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न्यूज क्लिपिंग्स् | उपजाऊ मिट्टी नासमझी और मनमानी से बन रही जहर

उपजाऊ मिट्टी नासमझी और मनमानी से बन रही जहर

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published Published on Jun 9, 2014   modified Modified on Jun 9, 2014
इटारसी। सोना उगलने वाले होशंगाबाद जिले की उपजाऊ मिट्टी किसानों की नासमझी और मनमानी की वजह से जहर में तब्दील होती जा रही है। बंपर पैदावार के मामले में पंजाब जैसे कृषि प्रधान प्रदेश को पीछे छोड़ने वाले जिले में कीटनाशक दवाओं के अंधाधुध प्रयोग से मिट्टी में मौजूद आर्गेनिक तत्वों का असंतुलन बढ़ता जा रहा है। इससे जहां पैदावार प्रभावित हो रही है वहीं रासायनिक तत्वों से पैदा अनाज के सेवन से मानव शरीर को नुकसान पहुंचने का खतरा भी बढ़ रहा है। निकट भविष्य में रासायनिक खेती के गंभीर दुष्परिणाम किसानों को भुगतना पड़ सकते हैं।

किसानों को नहीं परवाह

अधिकतम उत्पादन और जल्दी फसल तैयार करने के लालच में किसानों ने अंधाधुध तरीके से कीटनाशक दवाएं खेतों में डालना शुरू किया है। इससे तात्कालिक लाभ तो मिल रहा है लेकिन खेतों की मिट्टी में अम्लीयता बढ़ रही है। इससे निकट भविष्य में न केवल उत्पादन प्रभावित होगा, बल्कि उत्पादित अनाज के सेवन से मानव शरीर को भी नुकसान होने की आशंका है। कीटनाशकों के मामले में जिले के किसान वैज्ञानिकों की सलाह लिए बिना मनमर्जी से इसका उपयोग कर रहे हैं। पोषक एवं उर्वरक तत्वों की कमी होने के कारण किसानों ने अपने खेतों को जहरीला बना लिया है।

मृदा परीक्षण की चिंता नहीं

किसानों की सुविधा के लिए कृषि विभाग द्वारा पवारखेड़ा में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला संचालित की जा रही है। जहां मात्र पांच रूपए में खेतों की मिट्टी का सैंपल लेकर जांच की जाती है, लेकिन हजारों एकड़ रकबे वाले जिले में सालाना लगभग दस हजार किसान ही मृदा परीक्षण के लिए आते हैं। वैज्ञानिकों के बुलावे के बाद भी किसान इसमें रूचि नहीं ले रहे हैं। केन्द्र से किसानों को कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी निशुल्क दी जाती हैं।

पंजाब भुगत रहा नुकसान

दो दशक पहले तक पंजाब-हरियाणा की उपजाऊ जमीन भी कीटनाशक दवाओं के बेतहाशा उपयोग का खामियाजा भुगत रही है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अब हालात यह हैं कि पंजाब की जमीन धीरे-धीरे बंजर हो गई है। यहां तेजी से उत्पादन क्षमता में गिरावट आई है।

जैविक कृषि से परहेज

एक दौर में जैविक तत्वों, गोबर गैस एवं घरेलू उपायों से खेती करने वाले किसान अब जैविक खेती से परहेज करने लगे हैं। कृषि क्षेत्र में बढ़ी प्रतिस्पर्धा इसका बड़ा कारण है। प्राचीन भारत की कृषि पद्घति ऋ षि खेती भी किसान भूल चुके हैं। जिसमें पूरी तरह जैविक पदार्थो का उपयोग किया जाता रहा।

अंतर्राष्ट्रीय मानकों की अनदेखी

वैज्ञानिकों के अनुसार कीटनाशक दवाओं के उपयोग को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित किए गए हैं। इसके मुताबिक ही कीटनाशक दवाओं का छिड़काव होना चाहिए लेकिन नियमों के विपरीत कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक केंचुए, कीट-पतंगे एवं आर्गेनिक नष्ट हो रहे हैं।

क्या है मिट्टी का फार्मूला

बेहतर एवं संतुलित कृषि उत्पादन के लिए आदर्श मिट्टी में पीएच-7 का फार्मूला अपनाया जाता है। इसमें सभी जरूरी तत्वों का संतुलन शामिल है। इससे कम या ज्यादा की मिट्टी आदर्श नहीं मानी जाती। जिले में हो रहे परीक्षण में पता चला है कि अधिकांश खेतों की मिट्टी पीएच-7 के अनुरूप नहीं है। मिट्टी में जरूरी तत्वों की कमी के अलावा अम्ल की मात्रा बढ़ रही है। मिट्टी में कुल सोलह जरूरी तत्व होते हैं।

जैविक

इन तत्वों का अंसतुलन

जांच रिपोर्ट के अनुसार खेतों की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी आ रही है। आदर्श तौर पर यह मात्रा 180-200 प्रति किलो-हेक्टेयर होना चाहिए। इसके अलावा मिट्टी में जिंक की कमी भी आ रही है। धान के लिए जिंक संतुलन जरूरी है। इसकी कमी से धान के पौधे में चकते पड़ने लगे हैं। फॉस्फोरस भी मध्यम स्तर पर आ गया है। इसके अलावा पोटेशियम, कॉपर, मोलीविडेनम, सोडियम, मैग्नीज, आयरन भी तेजी से बढ़ रहा है। पोटेशियम(220ः300) से बढ़कर 500 की सीमा लांघ चुका है।

ये है नुकसान

पोटेशियम की बढ़त- दाने की चमक खत्म, फसल में रोग प्रतिरोधकता की कमी।

जिंक की कमी- पौधों का बीमार होकर पैदावार पर असर।

नाइट्रोजन की कमी- आर्गेनिक तत्वों की कमी से उत्पादन एवं फसल प्रभावित।

फॉस्फोरस की कमी- जड़ों का विकास रूकना।

चिंताजनक है स्थिति

कीटनाशक दवाओं का मनमर्जी से उपयोग करने की वजह से मिट्टी में पाए जाने वाले आर्गेनिक तत्वों को नुकसान हो रहा है। इससे फसलों के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। संभाग के किसान मृदा परीक्षण में भी रूचि नहीं लेते हैं। कई हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ने से खेत जहरीले होते जा रहे हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। निकट भविष्य में किसानों को इसके गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकते हैं।

जीएस बेले, सहायक मृदा परीक्षण अधिकारी

मृदा परीक्षण केन्द्र पवारखेड़ा।

फसलों में उपयोग होने वाले रासायनिक तत्व अनाज के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। इससे हार्टअटैक, त्वचा संबंधी रोग, रक्तचाप, शुगर सहित अन्य घातक बीमारियां हो सकती हैं। तेजी से बढ़ रही बीमारियों का एक बड़ा कारण यह भी है।

डॉ. केएल जैसवानी, वरिष्ठ चिकित्सक।

जागरूकता अभियान चलाएंगे

रासायनिक खेती की जगह किसानों को जैविक कृषि करने के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए वर्मी कंपोस्ट, नाडेप, बॉयोगैस प्लांट के साथ नीम का तेल, बेश्रम, तंबाखू की पत्तियों को निचोड़कर खेतों में छिड़काव करने की सलाह दी जा रही है। जिसे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।

पीके विश्वकर्मा, संयुक्त संचालक कृषि विभाग।

इटारसी। सोना उगलने वाले होशंगाबाद जिले की उपजाऊ मिट्टी किसानों की नासमझी और मनमानी की वजह से जहर में तब्दील होती जा रही है। बंपर पैदावार के मामले में पंजाब जैसे कृषि प्रधान प्रदेश को पीछे छोड़ने वाले जिले में कीटनाशक दवाओं के अंधाधुध प्रयोग से मिट्टी में मौजूद आर्गेनिक तत्वों का असंतुलन बढ़ता जा रहा है। इससे जहां पैदावार प्रभावित हो रही है वहीं रासायनिक तत्वों से पैदा अनाज के सेवन से मानव शरीर को नुकसान पहुंचने का खतरा भी बढ़ रहा है। निकट भविष्य में रासायनिक खेती के गंभीर दुष्परिणाम किसानों को भुगतना पड़ सकते हैं।

किसानों को नहीं परवाह

अधिकतम उत्पादन और जल्दी फसल तैयार करने के लालच में किसानों ने अंधाधुध तरीके से कीटनाशक दवाएं खेतों में डालना शुरू किया है। इससे तात्कालिक लाभ तो मिल रहा है लेकिन खेतों की मिट्टी में अम्लीयता बढ़ रही है। इससे निकट भविष्य में न केवल उत्पादन प्रभावित होगा, बल्कि उत्पादित अनाज के सेवन से मानव शरीर को भी नुकसान होने की आशंका है। कीटनाशकों के मामले में जिले के किसान वैज्ञानिकों की सलाह लिए बिना मनमर्जी से इसका उपयोग कर रहे हैं। पोषक एवं उर्वरक तत्वों की कमी होने के कारण किसानों ने अपने खेतों को जहरीला बना लिया है।

मृदा परीक्षण की चिंता नहीं

किसानों की सुविधा के लिए कृषि विभाग द्वारा पवारखेड़ा में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला संचालित की जा रही है। जहां मात्र पांच रूपए में खेतों की मिट्टी का सैंपल लेकर जांच की जाती है, लेकिन हजारों एकड़ रकबे वाले जिले में सालाना लगभग दस हजार किसान ही मृदा परीक्षण के लिए आते हैं। वैज्ञानिकों के बुलावे के बाद भी किसान इसमें रूचि नहीं ले रहे हैं। केन्द्र से किसानों को कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी निशुल्क दी जाती हैं।

पंजाब भुगत रहा नुकसान

दो दशक पहले तक पंजाब-हरियाणा की उपजाऊ जमीन भी कीटनाशक दवाओं के बेतहाशा उपयोग का खामियाजा भुगत रही है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अब हालात यह हैं कि पंजाब की जमीन धीरे-धीरे बंजर हो गई है। यहां तेजी से उत्पादन क्षमता में गिरावट आई है।

जैविक कृषि से परहेज

एक दौर में जैविक तत्वों, गोबर गैस एवं घरेलू उपायों से खेती करने वाले किसान अब जैविक खेती से परहेज करने लगे हैं। कृषि क्षेत्र में बढ़ी प्रतिस्पर्धा इसका बड़ा कारण है। प्राचीन भारत की कृषि पद्घति ऋ षि खेती भी किसान भूल चुके हैं। जिसमें पूरी तरह जैविक पदार्थो का उपयोग किया जाता रहा।

अंतर्राष्ट्रीय मानकों की अनदेखी

वैज्ञानिकों के अनुसार कीटनाशक दवाओं के उपयोग को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित किए गए हैं। इसके मुताबिक ही कीटनाशक दवाओं का छिड़काव होना चाहिए लेकिन नियमों के विपरीत कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी में मौजूद प्राकृतिक केंचुए, कीट-पतंगे एवं आर्गेनिक नष्ट हो रहे हैं।

क्या है मिट्टी का फार्मूला

बेहतर एवं संतुलित कृषि उत्पादन के लिए आदर्श मिट्टी में पीएच-7 का फार्मूला अपनाया जाता है। इसमें सभी जरूरी तत्वों का संतुलन शामिल है। इससे कम या ज्यादा की मिट्टी आदर्श नहीं मानी जाती। जिले में हो रहे परीक्षण में पता चला है कि अधिकांश खेतों की मिट्टी पीएच-7 के अनुरूप नहीं है। मिट्टी में जरूरी तत्वों की कमी के अलावा अम्ल की मात्रा बढ़ रही है। मिट्टी में कुल सोलह जरूरी तत्व होते हैं।

जैविक

इन तत्वों का अंसतुलन

जांच रिपोर्ट के अनुसार खेतों की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी आ रही है। आदर्श तौर पर यह मात्रा 180-200 प्रति किलो-हेक्टेयर होना चाहिए। इसके अलावा मिट्टी में जिंक की कमी भी आ रही है। धान के लिए जिंक संतुलन जरूरी है। इसकी कमी से धान के पौधे में चकते पड़ने लगे हैं। फॉस्फोरस भी मध्यम स्तर पर आ गया है। इसके अलावा पोटेशियम, कॉपर, मोलीविडेनम, सोडियम, मैग्नीज, आयरन भी तेजी से बढ़ रहा है। पोटेशियम(220ः300) से बढ़कर 500 की सीमा लांघ चुका है।

ये है नुकसान

पोटेशियम की बढ़त- दाने की चमक खत्म, फसल में रोग प्रतिरोधकता की कमी।

जिंक की कमी- पौधों का बीमार होकर पैदावार पर असर।

नाइट्रोजन की कमी- आर्गेनिक तत्वों की कमी से उत्पादन एवं फसल प्रभावित।

फॉस्फोरस की कमी- जड़ों का विकास रूकना।

चिंताजनक है स्थिति

कीटनाशक दवाओं का मनमर्जी से उपयोग करने की वजह से मिट्टी में पाए जाने वाले आर्गेनिक तत्वों को नुकसान हो रहा है। इससे फसलों के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। संभाग के किसान मृदा परीक्षण में भी रूचि नहीं लेते हैं। कई हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ने से खेत जहरीले होते जा रहे हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। निकट भविष्य में किसानों को इसके गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकते हैं।

जीएस बेले, सहायक मृदा परीक्षण अधिकारी

मृदा परीक्षण केन्द्र पवारखेड़ा।

फसलों में उपयोग होने वाले रासायनिक तत्व अनाज के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। इससे हार्टअटैक, त्वचा संबंधी रोग, रक्तचाप, शुगर सहित अन्य घातक बीमारियां हो सकती हैं। तेजी से बढ़ रही बीमारियों का एक बड़ा कारण यह भी है।

डॉ. केएल जैसवानी, वरिष्ठ चिकित्सक।

जागरूकता अभियान चलाएंगे

रासायनिक खेती की जगह किसानों को जैविक कृषि करने के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए वर्मी कंपोस्ट, नाडेप, बॉयोगैस प्लांट के साथ नीम का तेल, बेश्रम, तंबाखू की पत्तियों को निचोड़कर खेतों में छिड़काव करने की सलाह दी जा रही है। जिसे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।

पीके विश्वकर्मा, संयुक्त संचालक कृषि विभाग।

- See more at: http://naidunia.jagran.com/madhya-pradesh/itarsi-fertile-soil-of-ignorance-and-selfacting-poison-109862#sthash.x3tCXRxw.dpuf

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