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न्यूज क्लिपिंग्स् | तेंदूपत्ता मिले खास कचरे से खेती कर रहे राजस्थान के किसान

तेंदूपत्ता मिले खास कचरे से खेती कर रहे राजस्थान के किसान

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published Published on Jun 29, 2015   modified Modified on Jun 29, 2015
हरिओम गौड, श्‍योपुर(मध्‍यप्रदेश)। श्योपुर व आसपास के गांवों के लोग जिस कचरे को घूरे पर फेंक देते हैं, उसी कचरे से राजस्थान के किसान रेगिस्तान में खेती कर रहे हैं। तेंदूपत्ता मिले खास किस्म के इस कचरे को राजस्थान के किसान चंबल व बनास नदी के किनारे रेत के ऊपर बिछाकर कृत्रिम खेत बनाते हैं।

इन खेतों में गर्मी के सीजन में खरबूजा, ककड़ी के अलावा कई तरह की मौसमी सब्जियों की खेती करते हैं। चंबल व बनास नदी का रेगिस्तान गर्मियों में श्योपुर व आसपास के क्षेत्रों से ले जाए गए कचरे से हरा-भरा नजर आता है।

चंबल व बनास किनारे रेगिस्तान में 200 से 250 बीघा जमीन में इस तरह की खेती होती है। खास बात यह भी है कि कुछ साल पहले तक नगर पालिका राजस्थान के किसानों से इस कचरे पर टैक्स वसूलती थी, लेकिन परिषद ने इसे खत्म कर दिया है।

इसलिए उपजाऊ है कचरा

बीड़ी बनाने का काम श्योपुर में जिला मुख्यालय से लेकर सैकड़ों गांवों में होता है। बीड़ी तेंदूपत्ता से बनती है। बीड़ी के लिए पत्ते की कटिंग करने के बाद इसके कटे हुए कचरे को मजदूर घूरों पर फेंक देते हैं। यही कचरा राजस्थान के किसान ले जाते हैं और मिट्टी के साथ मिलाकर इसे रेत के ऊपर बिछाते हैं।

बीड़ी के पत्तों का कचरा मिट्टी में इस तरह की परत बना लेता है, जिससे पानी को रेत सोख नहीं पाती। पत्ते के कचरे के कारण मिट्टी में नमी तो बनी ही रहती है, साथ यह उत्तम श्रेणी के जैविक खाद का भी काम करता हैं। यही कारण है रेगिस्तान में बने कृत्रिम खेतों में खरबूजे और ककड़ी जैसे फल आसानी से उग जाते हैं।

बारिश में खत्म हो जाते हैं खेत

रेगिस्तान में हर साल किसानों को ये खेत बनाने पड़ते हैं। दरअसल, बारिश में जैसे ही नदियों में उफान आता है तो किनारे पर बने यह खेत पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। सर्दी के अंत में जैसे ही नदियों का जलस्तर घटता है और नदी के किनारे खाली हो जाते हैं तो श्योपुर से कचरा ले जाकर खेत बनाने का काम शुरू हो जाता है। हालांकि, अब कई बीड़ी मजदूर इस कचरे को सालभर घूरा बनाकर इकठ्ठा करते हैं और बाद में राजस्थान के किसानों को बेच देते हैं। इस कचरे से बीड़ी मजदूरों की भी अतिरिक्त आय हो जाती है।

हम तेंदूपत्तों या उनकी कतरन मिला कचरा लाते हैं। इसे मिट्टी में मिलाकर रेगिस्तान में बिछा देते हैं।पत्ते खेत से पानी नहीं सूखने देते और खाद का काम करते हैं। इसलिए इनमें खरबूजा की पैदावार अच्छी होती है। - किशनचंद कुशवाह, किसान, खंडार राजस्थान

पहले नपा इस कचरे पर टैक्स लेती थी, लेकिन परिषद ने इसे बंद करवा दिया। अब राजस्थान के किसान लोगों से ही यह कचरा खरीदकर या व्यवहार में ले जाते हैं। इस कचरे से चंबल किनारे रेत में खेती की जाती है। - भोजराज सिंह, स्वास्थ्य अधिकारी, नपा श्योपुर

 


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