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न्यूज क्लिपिंग्स् | जनजीवन पर बुरा असर डाल रहा क्रशर

जनजीवन पर बुरा असर डाल रहा क्रशर

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published Published on May 1, 2010   modified Modified on May 1, 2010
डोमचांच (कोडरमा)। भीषण वायु प्रदूषण के संकट से जूझ रहे हैं डोमचांचवासी। स्टोन चिप्स के धूल के कारण डोमचांच एवं इसके आसपास क्षेत्र के पेड़-पौधे व जंगलों का भीषण विनाश हो रहा है तथा लोग श्वांस और टीबी संबंधी बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं। वायु प्रदूषण का मुख्य कारण यहां पर नीरू पहाड़ी से लेकर पुरनाडीह तक दस किमी क्षेत्र में फैले सैकड़ों क्रशर मिलों से उड़ने वाला धूलकण है। सड़क के किनारे दोनों ओर लगभग 500 की संख्या में संचालित क्रशर मिलों में से 10 प्रतिशत मालिकों के पास ही प्रदूषण का अनुज्ञप्ति प्राप्त है, शेष अवैध तरीके से ही संचालित हो रहे हैं, जिसके कारण आम आदमी के साथसाथ वन पर्यावरण को भी भारी क्षति हो रही है। सड़क किनारे शीशम आदि के दर्जनों बेशकीमती पेड़ सूख चुके हैं और कई सूखने के कगार पर है। प्रदूषण बोर्ड के मानकों के मुताबिक मुख्य सड़क से 200 मीटर की दूरी पर क्रशर मिल स्थापित करने तथा सड़क के सामने ऊंची दीवार देने का प्रावधान है। लेकिन सारे नियम कानून को धत्ता बताते हुए विभागीय लोगों की मिलीभगत से लोग प्रदूषण फैलाने में पिछले 20 वर्षो से लगे हुए हैं। लू के झोंके के साथ क्रशर मिलों से उड़ने वाले धूलों का गुब्बार जनजीवन पर बुरा असर डालता है। नीरू पहाड़ी से डोमचांच तक की दूरी तय करने वाले दोपहिया, तीन पहिया व चारपहिये वाहनों में बैठे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप यहां पर कार्यरत मजदूर व अन्य लोग कई तरह के रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं। इन क्रशर मिलों के आसपास की उपजाऊ भूमि बंजर जमीन में तब्दील होती जा रही है या पैदावार लगातार घटते जा रहा है। इस संबंध में चितरपुर गांव के ग्रामीणों ने एकजुट होकर मिल मालिकों से दीवार खड़ा करने की मांग की ताकि धूलकण खेतों में नहीं आये। वर्ष 2004-05 में तत्कालीन प्रदूषण बोर्ड के अध्यक्ष तिलेश्वर साहू ने कहा था कि लाख-दो लाख की पूंजी लगाकर छोटे व्यापारी अपना भरण-पोषण कर रहे हैं। इसलिए विभाग कोई कड़ा रुख नहीं अपना रही है, जब यह हद से आगे बढ़ेगा तो एक भी अवैध मिल नहीं चलेंगे। वहीं दूसरी ओर बोर्ड में लंबित प्रदूषण अनुज्ञप्तियों को आज पांच-पांच वर्षो के बाद भी एनओसी निर्गत नहीं किया जा सका है। इसका मुख्य कारण यह है कि मिल मालिक नियम व शर्तो को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसका सबसे बड़ा असर यहां के पर्यावरण व वन विभाग पर पड़ रहा है। वहीं जंगलों का दायरा घटने से जल और वायु का ह्रास हो रहा है। प्रचंड गर्मी, जलस्तर का घटना और जंगलों का नष्ट होना भविष्य में यहां के लोगों के लिए महंगा साबित हो सकता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/jharkhand/4_8_6375579_1.html


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