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न्यूज क्लिपिंग्स् | उजले दौर की 'स्याह' सच्चाइयां - कमलेंद्र कंवर

उजले दौर की 'स्याह' सच्चाइयां - कमलेंद्र कंवर

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published Published on Jun 2, 2016   modified Modified on Jun 2, 2016
सवाल केवल कानून-व्यवस्था के उल्लंघन का नहीं। सवाल नस्लवाद और रंगभेद के घृणित आरोप का है। सवाल कूटनीतिक संबंधों का है। और सवाल देश की अंतरराष्ट्रीय छवि का भी है। दिल्ली के वसंतकुंज इलाके में पिछले शुक्रवार को अफ्रीकी छात्र मसोंदा कितादा ओलिवर की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। हत्या का कारण इतना मामूली कि सुनने वालों को विश्वास तक ना आए। तीन गुंडा तत्व उसी ऑटोरिक्शा पर सवार होने की कोशिश कर रहे थे, जिससे ओलिवर यात्रा करना चाहता था और इतनी-सी बात पर हुए फसाद में उसकी हत्या कर दी गई। इसके बाद जैसे तूफान खड़ा हो गया। ओलिवर की हत्या को नस्ली हिंसा करार दिया गया और अफ्रीकी देशों ने इस पर भारत का कड़ा विरोध जताना शुरू कर दिया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस मामले को घृणित और जघन्य बताया है, लेकिन इसे नस्ली हिंसा मानने से इनकार किया है। मामला तब और आगे बढ़ा, जब दिल्ली के ही महरौली इलाके में इस बार कुछ अफ्रीकी लोगों पर एक स्थानीय टैक्सी चालक की पिटाई करने का आरोप लगा, जबकि अफ्रीकियों का कहना था कि हमला तो उन पर हुआ है। इसके विरोध में अफ्रीकी छात्रों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन भी किया और विदेश सचिव एस. जयशंकर को उनसे भेंट कर उन्हें मनाना पड़ा। स्वयं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस मामले में खेद जताया है। यानी अब ये मामला बहुत आगे बढ़ गया है।

जिस एक कड़वी हकीकत का हमें सामना करना ही होगा, वह यह है कि आज हजारों की तादाद में अफ्रीकी नागरिक भारत में काम या पढ़ाई के सिलसिले में रह रहे हैं और उन्हें लगातार किसी न किसी बहाने रंगभेद और नस्ली टिप्पणियों का शिकार होना पड़ता है। अफ्रीकी तो दूर, हमारे अपने देश के पूर्वोत्तरवासी भी इससे मुक्त नहीं हैं। दु:खद यह है कि इस तरह के मामलों में पुलिस भी त्वरित कार्रवाई करने में दिलचस्पी नहीं दिखाती है। कहीं न कहीं यह धारणा भी लोगों के मन में पैठ गई है कि अफ्रीकी लोग भारत में ड्रग्स व सेक्स संबंधी विभिन्न् आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। हाल के दिनों में हमने देखा कि रोड-रेज की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। आपराधिक प्रवृत्ति के लोग सड़कों पर खुलेआम घूमते रहते हैं और लोगों को निशाना बनाते रहते हैं। खासतौर पर दिल्ली तो हाल के सालों में इस मायने में बेहद असुरक्षित हो गई है, जहां महिलाएं तो क्या पुरुष भी स्वयं को सुरक्षित नहीं महसूस कर सकते। ऐसा देश की राजधानी में हो रहा है, यह निश्चित ही बेहद चिंता का विषय है।

 


दूसरी तरफ अफ्रीकी देशों ने इस मामले में खासी एकता का परिचय दिया। अफ्रीकी विद्यार्थियों के एक समूह ने तुरंत सड़कों पर उतरकर इसका विरोध किया। नई दिल्ली की यात्रा पर आए अफ्रीकी प्रतिनिधिमंडल ने भी इस संबंध में एक साझा वक्तव्य जारी करते हुए भारत सरकार से अनुरोध किया कि वह देश में बढ़ती नस्लवादी हिंसा और 'एफ्रो-फोबिया" पर नियंत्रण करने की कोशिश करे। उन्होंने सरकार से यह आग्रह भी किया कि इन घटनाओं के आलोक में भारत में प्रस्तावित अफ्रीका डे के समारोहों को कुछ समय के लिए आगे बढ़ा दिया जाए।

 

 


चूंकि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि इसके बाद दांव पर लग गई थी, इसलिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को सामने आकर आश्वस्त करना पड़ा कि अफ्रीकी विद्यार्थी भारत में पूरी तरह सुरक्षित हैं और उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह स्वयं प्रतिनिधिमंडल से मिलने पहुंचे और उसे शांत कराया। यह इस बात का द्योतक है कि मामला कितना गंभीर हो गया था और कूटनीति व विदेश नीति को अत्यंत महत्व देने वाली सरकार इसको लेकर कितनी चिंतित हो गई थी। यह दु:खद ही था कि इसकी प्रतिक्रिया में कॉन्गो स्थित भारतीयों पर भी हमलों की खबरें आईं। यह एक दुष्चक्र की तरह है।

 

 


चूंकि हम दक्षिण एशिया की एक बड़ी ताकत होने का दावा करते हैं, इसलिए हमारे लिए यह बेहद जरूरी है कि कानून-व्यवस्था की स्थिति चाक-चौबंद रहे। खासतौर पर राष्ट्रीय राजधानी में। और उसमें भी खासतौर पर नस्ली हिंसा के परिप्रेक्ष्य में। क्योंकि जब ऑस्ट्रेलिया या अन्य देशों में भारतवंशियों पर हमले होते हैं और अमेरिका में सिखों का अपमान किया जाता है तो हम भी उस पर कड़ी प्रतिक्रिया करते हैं। ताजा घटनाओं के बाद कहीं ऐसा ना हो कि विदेशी मूल के छात्र भारत आने से ही कतराने लगें, क्योंकि यह हमारी वैश्विक छवि को धूमिल करने के लिए काफी होगा। यहां हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज ऐसे अनेक न्यस्त स्वार्थ सक्रिय हैं, जो भारत की छवि पर कालिख पोतने के लिए तत्पर हैं।

 

 


ओलिवर की हत्या के बाद अफ्रीकी प्रतिनिधिमंडल ने बेहद सख्त शब्दों में एक साझा वक्तव्य जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि दिल्ली में भय और असुरक्षा के मौजूदा माहौल के मद्देनजर हमारे पास इसके सिवा कोई और विकल्प शेष नहीं रह जाता कि अफ्रीकी देशों से कहें कि वे अपने छात्रों को पढ़ाई करने के लिए भारत भेजना बंद कर दें। हमें भारत सरकार से उनकी सुरक्षा की गारंटी चाहिए। इसी के बाद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हरकत में आईं। दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि उसने कुछ संदिग्धों को गिरफ्तार किया है। लेकिन इस मामले में सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। अफ्रीकियों को गए साल फरवरी की वह घटना भी याद होगी, जब बेंगलुरु में तंजानिया की एक महिला के साथ मारपीट की गई थी और उसे निर्वस्त्र कर घुमाया गया था। यह विवाद एक सूडानी छात्र की कार द्वारा एक भारतीय महिला को टक्कर मारे जाने के बाद भड़का था। इससे पहले सितंबर 2014 में भी नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन के भीतर तीन अफ्रीकियों की पिटाई किए जाने का वीडियो सामने आया था, जिसने भारतीयों को शर्मसार किया था। जनवरी 2014 में ही दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन पर तत्कालीन आम आदमी पार्टी सरकार के एक मंत्री की अगुआई में अफ्रीकियों के निवास पर धावा बोला गया था।

 

 


अकेले जालंधर और फगवाड़ा में दो हजार से अधिक अफ्रीकी छात्र हैं, जो आए दिन रंगभेदी फब्तियों के शिकार होते हैं। पुणे के विभिन्न् शैक्षिक संस्थानों में भी कोई 1800 अफ्रीकी छात्र अध्ययनरत हैं। ये छात्र अमूमन भारतीयों के साथ घुलते-मिलते नहीं और अपने समुदाय तक ही सीमित रहते हैं। इस धारणा में कुछ हद तक सच्चाई है कि कुछ अफ्रीकी ड्रग तस्करी में लिप्त हैं। आज दिल्ली की तिहाड़ जेल में सौ से अधिक नाइजीरियाई विभिन्न् अपराधों के सिलसिले में कैद हैं। बहरहाल, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मोरक्को और ट्यूनिशिया की पांच दिनी यात्रा पर रवाना हुए हैं। खबरें हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जल्द ही मोजाम्बिक और दक्षिण अफ्रीका की यात्रा कर सकते हैं। उम्मीद है कि ये यात्राएं संबंधों को सुधारने में मदद करेंगी।

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं

 


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