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न्यूज क्लिपिंग्स् | गर्माते आर्कटिक का कहर-- श्रीशन् वेंकटेश

गर्माते आर्कटिक का कहर-- श्रीशन् वेंकटेश

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published Published on Jan 11, 2018   modified Modified on Jan 11, 2018
बीते कुछ हफ्तों से पूर्वी अमेरिका और कनाडा गहन शीत लहर की चपेट में हैं. इस इलाके में सात दशकों का यह सबसे ठंडा साल है. तापमान अंटार्टिका और मंगल ग्रह से भी कम हो गया है. 'बम साइक्लोन' ने हालत को और भी अधिक बिगाड़ दिया है.


सामान्य औसत से 11 डिग्री सेल्सियस नीचे के तापमान का कारण यह बताया जा रहा है कि ऊपरी क्षेत्रों, खासकर अलास्का और उसके आसपास, में तापमान गर्म हुआ है.


इससे जेट स्ट्रीम में एक उभार बना है, जिसका रुख अमेरिका के पूर्वी हिस्से और कनाडा की ओर हुआ. जेट स्ट्रीम वह हवा है, जो ऊपर से बाहर निकल कर आ रहा है. ऐसा जेट स्ट्रीम लंबे समय तक असर डालने के कुख्यात रहा है और अभी यही असर हम देख रहे हैं.


इसी हालात में चार जनवरी को आये तूफान ने शीत लहर और बर्फबारी से ठंड और भी बढ़ी है. तूफान की तेजी वायुमंडलीय दबाव में भारी कमी की वजह से है. हालांकि, इसका सबसे अधिक असर समुद्र के ऊपर हुआ है, पर माना जा रहा है कि इस इलाके में आया यह सबसे खतरनाक इतर-उष्कटिबंधीय (एक्स्ट्रा-ट्रॉपिकल) तूफानों में से एक है. उष्णकटिबंधीय चक्रवात गर्म हवा से संचालित होते हैं और धरती के करीब तबाही लानेवाली तेज हवा का बहाव पैदा करते हैं, जबकि इतर-उष्णकटिबंधीय तूफान में वायुमंडल में ऊपर तेज हवा चलती है.


एक आशंका यह भी जतायी जा रही है कि अभी मौसम के सामान्य होने में देर हो सकती है, क्योंकि मौजूदा स्थिति में ध्रुवीय चक्रवात (पोलर वोर्टेक्स) का भी खतरा है. यह चक्रवात हाल के दशकों में उत्तरी गोलार्द्ध में भयानक ठंड का सबसे बड़ा कारण रहा है. ध्रुवीय चक्रवात बड़े पैमाने का एक कम दबाव की स्थिति है, जो ठंडी हवाओं को ध्रुवों के करीब रखने में मदद करता है.


अध्ययनों में यह रेखांकित किया गया है कि आर्कटिक में गर्मी बढ़ने से ऐसे चक्रवात कमजोर हुए हैं और इस कारण ठंडी हवा ध्रुवीय क्षेत्रों से बाहर की ओर निकल रही है. हाल के वर्षों में उत्तरी अमेरिका और यूरोप में शीत लहर का प्रकोप और उसकी आवृत्ति लगातार बढ़ रही है. इस बढ़त को आर्कटिक के गर्म होने तथा समुद्री बर्फ के घटने के साथ जोड़ा जा रहा है. ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का वैश्विक तापमान बढ़ने पर तंज करना सही नहीं है और उन्हें जल्दी ही अपने शब्द वापस लेने पड़ सकते हैं. फिलहाल, ठंड का यह कहर अभी जारी रहने की आशंका है.


एक तरफ अमेरिका में शीत का प्रकोप है, तो ऑस्ट्रेलिया में गर्मी ने कहर बरपाया हुआ है. वहां अभी गर्मी का मौसम है. सिडनी समेत ऑस्ट्रेलिया के कुछ इलाकों में रविवार को 1939 के बाद सर्वाधिक तापमान दर्ज किया गया है. लेकिन, जल्द ही तापमान में कमी भी आ गयी. यह भी एक तथ्य है कि दुनिया का औसत तापमान बढ़ा है. वर्ष 2016 में आयी ऑस्ट्रेलियाई सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1910 से अब तक धरातल की हवा और समुद्र के तापमान में औसतन एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज हुई है और तेज गर्मी की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हुई है.


पिछले सप्ताह से उत्तर समेत भारत के कई हिस्सों में शीतलहर का प्रकोप देखा गया है. इस शीतलहर की हवा ज्यादातर अफगानिस्तान और ईरान की ओर से आयी है. अमेरिका और कनाडा में जो ठंड की स्थिति है, उससे हमारे देश या आसपास के देशों के ठंड से कोई संबंध मुझे नजर नहीं आया है.


लेकिन, यदि ध्रुवीय चक्रवात की स्थिति पैदा होती है, जिसका विश्लेषण ऊपर किया गया है, तो यह संभव है कि उसका असर भारत के मौसम पर भी पड़े. अगर ऐसा होता है, तो उत्तर भारत में ठंड का मौसम कुछ लंबा हो जायेगा. ऐसे में इस वर्ष मार्च तक जाड़ा पड़ सकता है. ऐसा मेरा मानना है.


यह भी समझना चाहिए कि वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब यह नहीं है कि ठंड नहीं बढ़ सकती है. कई प्राकृतिक कारकों की वजह से मौसम में बदलाव नजर आ रहे हैं. जैसा कि हम उत्तरी अमेरिका और कनाडा की ठंड में देख रहे हैं. पिछले कुछ सालों से इस तरह के ठंड की घटनाएं ज्यादा घटित हो रही हैं. जब ठंड की स्थिति होती है, तो बहुत ठंड पड़ती है, और यदि ठंड नहीं पड़ती, तो सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है.


यहां रेखांकित करना जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन और मौसम के बीच में सीधे-सीधे कोई रैखिक संबंध खींचना ठीक नहीं है. इस कारण मौसम की हर घटना- बारिश, ठंड या गर्मी- को हम सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से नहीं जोड़ सकते हैं.
बस हम यह निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन से मौसम के मिजाज में तेज बदलाव और आवृत्ति बढ़ने की संभावना बढ़ चुकी है. जो घटना कई सौ साल में एक-दो बार होती थी, हर दशक में एक बार होने लगी है. यही कारण है कि सूखा, बाढ़, हिमस्खलन, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता बढ़ी है.


संक्षेप में, यह कह सकते हैं कि गर्मी हर जगह अधिक पड़ रही है, जैसा कि हम ऑस्ट्रेलिया में देख रहे हैं, और ध्रुवीय क्षेत्रों में ऊपरी इलाकों में गर्मी से ठंडी हवा के बाहर आने से आसपास के देशों में सर्दी का कहर है.


https://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/1110057.html


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