Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | जैंतापुर का संकल्प - मेधा

जैंतापुर का संकल्प - मेधा

Share this article Share this article
published Published on Feb 25, 2011   modified Modified on Feb 25, 2011

संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष २०१० को जैवविविधता का वर्ष घोषित किया था और २०१० में ही भारत सरकार ने दुनिया भर में अपनी जैवविविधता के लिए मशहूर महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के निर्माण के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया। ९९०० मेगावाट के जैंतापुर परमाणु ऊर्जा प्रकल्प के लिए रत्नागिरी इलाके की जिन जमीनों को लिया जा रहा है, वे जमीन पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील हैं। इस इलाके में १५० प्रकार के पक्षी एवं लगभग ३०० प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। इन पक्षियों एवं वनस्पतियों की कई प्रजातियां दुर्लभ हैं। अपनी प्राकृतिक छटा में अत्यंत नैनाभिराम इस तटीय इलाके में लगभग एक दर्जन परमाणु उर्जा प्रकल्प प्रस्तावित हैं। यह हाल तो तब है, जबकि रत्नागिरी को सरकार ने उद्यानिकी जिला घोषित कर रखा है। जैंतापुर परमाणु उर्जा प्रकल्प का निर्माण न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड एक फ्रेंच कंपनी अरेवा के सहयोग से कर रही है। यह एशिया का सबसे बड़ा परमाणु उर्जा प्रकल्प होगा।

स्थानीय लोगों का मानना है कि निर्माणाधीन जैंतापुर परमाणु ऊर्जा प्रकल्प संकट का बादल बनकर उनके भविष्य पर मंडरा रहा है। परमाणु परियोजना से बिजली निर्माण की विधि मे पर्यावरणीय और मानवीय क्षति लगभग अपूरणीय होती हैं। इसमें रेडियोधर्मी कूड़े को संभालकर रखने की कोई सुरक्षित व्यवस्था नहीं है। इस तथ्य से भी सरकार इंकार नहीं कर सकती कि फ्रेंच कंपनी अरेवा का सुरक्षा रिकार्ड संदिग्ध है। इस प्रकल्प से पर्यावरण पर पड ने वाले प्रभाव की जो रपट तैयार की गई है, वह भी आधी-अधूरी है। ९३८ हेक्टेयर में फैले इस परमाणु प्रकल्प को पर्यावरण मंत्रालय में कुछ शर्तों के साथ हरी झंडी दिखा दी है। दूसरी ओर प्रशासन पर पारदर्शिता न अपनाने के आरोप लग रहे हैं।

गांव वालों का कहना है कोंकण की कोई भी रिपोर्ट यह नहीं बताती कि यह क्षेत्र परमाणु उर्जा प्रकल्प के लिए उपयुक्त है। टाटा इंस्टीच्यूट आफ सोशल साइंसेस (टिस) की रिपोर्ट के मुताबिक जैंतापुर परमाणु उर्जा प्रकल्प के लिए निश्चित की गई भूमि पर्यावरणीय दृष्टि बिल्कुल अनुपयुक्त है। टिस की यह रिपोर्ट महेश कांबले ने १२० गांव के लोगों से बातचीत के बाद तैयार की है। रिपोर्ट से यह भी जाहिर हुआ है कि इस मामले में तथ्यों को तोड़-मरोड  कर पेश किया गया है। जिन जमीनों को बंजर बताकर परियोजना के लिए अधीगृहित किया गया है, वे अत्यंत उपजाऊ जमीनें हैं और यहां बारहों मास फसलें लहलहाती हैं। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से हो जाती है कि २००७ में जैंतापुर के ही गांव राजापुर के किसानों को बाढ  से आम की फसल नष्ट होने का मुआवजा सरकार ने एक करोड  सैंतीस लाख सात हजार रुपए दिए थे। अर्थक्वेक हजार्ड जोनिंग आफ इंडिया के मुताबिक जैंतापुर जोन तीन के अंतर्गत आता है, जो कि भूकंप के लिहाज से खतरनाक जोन है और ऐसे इलाके में परमाणु प्रकल्प शुरू करना एक घातक कदम साबित होगा। स्थानीय लोगों के लिए परमाणु प्रकल्प से निकलने वाले रेडिएशन भी एक बड ा मुद्‌दा है। जाहिर है कि ये रेडिएशन स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डालेंगे तभी परियोजना में काम करने वाले अधिकारियों के रहने की व्यवस्था परियोजना के परिसर में न करके उससे सात किलोमीटर दूर की गई है।

महाराष्ट्र सरकार जैंतापुर परमाणु प्रकल्प के विरोध को दबाने की भरपूर कोशिश कर रही है। परियोजना-क्षेत्र का बारंबार मुआयना किया जा रहा है। सरकार ने कंपनी को जमीन का मुआवजा प्रति एकड़ दस लाख रुपए देने के लिए  राजी कर लिया है। बावजूद इसके जैंतापुर परमाणु प्रकल्प के खिलाफ जनआक्रोश कम नहीं हो रहा है। लोगों के गुस्से का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन २२०० लोगों की जमीनें सरकार ने अधिगृहित की है, उनमें से लगभग सौ लोगों ने ही मुआवजे स्वीकार किए हैं।

 

आंदोलनकारियों की सक्रियता को देखते हुए इलाके में सुरक्षा-व्यवस्था कड ी कर दी गई है। स्थानीय लोगों पर पुलिस की प्रताड ना जारी है। लगभग दो सौ लोगों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमा चल रहा है। आधा दर्जन से अधिक लोगों को तड ीपार यानी जिला-बदर कर दिया गया है। एक आंदोलनकर्मी की पुलिस-गाड ी के नीचे आने से मौत हो चुकी है। पिछले दिनों पुलिस ने जनसंगठन 'जनहित सेवा समिति' के संयोजन प्रवीण गवाणकर को सात दिनों के न्यायिक हिरासत में ले लिया है। परियोजना के लिए कुल ९३८ हेक्टेयर जमीन ली जानी हैं, जिसमें ६६९ हेक्टेयर जमीन माड वन गांव की है और प्रवीण माड वन गांव के निवासी हैं।

जैंतापुर के लोग परमाणु प्रकल्प के लिए जीते जी जमीन नहीं सौंपने के लिए संकल्पित हैं। मड़वन में परमाणु प्रकल्प के विरोध में लगभग एक दर्जन पंचायतें अब तक भंग हो चुकी हैं। गांववालों ने तय किया है वे परियोजना की चौकसी में लगे पुलिस वालों को किसी भी तरह का सहयोग नहीं करेंगे। परियोजना के विरोध के कारणों और मड वन की महत्ता पर गांववालों ने अपने सीमित संसाधनों के भीतर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई है। माड वन, जैंतापुर के निवासियों का कहना है कि अरेवा निजी कंपनी है और वह हमारे गांव में समाज-सेवा नहीं बल्कि गांव समाज और पर्यावरण की कीमत पर अपने लिए घोर मुनाफा कमाने आ रही है। ऐसे में हम उन्हें क्यों अपनी प्राकृतिक विरासत और लोगों का जीवन दांव पर लगाने की अनुमति दे दें। अरेवा कोंकण की जमीन पर पहली बार ईपीआर, यूरोपीयन प्रेसराइज्ड रिएक्टर की तकनीक की जांच करनेवाली है। ऐसे में गांववालों को अंदेशा है कि अरेवा परमाणु उर्जा प्रकल्प के नाम पर भारत की धरती को प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है।

सरकार के पास जैंतापुर के निवासियों के किसी प्रश्न का उत्तर नहीं हैं और न ही वह प्रश्नों के उत्तर देने के लिए स्वयं उत्तरदायी मान रही है। सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधि अपने तात्कालिक निजी हितों के लिए जैंतापुर के लोगों को विनाश की आग में झोंक रहे हैं। ऐसे में जैंतापुर परमाणु उर्जा प्रकल्प के खिलाफ जनआंदोलन की हार या जीत केवल स्थानीय प्राकृतिक एवं मानवीय विरासत की सुरक्षा के सवाल से नहीं जुड ा है। यह लड ाई नव-औपनिवेशिकता के दौर में लोकतंत्र के बदलते चरित्र की ओर इशारा करती है। जैंतापुर की लडाई ध्यान दिलाती है कि लोकतंत्र के सवाल में प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण का सवाल गहरायी से जुडा है।

(दैनिक भास्कर, दिल्ली के समय पृष्ठ पर 24 फरवरी 2011 को प्रकाशित)



Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close