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न्यूज क्लिपिंग्स् | जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती-- बालमुकुंद ओझा

जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती-- बालमुकुंद ओझा

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published Published on Jun 23, 2017   modified Modified on Jun 23, 2017
आज विश्व की जनसंख्या सात अरब से ज्यादा है। अकेले भारत की जनसंख्या सवा अरब से अधिक है। भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या तैंतीस करोड़ थी, जो आज चार गुना तक बढ़ गई है। परिवार नियोजन के कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है। संभावना है कि 2050 तक देश की जनसंख्या 1.6 अरब हो जाएगी। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व-जनसंख्या का करी सत्रह फीसद है। भूभाग के लिहाज के हमारे पास विश्व की ढाई फीसद जमीन है। चार फीसद जल संसाधन है। जबकि विश्व में बीमारियों का जितना बोझ है, उसका बीस फीसद अकेले भारत पर है। विश्व की आबादी में हर साल आठ करोड़ लोगों की वृद्धि हो रही है और इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है। इतना ही नहीं, विस्थापन और रोजगार के लिए पलायन भी विश्व के समक्ष एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है। बढ़ती आबादी के चलते बहुत-से लोग बुनियादी सुख-सुविधा के लिए दूसरे देशों में पनाह लेने को मजबूर हैं।


जनसंख्या वृद्धि पर काबू पाना किसी भी सरकार के लिए सरल नहीं होता। हमारे देश की जनसंख्या 1947 में लगभग तैंतीस करोड़ थी। आज विश्व की जनसंख्या सात अरब से ज्यादा है। भारत की पिछले दशक की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत रही। विश्व की कुल आबादी का आधा या इससे भी अधिक हिस्सा एशियाई देशों में है। चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में शिक्षा तथा जागरूकता की कमी की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि 2025 तक भारत चीन को भी पछाड़ देगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। इस तथ्य के बावजूद कि यहां जनसंख्या नीतियां, परिवार नियोजन और कल्याण कार्यक्रम सरकार ने शुरू किए हैं और प्रजनन दर में लगातार कमी आई है, पर आबादी का वास्तविक स्थिरीकरण 2050 तक ही हो पाएगा।


उच्च जन्म-दर और बेहतर सफाई व स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते घट रही मृत्यु-दर उच्च जनसंख्या वृद्धि दर की मुख्य वजहें हैं। जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारणों में जन्म-दर में वृद्धि तथा मृत्यु-दर में कमी, निर्धनता, संयुक्त परिवार, बाल विवाह, कृषि पर निर्भरता, प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि, धार्मिक व सामाजिक अंधविश्वास, शिक्षा का अभाव प्रमुख हैं। हमारे देश में निर्धनता, अंधविश्वास, अशिक्षा, धार्मिक विश्वास, भ्रामक धारणाएं और स्वास्थ्य के प्रति अवैज्ञानिक दृष्टिकोण जनसंख्या वृद्धि के कारण हैं। इसके चलते भारतीय लोग संतानोत्पत्ति को ईश्वरीय वरदान समझते हैं और कृत्रिम उपायों से गर्भ निरोध उनकी दृष्टि में पाप है।हमारी आबादी में अब भी हर दिन पचास हजार की वृद्धि हो रही है। इतनी बड़ी जनसंख्या को भोजन मुहैया कराने के लिए यह आवश्यक है कि हमारा खाद्यान्न उत्पादन प्रतिवर्ष चौवन लाख टन से बढ़े जबकि वह औसतन केवल चालीस लाख टन प्रतिवर्ष की दर से ही बढ़ पाता है। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा व गरीबी हैं। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। भारत के सामने अनेक समस्याएं चुनौती बनकर खड़ी हैं। जनसंख्या-विस्फोट उनमें से सर्वाधिक बड़ी चुनौती है। सवा अरब भारतीयों के पास धरती, खनिज, साधन आज भी वही हैं जो पचास साल पहले थे। परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। भारत के पास विश्व की समस्त भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत भाग है जबकि विश्व की 17.5 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है।


जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर भार और बढ़ जाएगा। जनसंख्या दबाव के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी जिससे खाद्यान्न और पेयजल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा लाखों लोग चिकित्सा-सुविधा और शिक्षा के लाभों तथा समाज के उत्पादक सदस्य होने के अवसर से वंचित हो जाएंगे। पचास करोड़ से अधिक भारतीय पच्चीस वर्ष से कम आयु के हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्न समस्या का सबसे अधिक सामना विकासशील देश कर रहे हैं। सवा अरब आबादी वाले भारत जैसे देश में, जहां सरकारी आकलनों के अनुसार 32 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, हालत अत्यंत शोचनीय है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार भारत में 2009 में 23 करोड़ 10 लाख लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे। आज भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। देश में खाद्यान्न का उत्पादन बडेÞ स्तर पर होने के बावजूद काफी लोग भुखमरी का संकट झेल रहे हैं। जिस गति से जनसंख्या दर में वृद्धि हो रही है उस गति से उत्पादन बढ़ा सकना संभव नहीं है। इसलिए समाजशास्त्रियों की सोच है कि अनावश्यक आबादी न बढ़ने दें। भारत की खुशहाली के लिए यह जरूरी है कि जनसंख्या की गति धीमी की जाए। भारत में आबादी बढ़ने का मुख्य कारण है जन्म-दर का मृत्यु-दर से अधिक होना। हमने मृत्यु-दर को तो सफलतापूर्वक कम कर दिया है, पर यही बात जन्म-दर के बारे में नहीं कही जा सकती। विभिन्न जनसंख्या नीतियों और अन्य उपायों से प्रजनन दर पहले की तुलना में कम तो हुई है, पर यह दूसरे देशों के मुकाबले अब भी बहुत अधिक है। इसी कारण देश की आबादी बढ़ती जा रही है। विश्व के कृषि भू-भाग का मात्र ढाई प्रतिशत भारत में है, जबकि यहां की आबादी दुनिया की कुल आबादी के सत्रह फीसद के करीब है।


विश्व में सबसे पहले 1952 में आधिकारिक रूप से जनसंख्या नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम को अपनाया गया। मगर लाख कोशिशों के बाद भी हम अपना घोषित लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए। जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर भार और बढ़ गया। जनसंख्या-वृद्धि के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी, जिससे खाद्यान्न व पेयजल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा लाखों लोग स्वास्थ्य सुविधाओं तथा अच्छी शिक्षा और बेहतर आय के अवसरों से वंचित रह जाएंगे। अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि बिहार, झारखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कुछ पूर्वोत्तर के राज्यों में दंपति संरक्षण दर 52 से 62 प्रतिशत तक है। जब तक दंपति परिवार नियोजन की विधियां नहीं अपनाते और बच्चों की पैदाइश में पर्याप्त अंतर नहीं रखते, तब तक जनसंख्या वृद्धि दर कम कर पाना संभव नहीं हो सकेगा।


कुछ दशकों से जनसंख्या वृद्धि एक नई चुनौती बनकर हमारे सामने आई और आज भी इस पर काबू पाने में सरकार को कठिनाई हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम देश को भोगने पड़ रहे हैं। अधिक जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की विकराल समस्या उत्पन्न हो गई है। लोगों के आवास के लिए कृषियोग्य भूमि और जंगलों को उजाड़ा जा रहा है। हरियाली कम होती जा रही है। चरागाह बहुत तेजी से रिहाइशी कॉलोनियों की भेंट चढ़ते गए हैं। भूजल के अंधाधुंध दोहन का दबाव बढ़ता जा रहा है और इसके चलते देश के कई इलाके ‘डार्क जोन' में बदल गए हैं, यानी कितनी भी गहरी खुदाई की जाए वहां से पानी नहीं निकाला जा सकता। यदि जनसंख्या विस्फोट यों ही होता रहा तो बहुत-से लोगों के समक्ष जीने के बुनियादी संसाधनों का संकट खड़ा हो जाएगा।


http://www.jansatta.com/politics/jansatta-article-about-population-control/354621/


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