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न्यूज क्लिपिंग्स् | जंगल तभी छोड़ेंगे, जब मिलेगी जमीन

जंगल तभी छोड़ेंगे, जब मिलेगी जमीन

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published Published on Jun 1, 2010   modified Modified on Jun 1, 2010
भोपाल. सरकार जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं करती है, हम एक इंच भी जमीन खाली नहीं करने वाले हैं। हम यहां जंगली जानवरों के बीच रह लेंगे लेकिन अपना घर नहीं छोड़ेंगे। यह कहना है कि बांधवगढ़ नेशनल पार्क के भीतर बसे गांववालों का।

केंद्र सरकार के आदेशानुसार, पार्क प्रशासन वहां बसे गांववालों को विस्थापित कर रहा है। शुरुआती चरण के दो गांवों को खाली करवाने के लिए फंड भी आ गया है। लेकिन लोग आसानी से गांव छोड़ने को तैयार नहीं हैं। दो दिन पहले जिला कलेक्टर और पार्क के निदेशक सीके पाटिल पूरी टीम के साथ गांववालों को चेक बांटने पहुंचे थे।

गांव के कल्याण सिंह कहते हैं कि हमें हमारे ही घर से निकालने के लिए पैसे का लालच दिया जा रहा है लेकिन कोई भी यह नहीं बता रहा है कि हम यहां से आखिर जाएं भी तो कहां। हम तो गांव उसी शर्त पर छोड़ेंगे, जब हमें जमीन दी जाएगी। जमीन भी ऐसी जगह जहां पानी हो।

कल्लवाह गांव में राम मिलन बैगा की तीन पीढ़ियां रही हैं, वे दुखी मन से कहते हैं कि हमें खुद नहीं पता कि हम इस जंगल में कब से हैं। लेकिन हमारा तो सबकुछ बस यह जंगल ही है। सरकार जानवरों की रक्षा के लिए हमें अपने ही घर से निकाल रही है। लेकिन सरकार को हमारा भी ध्यान रखना चाहिए।

वन मंत्री सरताज सिंह के अनुसार जंगल में बसे आदिवासियों को दस लाख रुपए मुआवजा दिया जा रहा है, जो कि किसी भी लिहाज से कम नहीं है। वनभूमि है इसलिए छोड़ना तो पड़ेगा ही। हो सकता है कि कुछ लोग भोले-भाले आदिवासियों को भड़का रहे हों। जिसके कारण इस तरह की बातें निकलकर सामने आ रही हैं।

बांधवगढ़ नेशनल पार्क के निदेशक सीके पाटिल का कहना है कि हमने जो भी फैसला लिया है, ग्राम पंचायत के अनुसार ही लिया है। उनका कहना तो यह भी है कि गांव के अधिकांश लोग यहां से जाने के लिए तैयार हैं।

केंद्र सरकार के आदेश के बाद बांधवगढ़ नेशनल पार्क के दो गांवों को खाली कराने की तैयारी की जा रही है। उमरिया जिले के कल्लवाह और कुमरवां गांव का सर्वे कर करीब पांच सौ लोगों को जंगल से बेदखल करने की पूरी तैयारी हो गई है। दोनों गांवों के 158 परिवारों के लिए वन पर्यावरण मंत्रालय से 15.80 करोड़ रूपए आए हैं। इसमें से 144 परिवारों के लिए 14.40 करोड़ रुपए आवंटित भी हो गए हैं। जिसके बाद कुमरवां गांव के करीब 21 परिवारों को चेक सौंप दिए गए हैं। लेकिन कल्लवाह गांव की अधिकांश आबादी इसके लिए तैयार नहीं।

- हम यह जंगल छोड़कर नहीं जाएगी। सरकार को सोचना चाहिए कि हम यहां से कहां जाएंगे। यदि सरकार को हमें जंगल से निकालना ही तो हमें पैसे के साथ जमीन भी दे। - गुलाबो बाई, रहवासी, कल्लवाह गांव, उमरिया

- अधिकांश गांववालों के बैंक खाते खुल चुके हैं। कुछ लोगों तो जमीन के साथ पैसे भी चाहिए, जो कि संभव नहीं है। या तो जमीन मिल सकती है या फिर पैसे। - सी.के. पाटिल, निदेशक, बांधवगढ़ नेशनल पार्क

- गांववालों को पर्याप्त मुआवजा दिया जा रहे है। जंगल की जमीन पर बसे इन गांववालों को यह जमीन खाली तो करनी ही पड़ेगी। - सरताज सिंह, वन मंत्री, मप्र सरकार

- सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए केवल पैसे दे रही है। जबकि सरकार को चाहिए कि पैसों के साथ गांववासियों को जमीन और बच्चों के लिए स्कूल अस्पताल जैसी सुविधाएं मुहैया कराए। - संतोष द्विवेदी, समाजसेवी

एक नजर में

कल्लवाह गांव

परिवार : 100
आबादी: 374
मुआवजा : 10 करोड़

कुमरवां गांव

परिवार : 42
आबादी: 119
मुआवजा : 4.2 करोड़

नोट : लेखक विकास संवाद केंद्र, मध्य प्रदेश के फैलो हैं।

http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-banghawagarh-vikas-samvad-fellowship-1014803.html


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