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न्यूज क्लिपिंग्स् | दुनिया की 90 फीसदी आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही

दुनिया की 90 फीसदी आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही

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published Published on Sep 28, 2016   modified Modified on Sep 28, 2016

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट में कहा कि दुनिया की 90 फीसदी आबादी जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर है। यानी विश्व में हर 10 में से 9 लोग प्रदूषित वायु में रह रहा है। इसके मुताबिक, हर साल करीब 60 लाख लोगों की मौत प्रदूषित हवा के कारण हो रही है। अगर जल्द ही इसके खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो हालात और बदतर हो जाएंगे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यएचओ) के सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण विभाग की प्रमुख मारिया नियरा का कहना है कि संगठन की रिपोर्ट के हालिया आंकड़े हम सभी को अत्यधिक चिंता में डालने के लिए काफी हैं। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक, शहरों की हवा बेहद की प्रदूषित है। हालांकि ग्रामीण इलाकों की भी हालत अच्छी नहीं है।

नियरा का कहना है कि गरीब देशों में विकसित देशों की तुलना में वायु प्रदूषण ज्यादा है लेकिन विकसित देश भी ज्यादा पीछे नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण दुनिया के सभी देशों में है और समाज के सभी हिस्सों में है। इस समस्या का सामना करने के लिए सभी को एक साथ आना होगा।

सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल
नियरा ने दुनिया में जहरीली हवा के स्थिति को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल करार दिया। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए तेजी से कार्रवाई ही काफी नहीं है। उन्होंने दुनिया भर की सरकारों से सड़क पर वाहनों की संख्या में कमी करने, कचरा निपटान प्रबंधन को बेहतर करने और स्वच्छ कुकिंग ईंधन को बढ़ावा देने की अपील की।

तीन हजार जगहों में जांच
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनियाभर में 103 शहरों के 3000 अलग-अलग हिस्सों में हवा की गुणवत्ता की जांच की। 2008 से 2015 के बीच किए गए इस सर्वे में ये जानकारी सामने आई कि इन जगहों में प्रदूषित हवा के लिए जिम्मेदार कारण डब्ल्यूएचओ द्वारा तय सीमा से अधिक थे। जानकारों का कहना है कि जिस तरह से दुनिया के देश विकास के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं, उसका सीधा असर पर्यावरण पर हो रहा है।

इन पर फोकस
वायु प्रदूषण की जांच के लिए डाटा एकत्र करने में खतरनाक कणों पर ध्यान दिया गया। यानी पीएम2.5 से तुलना की गई। पीएम2.5 में जहरीले तत्व जैसे सल्फेट और ब्लैक कार्बन होते हैं। ये फेफड़ों और हृदय प्रणाली में गहरे तक घुस जाते हैं। संगठन ने जमीनी और सेटेलाइट के जरिए इन जगहों की हवा के आंकड़े जुटाए।

साल में लाखों की मौत
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भीतरी और बाहरी वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब 60 लाख लोगों की मौत होती है। रिपोर्ट की माने तो सालाना 30 लाख से अधिक लोगों की जान बाहरी वायु प्रदूषण के कारण जा रही है। हालांकि भीतरी वायु प्रदूषण भी कम घातक नहीं है खासकर गरीब देशों में जहां घरों में लकड़ी को जलाने से खाना पकाया जाता है।

विकसित देशों में ज्यादा मौतें
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि वायु प्रदूषण से करीब 90 फीसदी मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। भारत, चीन, मलेशिया और वियतनाम समेत दक्षिणपूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत देश ज्यादा प्रभावित हैं।

कुछ ने कदम उठाए
डब्ल्यूएचओ के सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण विभाग के संयोजक कार्लोस डोरा ने कहा कि कुछ देशों ने प्रदूषित हवा के प्रभाव को सीमित करने के लिए कुछ रक्षात्मक उपाय अपनाए हैं। उदाहरण के तौर पर बीजिंग ने कुछ दिनों के लिए हर दिन हवा की गुणवत्ता संबंधी चेतावनी जारी की। हवा के ज्यादा प्रदूषण वाले दिन लोगों से घरों के अंदर ही रहने को कहा गया।

मास्क का ज्यादा प्रभाव नहीं
कार्लोस डोरा का कहना है कि डब्ल्यूएचओ को ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला कि मुंह लगाए जाने वाले मास्क जहरीली हवा को ज्यादा साफ करते हों।

मई में भी आंकड़े जारी किए थे
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसी साल मई में भी एक अलग डाटा सेट का इस्तेमाल कर वायु प्रदूषण संबंधी आंकड़े जारी किए थे। इसके अनुसार, दुनिया के शहरों की 80 फीसदी आबादी जहरीली हवा में रह रही है। इसमें गरीब देशों में यह आंकड़ा 98 फीसदी था। इसमें कहा गया था कि शहरों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। इसके चलते लोगों को अस्थमा और स्ट्रोक (आघात) जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा बढ़ा है। रिपोर्ट में बाहरी वायु प्रदूषण पर ज्यादा फोकस था। यह सर्वे वर्ष 2008 से 2013 के बीच 67 देशों में 795 शहरों में किया गया था।
इस सर्वे में बताया गया था कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप जैसे धनी क्षेत्रों में आमतौर पर वायु की गुणवत्ता सुधरी है लेकिन मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के विकासशील देशों में इसकी हालत बुहत खराब है। रिपोर्ट में कहा गया था कि 30 लाख से अधिक लोग हर साल बाहरी वायु प्रदूषण के चलते अपनी जान गंवा रहे हैं।

दिल्ली सबसे अधिक प्रदूषित शहर
मई में जारी डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में 1.40 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में दिल्ली सबसे प्रदूषित पाया गया था। इसके बाद मिस्र की राजधानी काहिरा और बांग्लादेश की राजधानी ढाका का नंबर था।

शहरों में प्रदूषण के मुख्य कारण
मई में जारी रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण काअहम कारक परिवहन को बताया गया था। इसके अनुसार, ट्रैफिक में वाहनों की संख्या कम कर और साइकिल चलाने, पैदल चलने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देकर हवा की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है। साथ ही इमारतों को ठंडा और गरम करने वाले उपकरण भी हवा प्रदूषण की प्रमुख कारण है। साथ ही डीजल जेनसेट और कचरा जलाने का एक वजह है।


http://www.livehindustan.com/news/international/article1-90-percent-population-breathing-toxic-air-567385.html


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