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न्यूज क्लिपिंग्स् | कुपोषण से जूझता भारत- निकोलस क्रिस्तॉफ

कुपोषण से जूझता भारत- निकोलस क्रिस्तॉफ

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published Published on Oct 23, 2015   modified Modified on Oct 23, 2015
हर वर्ष की तरह इस बार भी मैं अपनी 'विन ए ट्रिप' यात्रा पर भारत आया। भारतीय गांवों की यात्रा के दौरान मेरे साथ थे प्रतियोगिता के विजेता स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ऑस्टिन मेयर।

इस यात्रा के मूल में यह सवाल था, 'आखिर क्या वजह है कि भारत के लाखों बच्चे शारीरिक-मानसिक तौर पर कुपोषित रह जाते हैं?'

भारत एक मजबूत लोकतंत्र हैं, जो मंगल तक अपना उपग्रह भेज चुका है। पर यहां के बच्चे अफ्रीका के निर्धनतम देशों की तुलना में कहीं ज्यादा कुपोषित हैं। लोकतंत्र की गंभीर विफलता का प्रतिनिधित्व करता भारत वैश्विक कुपोषण का केंद्र बन गया है।

सरकारी आंकड़ों के (दूसरे आंकड़े तो और भी ऊंचे हैं) मुताबिक 39 फीसदी भारतीय बच्‍चे कुपोषण से ग्रस्त हैं। इस मामले में भारत की हालत बर्किना फासो, हैती, बांग्लादेश या फिर उत्तर कोरिया जैसे देशों से भी बदतर है।

तकरीबन 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में कुपोषण की तस्वीर तो और भी भयावह है। खुद सरकारी आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं कि राज्य में पांच वर्ष से कम उम्र के ज्यादातर बच्चे कुपोषित हैं। 2015 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की हालत अफ्रीका के तमाम देशों से खराब है।

कुपोषण से शारीरिक विकास पर तो असर पड़ता ही है, इसका सबसे ज्यादा असर बच्चे के मानसिक विकास पर पड़ता है। बचपन में कुपोषण बच्चे के मानसिक स्वास्‍थ्य को वह नुकसान पहुंचाता है, जिसकी पूर्ति कभी नहीं हो सकती। कुपोषित बच्चे का दिमाग ठीक से विकसित नहीं हो पाता। यही वजह है कि बीच में पढ़ाई छोड़ने वालों में कुपोषित बच्चों का औसत ज्यादा होता है।

भारत के गांवों की यात्रा के दौरान मेरे साथी रहे बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के पोषण विशेषज्ञ शॉन बेकर कहते हैं, 'कुपोषण पर हमारे खास ध्यान की वजह यह नहीं कि इससे बच्चों का शारीरिक विकास बाधित होता है, बल्कि यह है कि कुपोषण से बच्चों के बौद्धिक विकास पर असर पड़ता है।

इतना ही नहीं, बच्चे इससे मौत के कगार पर पहुंच गए हैं।' इस यात्रा की बदौलत मुझे ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों को समझने का मौका मिला, जिनकी ओर अमूमन लोग कम ध्यान देते हैं। फिर, जब लाखों बच्चे बगैर किसी वजह के कुपोषण से ग्रसित हो रहे हों, तब उनकी जिंदगी बचाना पूरी दुनिया की प्राथमिकता होनी चाहिए।

बाल कुपोषण के मामले में भारत की दयनीय हालत की वजह क्या है? इसे लेकर दो तरह की बातें सामने आई हैं। पहले विचार के मुताबिक, समाज में महिलाओं की खराब स्थिति का मातृ कुपोषण पर उससे कहीं ज्यादा असर पड़ता है, जितना अब तक माना जाता था।

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की अर्थशास्‍त्री डायने कॉफे के मुताबिक, भारतीय परिवारों में ज्यादातर महिलाएं अंत में भोजन करती हैं, जिससे 42 फीसदी भारतीय महिलाओं का वजन गर्भावस्‍था से पहले काफी कम होता है।

यही नहीं, गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं का जितना वजन होना चाहिए, भारतीय महिलाएं उसके आधे तक ही पहुंच पाती हैं। गर्भावस्‍था के अंतिम दौर में एक औसत भारतीय महिला का वजन उससे कम होता है, जितना कि उप-सहारा अफ्रीका की औसत महिला का गर्भावस्‍था की शुरुआत में होता है। नतीजतन बहुत-से भारतीय बच्चे गर्भ में ही कुपोषित हो जाते हैं, जिससे वे कभी उबर नहीं पाते।

दूसरी बात है, स्वच्छता का अभाव यानी खुले में शौच करना। तकरीबन आधे भारतीय खुले में शौच करते हैं। इससे फैलने वाले संक्रमण से बच्चों में पोषण ग्रहण करने की क्षमता कमजोर हो जाती है।

यूनिसेफ की रिपोर्ट भी बताती है कि सालाना तकरीबन 1,17,000 भारतीय बच्चे डायरिया से मरते हैं। गौरतलब है कि हिंदुओं की तुलना में भारतीय मुसलमानों में शिशु मृत्यु दर कम है। बावजूद इसके कि मुसलमान ज्यादा गरीब होते हैं। इसकी एक वजह मुसलमानों का शौचालयों का ज्यादा उपयोग करना हो सकता है।

इस मुद्दे को जिंदगी और मौत के सवाल जैसा गंभीर मानना होगा। अपने लोगों को सुरक्षा देने के लिए सरकारें टैंकों और लड़ाकू विमानों में निवेश करती हैं, मगर उनको सबसे बड़ा खतरा तो शौचालय न होने से है। पूरी दुनिया में शौचालयों की तुलना में मोबाइल फोन तक लोगों की पहुंच ज्यादा आसान है।

अपनी यात्रा में हम जिन गांवों में गए, वहां गांव वालों के पास अपना मोबाइल फोन तो था, पर शौचालय की सुविधा वाले कम ही लोग थे। शौचालयों का उपयोग करने वाले तो और भी कम थे। सहायता समूह शौचालय तो बनवा सकते हैं, मगर असल मुश्किल तो लोगों को इनका उपयोग करने के लिए तैयार करना है।

एक गांव में हम साहलिहा बानो नाम की महिला से मिले, जिसकी 11 महीने की एक बच्ची 'मुन्नी' कुपोषित थी। उनके परिवार में शौचालय नहीं था। बानो अशिक्षित है, जिसका 14 वर्ष की उम्र में निकाह हुआ। मुन्नी से पहले उसके पांच बच्चे और हैं। वह इन्हें ऊपर वाले की इच्छा मानती है। निस्संदेह ये जटिल मसले हैं। लेकिन अगर अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश इस मामले में प्रगति कर रहे हैं, तो भारत क्यों नहीं? आखिर केरल भी तो इस मामले में बेहतर कर रहा है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बच्चों में कुपोषण को 'राष्ट्रीय शर्म' बताया था। मगर इसके समाधान के लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति का अब भी अभाव है। इस मामले में जो हो रहा है, वह ठीक उल्टा है।

निषेचित अंडे खाने का विरोध करने वाले एक धार्मिक समूह का समर्थन पाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में बच्चों के आहार कार्यक्रमों में अंडे को शामिल करने का विरोध किया है। इससे होगा यह कि कुपोषित बच्चों की तादाद और बढ़ेगी। इन सब से एक महान देश खुद को कमजोर कर रहा है।


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/india-facing-malnutrition-hindi/


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