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न्यूज क्लिपिंग्स् | जीएसटी से यूपी-बिहार-झारखंड में दवाओं का संकट

जीएसटी से यूपी-बिहार-झारखंड में दवाओं का संकट

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published Published on Jul 20, 2017   modified Modified on Jul 20, 2017
सरकारी अस्पतालों को दिए जानेवाले वजट में कटौती, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में बढ़े कर और आपूर्तिकर्ता एजेंसियों द्वारा दवा की आपूर्ति न किए जाने से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के अस्पतालों में दवाओं की भारी किल्लत हो गई है। यूपी में कई अस्पतालों में तो कर्मचारियों और नर्सिंग स्टाफ को जून का वेतन नहीं मिला है। इससे नाराज मेडिकल कॉलेज कर्मचारी एसोसिएशन ने आंदोलन की चेतावनी दी है।

लखनऊ के केजीएमयू समेत दूसरे अस्पतालों में मरीजों का दबाव बढ़ने के बावजूद बजट घट गया है। इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। बजट कम होने मरीजों की सहूलियतों में कटौती हो रही है। मरीज हलकान हैं। वे बाजार से दवा व इलाज के दूसरे संसाधन जुटाने को मजबूर हैं।

बजट कटौती

केजीएमयू में चार हजार से ज्यादा बेड है। ज्यादातर बेड हमेशा भरे रहते हैं। ओपीडी में रोजाना सात हजार से ज्यादा मरीज आ रहे हैं। वहीं 150 से 200 मरीज भर्ती किए जा रहे हैं। मरीजों का दबाव बढ़ने के बावजूद केजीएमयू के बजट में कटौती कर दी गई है। अधिकारियों का कहना है कि कंटिन्जेंसी फंड पिछले साल करीब 99 करोड़ रुपये मिला था। इस साल 69 करोड़ रुपये मिले हैं। बलरामपुर अस्पताल का भी यही हाल है। 2015-16 में दवाओं के मद में 19 करोड़ रुपये मिले थे। जो 2016-17 में घट कर 17 करोड़ रुपये रह गया।

जीएसटी से बड़ी मुश्किलें : अधिकारियों का कहना है कि जीएसटी लागू होने से दवाओं की कीमतों में इजाफा हो गया है। 12 से 18 फीसदी तक टैक्स चुकाना पड़ रहा है। जीएसटी लागू होने के बावजूद बजट कम जारी हुआ, जबकि नियमानुसार हर साल 10 से 15 फीसदी बजट बढ़ाकर मिलना चाहिए। बजट कम होने से अस्पतालों में दवाओं का संकट गहरा गया है।

आरसी लिस्ट से दवाएं गायब : स्वास्थ्य विभाग की आरसी (रेट कांट्रेक्ट) में अभी 1100 दवाएं ही शामिल की गई हैं, जबकि पिछले साल तक चार हजार से दवाओं को आरसी लिस्ट में शामिल किया गया था। लिस्ट में दवा कम होने से अस्पताल प्रशासन दवाएं नहीं खरीद पा रहे हैं।

जबरदस्त संकट
डायबिटीज की मैटफॉर्मिंग, एटीनो, स्ट्रोरवा स्टैटिन, अमीकासिन इंजेक्शन, सॉल्बिटामॉल, आंखों के ड्रॉप, घाव में टांके लगाने के लिए सूई तक का संकट है।
उधर, बिहार में जरूरी दवाओं की 168 की सूची में मात्र 89 दवाएं ही उपलब्ध है। सूबे के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच की ओपीडी में एक-तिहाई भी दवाएं नहीं हैं। पीएमसीएच की ओपीडी के लिए 33 और इनडोर के लिए 112 प्रकार की दवाएं निर्धारित हैं। वर्तमान समय में पीएमसीएच ओपीडी में 11 तथा इनडोर में 97 प्रकार की दवाएं हैं।

ये दवाएं नहीं :
अस्पतालों में जो दवाएं नहीं हैं उसमें हीमोफिलिया के मरीजों के लिए फैक्टर-7, फैक्टर-8 और फैक्टर-9, थैलीसिमिया, एंटी बायोटिक इंजेक्शन, दर्द निवारक दवाएं, बच्चों के कफ शिरप, स्लाइन, खून में प्रोटीन की कमी होने पर दी जाने वाली दवा एल्बुमिन, कुत्ता काटने पर रैबिज इमोग्लूबिन, टेटनस टॉक्साइड और एंटी टेटनस इमोग्लोबिन, कुछ एंटीबायोटिक इंजेक्शन।

झारखंड के सरकारी अस्पतालों में भी जीवन रक्षक कुछ दवाओं के साथ- साथ जरूरी सामानों की भारी किल्लत है। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में भी जहां गॉज, बैंडेज और कॉटन की आपूर्ति लगभग ठप हो गई है। वहीं कई आवश्यक मेडिकल सामग्री की भी कमी हो गई है।


http://www.livehindustan.com/bihar/patna/story-budget-cuts-drug-crisis-in-up-bihar-jharkhand-from-gst-1193094.html


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