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न्यूज क्लिपिंग्स् | छत्‍तीसगढ़ में धान की 257 देशी किस्मों का अनूठा संग्रह

छत्‍तीसगढ़ में धान की 257 देशी किस्मों का अनूठा संग्रह

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published Published on May 24, 2015   modified Modified on May 24, 2015
रायपुर(छत्‍तीसगढ़)। धान की ज्यादा पैदावारी की होड़ में एक ओर किसान अब उन्‍नत और हाइब्रिड किस्म को अपना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर किसानों की एक समिति ने देशी धान की किस्मों को सहेजने की अनूठी मिसाल पेश की है। ये किसान धुर नक्सल और आदिवासी अंचल कोंडागांव जिले के छोटे से गांव गोलाबण्ड के हैं, जिन्होंने धान की 257 देशी किस्मों को स्थानीय तरीके से सहेजा है।

इसमें काटा मेहर, पाराधान, जौंधरा धान व कदमफूल जैसे सुगंधित और स्वादिष्ट किस्म शामिल हैं। किसानों की इस अनोखी पहल के लिए पौध किस्म सुरक्षा एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण नई दिल्ली ने 2012-13 के लिए पौध किस्म जीन संरक्षण पुस्र्स्कार से नवाजा है। इसके तहत किसान समूह धरोहर समिति को 10 लाख का पुरस्कार दिया जाएगा।

छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के किसान समूह धरोहर समिति के मुरिया आदिवासी व पिछड़ी जनजातीय समुदाय के सदस्य शशिनाथ यादव एवं रामू राम बघेल द्वारा धान की विलक्षण देशी किस्मों को वैज्ञानिक पद्धति से न केवल संगृहीत किया जा रहा है, बल्कि उन्हें अन्य किसानों को बड़े पैमाने पर लगाने के लिए बीज वितरित भी किया जा रहा है। धरोहर समिति के किसानों ने वर्ष 1994 में देशी स्थानीय धान किस्मों का संग्रहण कार्य रूरल कम्यून्स (बाम्बे) नामक संस्था द्वारा प्राप्त सहयोग से शुरू किया। वर्तमान में इनके पास धान की कुल 257 किस्में संगृहीत हैं।

धान की प्रमुख संगृहीत किस्में

प्रमुख संगृहीत किस्मों में काटा मेहर (अवधि 110 से 115 दिन), मेहर (110 से 115 दिन), पाराधान (काला धान 70 दिन), हल्दीगठी (लाल मोटा, निचला तना काला), आदन छिल्पा (सुगंधित) धान, जौंदरा धान (लाल चावल), मछली पोठी (पतला सफेद दाना) खाने योग्य व कदमफूल (सुगंधित) आदि प्रमुख रूप से श्ाामिल हैं। संगृहीत कुछ किस्मों में औषधीय गुण भी है। इनमें ज्यादा पौष्टिक तत्व जैसे लौह, जिंक व विटामिन्स मौजूद होते हैं। इनमें से एक बगड़ी धान (लाल हजारी) इस चावल को खाने से एनीमिया रोग से ग्रस्त महिलाओं का रोग दूर हो जाता है।

स्थानीय किस्मों से विकसित नई किस्में

देशी किस्मों से किसान समूह द्वारा दो नई उन्न्त किस्में विकसित की गई हैं। इनमें शिव धरोहर (1), यह किस्म बॉदीलुचई जिसका दाना मोटा व सुनहरा रंग का होता है, से चयन कर बनाई गई है। उन्न्त विकसित किस्म का दाना पतला एवं चावल हल्के लाल रंग का होता है। शिव धरोहर (2), यह किस्म लोक्तिमाछी जो कि छोटे मोटे दाने वाली है, से चयन कर विकसित की गई है। इसका दाना पतला, लम्बा व सफेद रंग का होता है। इसमें पकने की उत्तम गुणवत्ता है।

देशी किस्मों का श्री विधि व कतार बोनी में परीक्षण

किसान समूह द्वारा धान की स्थानीय किस्में जैसे काटा मेहर, मेहर, कदमफूल, रानी काजल, सिंदूरसिंगा एवं बादीलुचई आदि किस्मों को श्री विधि एवं सीधी बुवाई तकनीक में परीक्षण किया जा रहा है। परीक्षणों के उपरांत बॉदीलुचई किस्म से बहुत अच्छी उपज (20 क्विंटल प्रति एकड़) एवं आसामचूड़ी द्वारा करीब 30 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त हुई।

इसी तरह से बासपत्री स्थानीय किस्म से 17 से 18 क्विंटल प्रति एकड़ उपज सीधी बुआईं (कतारों) में प्राप्त हुई। जबकि शुरू में ऐसा कहना था कि उन्न्त किस्में ही श्री विधि एवं कतार बोनी के उपयुक्त होती हैं। स्थानीय किस्मों का श्री विधि एवं सीधी बुआई द्वारा अधिकतम उत्पादन लेना एवं उपयुक्त किस्मों की पहचान करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

स्वयं निर्मित जैविक कीट नाशक से उपचार

पौधों में किसी भी प्रकार का रासायनिक कीटनाश्ाक या खाद का उपयोग नहीं किया जाता है। गो मूत्र, गोबर, दीमक की मिट्टी, गुड़, करंज एवं आक की पत्तियों को मिश्रित कर जैविक कीटनाशक बनाया जाता है। इससे प्राप्त घोल को पौधों पर छिड़काव किया जाता है। रासायनिक खाद की जगह गोबर खाद का उपयोग किया जाता है। इससे की माहो कीट व अन्य बीमारीयों का प्रकोप नहीं होता है।

ये है भंडारण की तकनीक

इन देशी किस्मों का रख रखाव वैज्ञानिक पद्धति से चार-चार कतारों में 5 मीटर लंबाई में पौधों को लगाकर किया जाता है। अवांछित पौधे निकालकर इनका शुद्ध बीज बनाया जाता है। अगले वर्ष के लिए लिफाफों में प्रत्येक किस्म की बालियों को निकालकर रखा जाता है। किस्मों को भंडार कक्ष में साल की लकड़ी का मचान बनाकर उसके ऊपर बीज को बांस से निर्मित कोठियों में रखा जाता है। कम मात्रा वाले बीज को मिट्टी निर्मित छोटे-छोटे पात्रों में रखा जाता है। इनमें बीज को रखने से उनकी जीवन क्षमता ज्यादा दिनों तक बनी रहती है एवं कीड़े व बीमारी भी नहीं लगते।

10 लाख का पुरस्कार

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ.दीपक शर्मा का कहना है कि किसानों द्वारा नि:स्वार्थ भाव से यह कार्य किया जा रहा है, जो कृषि वैज्ञानिकों को भी टक्कर देता है। इनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। इनके श्रेष्ठ कार्य को देखते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एसके पाटिल द्वारा इन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की गई।

इनका चयन पौध किस्म सुरक्षा एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण नई दिल्ली द्वारा पौध किस्म जीन संरक्षण समुदाय अभिज्ञान पुरस्कार वर्ष 2012-13 के लिए किया गया है। पौध किस्म सुरक्षा एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण द्वारा 10 लाख स्र्पए की पुरस्कार राशि इन्हें धान की भू-प्रजातियों व स्वयं के द्वारा विकसित किस्मों के लिए प्रदान की जाएगी।


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