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न्यूज क्लिपिंग्स् | कौन ठगवा जमीनिया लूटे हो...

कौन ठगवा जमीनिया लूटे हो...

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published Published on Oct 21, 2011   modified Modified on Oct 21, 2011

जैसा कि एक प्रसिद्ध रिपोर्ट एवरी थर्टी मिनटस्- फार्मर्स स्यूसाईडस्, ह्यूमन राईटस् एंड द एग्रीगेरियन क्राईसिस इन इंडिया के शीर्षक से जाहिर है- भारत में खेतिहर-संकट के कारण हर तीसवें मिनट पर एक किसान आत्महत्या को मजबूर है। उड़ीसा में बोलंगीर जिले के पटनागढ़ प्रखंड के गांव घूमर में गुजरे सितंबर महीने में एक किसान लिंगराज साहू की मौत हुई। क्या लिंगराज साहू की मौत को कोई रिपोर्ट आत्महत्या की श्रेणी में गिन सकती है?

लिंगराज साहू का परिवार उसकी मौत को आत्महत्या मानने और फिर इस आधार पर किसी किस्म के मुआवजे या राहत की आस नहीं लगा सकता। कारण यह कि 5.23 एकड़ खेत की मिल्कियत वाले छोटे किसान लिंगराज साहू ने आत्महत्या करने वाले बाकी किसानों की तरह फसल के मारे जाने की हताशा, कर्ज के बढ़ते बोझ या फिर घाटे का सौदा बन चली खेती के कारण घटती आमदनी के बीच बेटी की शादी के लिए दहेज जुटाने की परेशानी में कोई कीटनाशक पीकर या फिर गले में फांसी का फंदा लगाकर जान नहीं दी। लिंगराज साहू की जान सदमे, तनाव और बीमारी के कारण गई।(लिंगराज की मृत्यु के कारणों के बारे में विस्तार से जानने के लिए देखें लिंक संख्या-2 पर एशियन ह्यून राइटस् कमीशन की रिपोर्ट)

लेकिन लिंगराज की मृत्युकथा के मुख्य सूत्र इस बात की गवाही देते हैं कि उसकी मृत्यु व्यावसायिक और वैज्ञानिक तकाजों वाली खेती की उसी संरचना के भीतर हुई जो देशभर में किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर रहा है। निरक्षर कहे जाने वाले लिंगराज को खेती-बाड़ी का ज्ञान तो था लेकिन उसे जमीन के सेल डीड और लीज एग्रीमेंट के महीन तकनीकी नुक्ते का फर्क पता नहीं था और जमीन हड़पने पर उतारु कंपनियों ने उसकी इसी मजबूरी का फायदा उठाया।

लिंगराज पारंपरिक खेती में घाटा उठाने के बाद कपास की नकदी खेती की ओर मुड़ा और कपास की फसल के मारे जाने के बाद सरकार और भू-अधिग्रहण पर उतारु कई कंपनियों के सम्मिलित प्रयासों ने उसे समझाया कि जट्रोफा की खेती में कपास की खेती की तरह जोखिम तो नहीं है लेकिन मुनाफा भरपूर है।( भारत सरकार जट्रोफा की खेती को बढ़ावा देने और उसकी खेती के लिए बड़े आक्रामक तरीके से कदम उठा रही है। भारत में 10 करोड़ हेक्टेयर जमीन जट्रोफा की खेती के लिए रख छोड़ी गई है। जट्रोफा की खेती फिलहाल 1 करोड़ 10 लाख हेक्टेयर 2 करोड़ 70 लाख एकड़ जमीन पर हो रही है। इसमें खेती-बाड़ी की नियमित जमीन भी शामिल है। भारत सरकार की मंशा है कि साल 2017 तक पेट्रोल-डीजल की खपत का 20 फीसदी जट्रोफा से पूरा हो। देखें लिंक संख्या-3)  एशियन ह्यूमन राइटस् कमीशन की अपील के अनुसार आर्थिक-संकट झेल रहे लिंगराज से मेसर्स न्यू एस बिल्डर्स एंड डेवलपर्स नामक कंपनी ने 2005 में तीन साल के लिए पट्टे पर जमीन ले ली। कंपनी की ओर से कहा गया कि तीन साल के बाद जमीन लौटा दी जाएगी और लिंगराज लाभदायक जट्रोफा की खेती कर सकेगा। तीन साल के बाद लिंगराज को पता चला कि उसकी जमीन पट्टे पर नहीं ली गई बल्कि बिना किसी सूचना के उससे जमीन के सेल डीड पर हस्ताक्षर करवा लिए गए हैं।

निर्माण-कार्यों के लिए जमीन लेने पर उतारु कंपनियों की ठगी का शिकार अकेला लिंगराज नहीं हुआ। बोलंगीर जिले में कुल 11 गांवों के 70 किसान इसी ठगी का शिकार हुए हैं। एशियन ह्यूमन राइटस् कमीशन की अपील के अनुसार कुल 10 कंपनियों ने साल 2005 से 2007 के बीच इनसे कुल 358.43 एकड़ जमीन पट्टे पर लेने की बात कहकर अपने नाम करवा लिया है और यह सब जमीन रजिस्ट्री के अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ है।

कमीशन की अपील के अनुसार ठगी के शिकार किसानों और नागरिक संगठनों ने कंपनियों के खिलाफ 2006 में प्रशासन से शिकायत की लेकिन मौका-मुआयना (फैक्ट-फाईंडिंग मिशन) के बावजूद कोई प्रभावकारी कार्रवाई नहीं हुई। राजस्व विभागीय के संभागीय आयुक्त ने साल 2007 में कार्रवाई के लिए जो रिपोर्ट सौंपी उसकी अनदेखी की गई( इस रिपोर्ट के लिए क्लिक करें लिंक संख्या-4)। रिपोर्ट को सार्वजनिक करवाने के लिए भी नागरिक संगठनों को सूचना के अधिकार का सहारा लेना पडा, तब कहीं जाकर 4 साल बाद आयुक्त की रिपोर्ट मई 2011 में सार्वनिक की गई।

अपील के अनुसार राजस्व विभाग के आयुक्त के रिपोर्ट की अनदेखी प्रशासन की तरफ से अब भी जारी है और इस बीच लिंगराज की तरह एक और किसान मोहन कांड की जान जीविका का एकमात्र साधन जमीन ना रहने के सदमे में गई है जबकि ठगी के शिकार अन्य छोटे किसान आप्रवासी मजदूर बन चले हैं।सरकार का दावा है कि राहत प्रयासों के कारण किसानों की आत्महत्या की घटनाएं साल 2011 में कम हुई हैं। वह भू-अधिग्रहण से संबंधित ऐसा कानून भी लाने वाली है जिसमें किसानों के लिए व्यावसायिक दर पर मुआवजे के इंतजाम सहित राहत के कई नवाचारी प्रयास शामिल हैं। देखें लिंक संख्या- 5 और 6)। लेकिन उड़ीसा के बोलंगीर जिले की उपर्युक्त घटना संकेत करती है कि खेतीहर संकट से उबरने के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है।

इस कथा के विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंक देखें-

EVERY THIRTY MINUTES FARMER SUICIDES, HUMAN RIGHTS, AND THE AGRARIAN CRISIS IN INDIA
http://www.chrgj.org/publications/docs/every30min.pdf

INDIA: Administrative neglect and corruption resulted in the death of farmers who lost their land
http://www.humanrights.asia/news/hunger-alerts/AHRC-HAC-009-2011

Revenue Divisional Commissioner report
http://www.humanrights.asia/issues/right-to-food/RDC_Report.pdf

Nourish South Asia Grow a better future for food justice
http://www.oxfam.org/sites/www.oxfam.org/files/cr-nourish-
south-asia-grow-260911-en.pdf


Farmers suicide due to agri reasons drop sharply in 2011: Govt
http://www.deccanherald.com/content/181586/farmers-suicide
-due-agri-reasons.html


Key features of Land Acquisition Bill
http://indiatoday.intoday.in/story/key-features-of-land-ac
quisition-bill/1/150206.html

 



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