Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | जब भूख लगती है शहर को..

जब भूख लगती है शहर को..

Share this article Share this article
published Published on Aug 6, 2013   modified Modified on Aug 6, 2013

गरीबी पर योजना आयोग के ताजा आंकड़ों ने थाली की कीमत को बहस के केंद्र में ला दिया है. देशभर में चल रही इस गरमागरम बहस के बीच हमने खोज की उस थाली की जिसे किसी शहर की भूख मिटाने वाला कहा जा सकता है. प्रचलित अर्थो में इस थाली को भले ही दोपहर का खाना न कहा जाये, लेकिन आज ये किसी शहर की पहचान से जुड़ गयी हैं. देश के विभिन्न शहरों से भूख मिटानेवाली इस थाली की कहानी कहती विशेष आवरण कथा.


चौड़ी सड़कें, जगमगाती इमारतें, शोर करता ट्रैफिक. किसी शहर के बारे में सोचें तो ऐसी ही छवियों का एक कोलाज हमारे जेहन में उभरता है. दिल्ली में सबसे पहले दिखायी देती है मेट्रो ट्रेन, सजा-धजा लुटियन का इलाका, इतिहास के साथ गलबहियां करता चांदनी चौक. कोलकाता की तसवीर हावड़ा ब्रिज के रास्ते ही हमारे ख्याल में दाखिल होती है. नरीमन प्वाइंट के ठीक उलट अरब सागर की आगोश में समाता हुआ सूरज मुंबई की अमिट छवि हमारे दिलो-दिमाग पर छोड़ जाता है. पटना का गांधी मैदान, हैदराबाद का हुसैन सागर लेक, भोपाल की जामा मसजिद.. शहर की स्मृति दरअसल स्थानों की स्मृति होती है. क्या आपकी ऐसी किसी स्मृति में भूख की स्मृति भी शामिल है? क्या आपने कभी यह कल्पना की है कि दौड़ते-भागते, हर पल जीते-मरते शहर को भी भूख लगती है!  वह भूख नहीं, जो महंगे रेस्तराओं में मिटायी जाती है, या जहां खाना सिर्फ खाना नहीं होता, अच्छी शाम बिताने का एक बहाना होता है. भूख वह जो जिंदगी से जुड़ी होती है. वह खाना जो जिंदा रखता है. दौड़ते हुए शहर के साथ कदम-ताल मिलाते हुए दौड़ा जा सके, इसकी ताकत देता है.

दिन के एक बजे हर शहर को ऐसी भूख लगती है. यह भूख सिर्फ घर में परोसी गयी थाली से, स्नेह से भरे गये टिफिन से या किसी होटल या ढाबे के मेन्यू में शामिल व्यंजनों से नहीं मिटती. भूख होगी, तो खाना भी होगा के सिद्धांत को चरितार्थ करते हुए हमारे शहरों ने अपनी भूख मिटाने के लिए विशिष्ट व्यंजनों को ईजाद किया है. हालांकि ऐसे कई व्यंजन हैं, जो देश के कोने-कोने में मिल जायेंगे और लोगों की पसंद कहे जा सकते हैं, लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं, उन खास व्यंजनों की जो वास्तव में किसी शहर की पहचान बनाते हैं. सबसे बढ़ कर ये उस शहर की भूख मिटाते हैं. चलिए चलते हैं देश के कुछ शहरों में और देखते हैं, भूख लगने पर कौन सा खाना उन्हें सबसे ज्यादा भाता है.

 

दिल्ली में दिन का खाना

दिल्ली से प्रीति
मैं आइटीओ के पास स्थित डॉल म्यूजियम के सामने खड़ी हूं. दोपहर के एक बजे हैं. पसीने से तरबतर 28 वर्षीय जुगल कुशोर के हाथ तेजी से कुल्चे सेंकने और छोले परोसने लगे हैं. ग्राहक बढ़ते ही जा रहे हैं, लंच टाइम जो शुरू हो गया है. बीस रुपये में दो कुल्चे और एक प्लेट छोले. यहां किसी काम से आये अमित चलते-चलते लग आयी भूख को मिटाने के लिए छोले-कुल्चे खाने ठहर गये, वहीं पत्रकारिता की पढ़ाई कर नौकरी तलाश रही सौम्या दवे खुद को रोक नहीं पाती छोले कुल्चे खाने से इसलिए रुक गयीं. उन्हें यह खाना स्वाद और दाम दोनों हिसाब से बेहतर लगता है. जुगल किशोर के ज्यादातर ग्राहक आस-पास के दफ्तरों के हैं. वैसे तो रेहड़ी लागने का टाइम सुबह 11 बजे से 5 बजे तक है. कई बार जल्दी ही सारा माल बिक जाता है और अगर बारिश हो गयी तो बहुत बच भी जाता है. थोड़ी ही आगे मिलाप भवन के सामने छोले-कुल्चे बेच रहे रामदून की एक बात खासतौर पर ध्यान खींचती है, कहते हैं,‘कुल्चे-छोले दिल्ली के लोगों के स्वाद में बसा है. यहां कार वाला हो या साइकिल वाला, सब बिना भेद के इसे खाते हैं.’

आइटीओ से थोड़े ही फासले पर हिंदी भवन के सामने राजेश सैनी की छोले कुल्चे की रेहड़ी में अब इक्का दुक्का लोग ही हैं. सामने स्थित नवशक्ति स्कूल की अभी-अभी छुट्टी हुई है. दो-तीन लड़कियां तेजी से रेहड़ी के पास आती हैं. उनमें से एक रश्मि कह रही हैं,‘अंकल मेरे लिए 15 के छोले-कुल्चे पैक कर दो, मैं घर ले जाऊंगी.’ ‘यहीं क्यों नहीं खा लेती गरम-गरम’ पूछने पर वह हंस देती है. कहती है, ‘मैंने तो लंच टाइम में ही खा लिया है. भाई के लिए ले जा रही हूं.’ आइटीओ से हिंदी भवन के बीच का फासला ज्यादा नहीं है लेकिन यहां कुल्चे के रेट कम हैं. 15 रुपये में छोले के साथ दो कुल्चे और 20 में तीन. स्कूल की बच्चियों को 10 रुपये में ही छोले के साथ दो कुल्चे देते हैं राजेश. हां कुल्चे थोड़े छोटे हैं. कहते हैं ये बच्चियां 15 या 20 रुपये नहीं दे सकतीं. 10 रुपये देना थोड़ा आसान होता है उनके लिए. सामने के नवशक्ति स्कूल में शाम 4 बजे अभ्यास के लिए आनेवाले अस्मिता नाट्य मंच के छात्र भी राजेश के कुल्चे चाव से खाते हैं. राजेश हंसते हुए बताते हैं कि अस्मितावाले अरविंद गौड़ जी भी उनके कुल्चे जब-तब खाते रहते हैं. अभी कल ही खाकर गये हैं. कई बार कार में आने वाले साहब लोग भी खाते हैं और पास की बिल्डिंग में ट्रेनिंग के लिए आनेवाले लड़के तो नाश्ता ही उनकी रेहड़ी पर करते हैं. राजेश अपने ग्राहकों की चर्चा को आगे बढ़ाते, तभी हिंदी भवन में कुछ काम से आये एक अधिकारी के वाहन चालक वीरेंद्र रावत आ जाते हैं. वह जब भी यहां आते हैं, राजेश के छोले कुल्चे जरूर खाते हैं. 20 रुपये में पेटभर खाना, वो भी स्वाद के साथ, उनके पास यही वजह है. आगे जोड़ते हैं, ‘अजी दिल्ली में यही तो प्रसिद्ध है. फिर हम पहाड़ वाले हों, या प्लेन वाले, सब इसे खाते हैं.’                                                                                       


पूरे झारखंड का मनपसंद व्यंजन

रांची से लता रानी 

तारीख : 31 जुलाई. समय : दिन के 12 बजे.  अपर बाजार के कैलाश होटल में रवींद्र सुबह से ढुस्का का पेस्ट तैयार करने में लगा हुआ है . चावल, चना दाल और उड़द दाल को पानी में फुलाने से लेकर उसे पीस कर ढुस्का के लिए मेटेरियल तैयार करने का काम रवींद्र का है. मात्र पांच मिनट में ही रवींद्र मशीन से ढुस्का का पेस्ट तैयार कर लेता है. यहां की दुकानदारी सुबह से ही शुरू हो जाती है. ठीक 12 बजते-बजते यहां ग्राहकों की भीड़ जुटने लगी. व्यापारियों से लेकर रांची विश्वविद्याल के कर्मचारी भी यहां पहुंचने लगे. देखते ही देखते दुकान में भीड़ लग गयी. होटल वाला सखुआ के पत्ते से बने दोना में ढुस्का व आलू-चना का सब्जी परोसता रहा. बगल के होटल में भी ग्राहकों की भीड़ हो गयी. यह देख लगा कि दिन के भोजन का विकल्प ढुस्का है. ढुस्का से ही लोग पेट भी भर लेते हैं. दिन के 12 से एक बजे मजदूरों के खाना खाने का समय होता है. वहीं अपर बाजार में मारवाड़ी उच्च विद्यालय एवं मारवाड़ी कॉलेज होने के कारण यहां हमेशा छात्र छात्रओं की भीड़ रहती है. दो से चार बजे तक थोड़ी बिक्री कम रही. ग्राहक गिने-चुने दिखे. पर चार बजते ही कॉलेज व स्कूल की छुट्टी के समय छात्र- छात्राओं की भीड़ बढ़ गयी. शाम होते ही लोग यहां नाश्ता के लिए भी पहुंचने लगे. झारखंड में यूं तो खाने को सब कुछ मिलता है, पर ढुस्का यहां का सबसे लोकप्रिय व्यंजन है. झारखंड के गांव-देहातों ही नहीं शहरों में भी लोगों का पसंदीदा व्यंजन ढुस्का है. यहां के लोग ढुस्का सेवन को पेट के लिए भी उपयुक्त मानते हैं, क्योंकि ढुस्का सुपाच्य होता है.

बकौल होटल मालिक ओम प्रकाश, दिन भर में 300 से 500 की संख्या में लोग केवल ढुस्का खाने के लिए आते हैं. मुरी से रोज काम करने के लिए रांची आनेवाले जेड खान ने बताया कि वे हर दिन कैलाश होटल का ढुस्का और सब्जी खाते हैं और यही उनका दोपहर का खाना होता है. मारवाड़ी कॉलेज के छात्र निखिल अग्रवाल कहते हैं, मैं सिमडेगा से यहां पढ़ने आया हूं और हॉस्टल में रहता हूं. यह होटल कॉलेज के पास है इसलिए हर दिन यहीं अपनी भूख मिटाने यानी दोपहर का खाना खाने आ जाता हूं. ढुस्का पांच रुपये में मिलनेवाला व्यंजन है इसलिए मेरे पॉकेट मनी के खर्च में सही बैठता है.

                                                    

दौड़ते-भागते मुंबई में जब लगे भूख
मुंबई शहर में जाना हो, और वड़ा पाव खाने का मौका न मिले, यह मुमकिन नहीं है. दरअसल, वड़ा पाव वह खाना है, जो मुंबई की एक बड़ी आबादी को जिलाये रखता है. इसकी यूएसपी यह है कि यह हर जगह उपलब्ध है और इसे मुंबई की रफ्तार से  कदमताल मिलाते हुए चलते-चलते, काम के बीच में मिले चंद मिनटों के ब्रेक में भी खाया जा सकता है. सबसे बड़ी बात है कि इसकी कीमत लोगों की जेब पर ज्यादा असर नहीं डालती. जूहू बीच पर वड़ा पाव बेचनेवाले मोहन बताते हैं कि वड़ा पाव यहां के लोगों का मनपसंद खाना है. कई लोग तो इसे खाकर दिन तक गुजार देते हैं. घूमने आनेवाले पर्यटकों के बीच भी यह खासा लोकप्रिय है. यह पूछने पर कि आखिर वड़ा पाव इतना लोकप्रिय क्यों है, मोहन ने बताया कि एक तो यह ताजा तैयार किया जाता है, साथ ही यह पेट भरने की क्षमता रखता है. वड़ा पाव मुंबई से बाहर पूरे महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी लोकप्रिय है.

चेन्नई का चहेता
यह कहना कि चेन्नई शहर इडली सांबर और डोसा पर जीवित रहता है, अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा. चेन्नई में काफी वक्त बितानेवाले राहुल कुमार ने बताया कि चेन्नई की एक बड़ी आबादी सुबह, दोपहर, रात हर वक्त गलियों और चौराहों पर आसानी से मिल जानेवाले इडली सांबर और डोसा पर गुजारा करती है. राहुल ने बताया कि इनमें से कई दुकानें इतनी लोकप्रिय हो गयी हैं कि उनमें अच्छी खासी भीड़ जमा होती है. एक खास बात जो उन्होंने बतायी, वह यह कि इडली-सांबर-चटनी काफी हाइजेनिक तरीके से बनायी जाती है और सड़क किनारे छोटे-छोटे ठेलेनुमा दुकानों पर भी इडली खाते वक्त गंदगी का डर नहीं सताता. राहुल ने काफी समय हैदराबाद में भी बिताया है और वे बताते हैं कि इडली सांबर वास्तव में लगभग पूरे दक्षिण भारत का लोकप्रिय व्यंजन है.

पटना की पहली पसंद
ऐतिहासिक गांधी मैदान के कोने पर स्थित बिस्कोमान भवन. सबसे ऊपरी तल्ले पर पिंड बलूची रेस्टोरेंट और नीचे फुटपाथ के किनारे ठेले पर सजी है लिट्टी की दुकान. एक नहीं, दो नहीं आधा दर्जन भर ठेले. कमोबेश सभी ठेलों के पास खानेवालों की भीड़ है. आम और खास सभी के बीच खासा लोकप्रिय हो चुका है यहां का लिट्टी-चोखा. इसका स्वाद ऐसा कि नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाये. यहां दुकान है अशोक साह की, ये वही अशोक हैं, जिन्होंने बिहार की लिट्टी को सिंगापुर में भी अपनी पहचान दिलायी. अशोक की दुकान पर सुबह 10 बजे से शाम छह बजे तक रोज इसी तरह का नजारा होता है. 10 रुपये में एक प्लेट लिट्टी मिलती है. एक प्लेट में दो लिट्टी, आलू-बैगन-टमाटर का चोखा, प्याज-खीरे का सलाद और बादाम, सरसों, नारियल व चने दाल की चटनी होती है. एक आदमी के नाश्ते के लिए एक प्लेट पर्याप्त होता है. दो प्लेट खाने पर पेट भर जाता है. यानी 20 रुपये में मनपसंद भोजन. हालांकि कुछ लोग ज्यादा भी लेते हैं. पटना में लिट्टी चोखा हर जगह आसानी से उपलब्ध है. इसकी खासियत यह है कि इसे कोयले के चूल्हे पर सेंका जाता है, जिसके कारण इसके बासी होने का डर नहीं होता. सुबह से लेकर शाम तक लिट्टी-चोखा पटना की एक बड़ी आबादी की भूख मिटाने का काम करता है.                                                   
पटना से आलोक कुमार

http://www.prabhatkhabar.com/news/31290-story.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close