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न्यूज क्लिपिंग्स् | नए कर विधान का मंगलाचरण-- पी. चिदंबरम

नए कर विधान का मंगलाचरण-- पी. चिदंबरम

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published Published on Jun 28, 2017   modified Modified on Jun 28, 2017
कुछ साल पहले हमने गंतव्य आधारित कर-प्रणाली का वादा किया था, और वक्त आ गया है जब वह वादा पूरा होगा, अगर पूर्ण रूप में नहीं, तो भी काफी हद तक। ठीक आधी रात के समय, जब कारोबारियों और उपभोक्ताओं को नींद नहीं आ रही होगी, भारत एक नए कर-विधान का आगाज करेगा। ऐसी घड़ी आती है, जो कि हमारे आर्थिक इतिहास में कभी-कभी ही आती है, जब हम पुराने की खोल से बाहर निकल कर नई जमीन पर कदम रखते हैं, जब एक सदी का अंत होता है, और जब एक देश के लंबे समय से संतप्त रहे करदाता नया विहान होने की उम्मीद करते हैं। इस पवित्र अवसर पर यह उचित होगा कि हम समर्पित होकर भारत व उसके करदाताओं की सेवा करने और उससे भी बढ़ कर कर-न्याय का व्रत लें। इस सदी की प्रभात वेला में- ठीक-ठीक कहें तो 2005 में- भारत ने जीएसटी की अपनी खोज शुरू की थी, और इस बीच के साल निराशा तथा हताशा से भरे रहे हैं। चाहे अच्छा वक्त रहा या बुरा, उसने कभी भी उस खोज को अपनी दृष्टि से ओझल नहीं होने दिया या अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को कभी भी भुलाया नहीं। हम आज खुद से बनाए दुर्भाग्य के दौर का अंत कर रहे हैं और भारत में एक नए कर-विधान की शुरुआत हो रही है, हालांकि यह आदर्श कर-विधान नहीं है। जिस उपलब्धि का हम आज जश्न मना रहे हैं, वह एक कदम है, एक अवसर की शुरुआत, उन ज्यादा बड़ी जीतों और उपलब्धियों की दिशा में, जिनका हम सपना देखते हैं। क्या हममें इतनी विनम्रता और बुद्धिमत्ता है कि हम इस मौके की अहमियत को समझ सकें और भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार कर सकें?
सहा गया दर्द
एक नई कर-व्यवस्था जिम्मेदारी भी लाती है। यह जिम्मेदारी आयद होती है संसद और इसके सदस्यों पर, एक संप्रभु संस्था जो भारत की संप्रभु जनता का प्रतिनिधित्व करती है। जीएसटी के लक्ष्य तक पहुंचने से पहले हमने अंध-विरोध की सारी पीड़ा झेली है और उन गंवाए हुए वर्षों की याद से हमारे दिल भारी हैं। उनमें से कुछ दर्द अब भी जारी हैं। पर अतीत पीछे छूट चुका है और अब यह भविष्य है जो हमारी ओर देख रहा है।
जीएसटी का रास्ता आसान या आराम का नहीं है, बल्कि हमें सतत प्रयास करने होंगे ताकि हम संसद में की गई प्रतिज्ञाओं को, और जो प्रतिज्ञा आज हम करेंगे, उन सबको पूरा कर सकें। करदाताओं की सेवा का अर्थ है उन करोड़ों लोगों की सेवा, जो कई तरह के करों का दंश झेलते रहे हैं। इसका अर्थ है कि एक कर हो, तर्कसंगत हो और उसे बगैर उत्पीड़न के, ईमानदारी से वसूला जाए। इसलिए हमें कड़ी मेहनत करनी है, काम करना है, और कठिन काम करना है ताकि हम जीएसटी की परिकल्पना को साकार कर सकें। मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि उसका आना तय है; कर-निर्धारण भी निश्चय ही होना है, और इस तरह इस दुनिया में कर-उत्पीड़न भी होता है, पर अब इसे हम उचित या न्यायसंगत मान कर बर्दाश्त नहीं कर सकते। भारत के लोगों से, हम जिनके प्रतिनिधि हैं, यह अपील करते हैं कि वे इस महान साहसिक काम में आशा और विश्वास के साथ शामिल हों। यह दंभ या अकड़ दिखाने का समय नहीं है, न ही बहाने गढ़ने और दूसरों पर दोष मढ़ने का समय है। हमें कर-निर्धारण की साफ-सुथरी व्यवस्था बनानी है ताकि सारे उत्पादक और तमाम सेवा प्रदाता अपना काम सुचारु रूप से कर सकें।
सौभाग्य का क्षण
निर्धारित दिन आ गया है- पूरी तरह हमारे तैयार होने से शायद पहले ही- और भारत एक बार फिर तमाम बाधाओं और संघर्षों के बाद आगे की ओर देख रहा है- सतर्क, सशंकित, असंतुष्ट मगर उम्मीद से भरा हुआ। अतीत कुछ हद तक हमें अब भी पकड़े हुए है, और हमें जीएसटी को सही रूप में लाने के लिए- जिसमें पेट्रोलियम, बिजली और अल्कोहल भी उसके दायरे में हों- हमें कड़ी मेहनत करनी है। निर्णायक घड़ी निकट भविष्य में आएगी, और अपना भाग्य हम खुद तय करेंगे, ऐसा भाग्य जिसे हासिल कर पाएं या नहीं, पर दूसरे उसके बारे में जरूर लिखेंगे। यह सौभाग्य का क्षण है, हमारे लिए जो सरकार में हैं, पूरे भारत के लिए और इसके सारे राज्यों के लिए। एक नई कर-व्यवस्था का उदय हो रहा है, एक वादा जो 2005 में किया गया था वह पूरा हो रहा है, लंबे समय से देखा जा रहा एक सपना साकार हो रहा है। दुआ करें कि नई कर-व्यवस्था कभी भी उत्पीड़क साबित नहीं होगी और इससे की जा रही उम्मीदों को झुठलाएगी नहीं!
हम उसी उम्मीद में आनंदित हैं, हालांकि हमारे ऊपर अधूरी तैयारियों के बादल छाए हुए हैं, और कई लोगों ने हमें दोहरी व्यवस्था, और जो कठिन प्रश्न हमें घेरे हुए हैं उनके प्रति हमें आगाह कर रखा है। नई व्यवस्था हम पर जिम्मेदारियां और बोझ लाती है और हमें विनम्रता तथा गलतियों को दुरुस्त करने की तत्परता के साथ उनका सामना करना है। कई बार हमारा विरोध नासमझी भरा होता है जो तर्क से भटका देता है, पर आने वाली पीढ़ियां बड़े उद््देश्य को और जिम्मेदारी के भाव को अपने दिलों में बनाए रखेंगी। हमें उस उद््देश्य को कभी भी धूमिल नहीं पड़ने देना चाहिए, हालांकि सही-गलत किसी भी तरीके से राजस्व इकट्ठा करने का लोभ हो सकता है।
हमें उन शुरुआती समर्थकों और विद्वानों को भी नहीं भूलना चाहिए, जो प्रशंसा या पुरस्कार से परे, जीएसटी के मकसद की हिमायत करते रहे, और यहां तक कि अपनी हंसी उड़ने की भी परवाह नहीं की। भविष्य हमारी तरफ देख रहा है। हमें किधर जाना है और हमारे प्रयास क्या होंगे? जीएसटी को उसके सही स्वरूप में लाने और भारत के उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए समान बाजार निर्मित करने के लिए, कर-भेदभाव और कर-उत्पीड़न से लड़ने और उसे खत्म करने के लिए, अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्धात्मक व गतिशील बनाने के लिए और निर्धारक तथा सुनवाई करने वाली संस्थाएं बनाने के लिए, जो हरेक उत्पादक व उपभोक्ता के लिए न्याय सुनिश्चित करें, हमें क्या-क्या करना होगा?

एक देश, एक कर
आगे हमें कठिन काम करना है। हममें से किसी के लिए आराम नहीं है, जब तक हमारी प्रतिज्ञा पूर्ण रूप से पूरी नहीं हो जाती, जब तक हम जीएसटी को उसके पूरे सही स्वरूप में, एक देश-एक कर की व्यवस्था में नहीं ला देते, जैसा कि सोचा गया था।

हमें विरासत में एक मजबूत अर्थव्यवस्था मिली है, जिसकी विकास दर काफी ऊंची थी, और हमें कुछ साल पहले के उस पैमाने तक फिर से पहुंचना है। हम सभी, चाहे वे जिस पद पर हों, समान अधिकारों और समान बाध्यताओं के साथ समान रूप से उत्तरदायी हैं। हम न तो निष्ठुर कर-प्रशासन और न ही कर की ऊंची दरों को प्रोत्साहित कर सकते हैं, क्योंकि किसी भी ऐसे देश की अर्थव्यवस्था गतिशील नहीं हो सकती जिसके कर-कानून और कर-प्रशासन सिद्धांत में या व्यवहार में संकीर्णता के शिकार हों।

भारत के लोगों और भारत के राज्यों को हम बधाई देते हैं और यह संकल्प लेते हैं कि साफ-सुथरी और न्यायसंगत कर-व्यवस्था की तरफ बढ़ने में हम उनका सहयोग करेंगे। और भारत के करदाताओं, बड़े और मझोले व छोटे तथा सूक्ष्म उद्यम के कारोबारियों, और हरेक परिवार के प्रति हम हमेशा के लिए आभार जताना चाहते हैं, और हम एक बार फिर उनकी सेवा के लिए समर्पित रहने का वचन देते हैं।


http://www.jansatta.com/sunday-column/dusri-nazar-p-chidambaram-article-about-gst/357725/


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