल कपनियों (जो काग़ज़ों पर चलती हैं, पैसे का भौतिक लेन-देन नहीं करती) को यह अधिकार नहीं था. इस प्रावधान के तहत कंपनियां एक निश्चित सीमा तक ही चंदा दे सकती थी. साथ ही यह बाध्यता थी कि चुनावी चंदा किस दल को दिया गया, इस बात की जानकारी भी देनी होगी.

राज्यसभा में अल्पमत में होने की वजह से सत्तारूढ़ दल भाजपा को इस बात का अंदाज़ा था कि ऊपरी सदन में इस योजना को ज़रूरी समर्थन मिलने में मुश्किलें आ सकती हैं.

आरटीआई कार्यकर्ता व एनसीपीआरआई के सदस्य सौरव दास को सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मिले दस्तावेज़ों से यह ज़ाहिर होता है कि कैसे तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाते हुए योजना के बेहद विवादास्पद पहलुओं को धन विधेयक की श्रेणी में डाल दिया. संविधान के आर्टिकल 110 के अनुसार धन विधेयक को राज्यसभा में पारित कराने की कोई मजबूरी नही नहीं.

इन दस्तावेज़ों से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि अरुण जेटली के कार्यकाल में कारपोरेट कार्य मंत्रालय ने धन विधेयक के तौर पर इसकी वैधता की जांच के संदर्भ में कानून मंत्रालय की राय मांगी. कानून मंत्रालय ने एक तरफ़ जोर देते हुए कहा था कि यह धन विधेयक के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता, लेकिन बाद में रहस्यमयी ढंग से इसे अपनी सहमति भी दे दी.

नतीजतन यह जानते हुए भी कि चुनावी फंडिंग से जुड़ा कानून लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा नहीं है, इसे राज्यसभा की सहमति के बगैर पास किया गया. जहां भारतीय जनता पार्टी अल्पमत में थी.

कानून मंत्रालय व कारपोरेट मंत्रालय को हमने कई सवाल भेजा लेकिन उन सवालों का कोई जवाब नहीं आया. मंत्रालय की तरफ़ जवाब आने की स्थिति में इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
 
पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 

नितिन सेठी, https://www.newslaundry.com/2020/01/28/electoral-bond-arun-jaitley-finance-ministry-law-ministry-narendra-modi


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close