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न्यूज क्लिपिंग्स् | किसानों को जागरूक करने में भी घोटाला, बिना जांचे एनजीओ को किया पेमेंट- मोहम्मद इमरान नेवी

किसानों को जागरूक करने में भी घोटाला, बिना जांचे एनजीओ को किया पेमेंट- मोहम्मद इमरान नेवी

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published Published on May 28, 2014   modified Modified on May 28, 2014
जगदलपुर. एक और गोलमाल। इस बार मामला बस्तर का। योजना थी एसएमएस भेजकर किसानों को जागरूक करने की। एनजीओ ने किसानों की फर्जी सूची बनाई और कृषि विभाग को सौंप दी। विभाग के अफसरों ने उसे 7 लाख 29 हजार 97 एसएमएस का भुगतान भी कर दिया। 27 से 29 पैसे प्रति एसएमएस के हिसाब से दो लाख रुपए से ज्यादा। यह जांचे बिना कि सूची सही है या नहीं और एसएमएस मिले भी या नहीं। भास्कर ने जब पड़ताल की तो काफी संख्या में मोबाइल नंबर बंद मिले या दूसरे राज्यों के मिले। जबकि यह योजना सिर्फ बस्तर जिले के किसानों के लिए ही थी। कई को तो एसएमएस मिले भी नहीं। अब विभाग पूरे मामले की जांच कराने की बात कह रहा है।  
 
एसएमएस के इस आत्मा प्रोजेक्ट नाम की योजना में फर्जीवाड़े की लगातार शिकायतें मिल रही थीं। भास्कर ने सूचना के अधिकार के तहत करीब 20 हजार नंबर हासिल किए, जिन पर वेनिक सेरो नाम के एनजीओ  ने लाखों एसएमएस भेजने का दावा किया था। रिकॉर्ड में यह बात सामने आई कि विभाग ने बिना वेरिफिकेशन के एनजीओ को लगातार भुगतान किया। वेनिक सेरो ने 29 अप्रैल 2013 को शाम 4.32 बजे 99 हजार से ज्यादा किसानों को एसएमएस किए। उसके ठीक छह मिनट बाद फिर 78 हजार से ज्यादा किसानों को एमएमएस किए गए। यानी छह मिनट में पौने दो लाख किसानों को एमएमएस।  जब विभाग से मिली सूची के आधार पर किसानों के मोबाइल नंबरों पर फोन किया गया तो 20 फीसदी से ज्यादा नंबर कई दिनों से बंद थे या आउटऑफ सर्विस मिले। इसके अलावा कई ऐसे नंबर भी मिले, जो किसानों के थे ही नहीं। कुछ नंबर तो मध्यप्रदेश के लोगों के निकले, जो कभी बस्तर नहीं आए थे। एक नंबर तमिलनाडु का निकला। ढाई सौ से ज्यादा नंबरों में एक भी नंबर ऐसे किसान का नहीं मिला, जिसे एनजीओ का संदेश मिला हो। 
 
मनमर्जी से जुटाए नंबर 
 
वेनिक सेरो के अध्यक्ष राधेकृष्ण का कहना है कि करीब सात हजार नंबर उन्हें कृषि विभाग से मिले थे। बाकी नंबर उन्होंने दिनेश कश्यप के चुनाव प्रचार के दौरान किए गए सर्वे और टेलीफोन कंपनियों से हासिल किए। राधेश्याम का तर्क यह है कि बस्तर जिले में रहने वाला व्यक्ति किसान तो होगा ही। उन्होंने यह स्वीकार किया है कि इसमें से कुछ नंबर गैर किसानों के भी हो सकते हैं। जब भास्कर ने मध्यप्रदेश, तमिलनाडु के नंबरों का जिक्र किया, तो उनका कहना था कि वह इसकी जांच करेंगे।  
 
साइंटिस्ट, सरकारी कर्मचारियों, छात्रों व अनपढ़ों को भेजा एसएमएस
 
मैं तो वैज्ञानिक हूं
 
सबसे पहले हमने मोबाइल नंबर 9826446778 पर कॉल किया। यह नंबर जगदलपुर में रहने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. देवशंकर का था। उन्होंने बताया कि इस नंबर पर आज तक उन्हें किसी प्रकार का कोई मैसेज कृषि विभाग से नहीं मिला है। उन्होंने बताया कि वे वैज्ञानिक हैं किसान नहीं।
 
मैं किसान नहीं हूं
 
9755312770 मोबाइल नंबर पर फोन सतना के रामप्रकाश ने उठाया। उन्होंने बताया कि वह किसान नहीं हैं। न ही खेती-किसानी से उनका कोई संबंध है।
 
भिंड में रहता हूं भैय्या
 
9893105741 नंबर पर कॉल करने पर फोन रामदास नामक व्यक्ति ने उठाया। उन्होंने बताया कि वह भिंड जिले के मछानी के रहने वाले हैं। किसानी से उनका दूर-दूर का रिश्ता नहीं है।
 
नंबर ही सेवा में नहीं हैं
 
8815046687 नंबर पर मैसेज भेजने की बात विभाग ने सूचना के अधिकार की जानकारी के तहत दी है यह नंबर सेवा में ही नहीं है। इसी तरह 9489086966 नंबर भी सेवा में नहीं मिला।
 
खेत ही नहीं किसान कहां से हो गया
 
9755986646 पर कॉल करने पर जगदलपुर निवासी कार्तिक ने फोन उठाया। उसका कहना था कि जब उनके पास खेत ही नहीं है तो वह किसान कैसे हो सकते हैं। इसी तरह 9165122655 पर एक महिला ने फोन उठाया उसने भी ऐसी ही बात कही।
 
मैं तो अनपढ़ हूं मैसेज कैसे पढ़ सकता हूं बाबू
 
8120843233 नंबर पर कांकेर जिले के कचरूराम किसान ने फोन उठाया उसने बताया कि वह अनपढ़ है और उसे पढऩा-लिखना आता ही नहीं है। ऐसे में अगर उसे कोई मैसेज भी मिला हो तो इसकी जानकारी उसके पास नहीं है।
 
यह थी योजना 
 
बस्तर जिले के किसानों को मौसम, बीमारियों समेत खेती से जुड़ी जानकारियां एसएमएस पर दी जाने वाली थी।  
 
इस तरह किया घपला  
 
  • एनजीओ ने विभाग को 20 हजार मोबाइल नंबरों पर एसएमएस भेजने की लिखित सूचनादी। कृषि विभाग के अफसरों ने बिना इसकी जांच किए भुगतान कर दिया। 
  • विभाग ने ऐसा कोई सिस्टम ही नहीं बनाया, जिसके माध्यम से वह यह जांच कर पाए कि वास्तव में एनजीओ किसानों को एसएमएस भेज भी रहा है या नहीं।
 
जिम्मेदार कहते हैं, जांच की थी 
 
20 हजार किसानों के नंबरों की एक साथ जांच करना संभव नहीं था। भुगतान के पहले हम कुछ नंबरों की रेंडम जांच करते थे। अगर एनजीओ ने घोटाला किया है, तो उसके रिकवरी भी की जा सकती है। नागेश्वरलाल पांडे, तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर कृषि  
 
बयान की सच्चाई 

कृषि विभाग के पास इन 20 हजार किसानों के फोन नंबर ही नहीं थे। जनसूचना अधिकारी ने एनजीओ से इसकी लिस्ट लेकर उपलब्ध कराई। लाभार्थी किसानों के नाम, पते तो विभाग के पास आज की स्थिति में भी नहीं हैं।
 
करेंगे कार्रवाई
 
जो नंबर विभाग के पास उपलब्ध हैं, उनका वेरिफिकेशन करवाया जाएगा। बिना पड़ताल के अगर एनजीओ को इसके लिए भुगतान करने की बात बात सही निकलती है तो संबंधित पर जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी। एपी पटेल, प्रभारी ज्वाइंट डायरेक्टर, कृषि विभाग

http://www.bhaskar.com/article/CHH-RAI-educate-farmers-in-sms-scam-4627767-NOR.html


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