Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | निर्मल गंगा का सपना- केपी सिंह

निर्मल गंगा का सपना- केपी सिंह

Share this article Share this article
published Published on Jun 27, 2014   modified Modified on Jun 27, 2014
जनसत्ता 25 जून, 2014 :गंगा को निर्मल बनाने का अभियान नई सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है। सरकार की प्रतिबद्धता इसी बात से आंकी जा सकती है कि इस संबंध में प्रारंभिक बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। काम बहुत मुश्किल है, पर असंभव नहीं।

गंगा हिमालय से निकल कर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर समुद्र मे विलीन हो जाती है। रास्ते में अनेक छोटी-मोटी नदियां, बरसाती नाले, गंदे पानी की धाराएं, उद्योगों से निकला हुआ रसायन-युक्त पानी और कचरा गंगा के जल में मिलता रहता है। अधजले मानव शव, पशु-पक्षियों के सड़े-गले मृत शरीर, कृषि अपशिष्ट और प्लास्टिक का सामान गंगा के प्रदूषण को और बढ़ा देते हैं। धार्मिक और परंपरागत सामाजिक मेलों में प्रतिवर्ष गंगा तट पर करोड़ों की संख्या में उमड़ने वाली भीड़ की प्रदूषण के प्रति अनभिज्ञता और जानकारी का अभाव गंगा के प्रदूषण के लिए मुख्यतया जिम्मेदार हैं। निर्मल गंगा अभियान की सफलता के लिए प्रदूषण-कारकों को दूर करने के उपाय करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

गंगा को निर्मल बनाने के प्रयास बहुत पहले से किए जाते रहे है। इस कड़ी में वर्ष 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था। इसके बावजूद गंगा का प्रदूषण घटने के बजाय लगातार बढ़ता ही गया है। वर्ष 2000 से 2010 के बीच 2800 करोड़ रुपए की गंगा सफाई परियोजना के पूरा हो जाने के बाद भी गंगा के प्रदूषण के स्तर में कोई फर्क नहीं आया है। जाहिर है, परियोजना बनाने में कोई न कोई मूलभूत चूक हुई होगी। या फिर परियोजना को लागू करने में कोताही की गई होगी। पुराने अनुभवों से सीख कर गंगा-सफाई अभियान के लिए एक सार्थक परियोजना अत्यंत बनाना गंभीर चुनौती है।

निर्मल गंगा अभियान की सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती यह है कि गंगा के बहाव को किस प्रकार नियंत्रित किया जाए ताकि साल भर गंगा में पानी के अविरल बहाव का एक न्यूनतम स्तर सुनिश्चित किया जा सके। इसकी षुरुआत हिमालय में गंगा की सहायक नदियों और गंगा की मुख्यधारा पर कंक्रीट के बांध बना कर की जा सकती है। हिमालय में गंगा के बहाव के रास्ते में इतना ढलान है कि हर तीस किलोमीटर पर बांध बना कर झील बनाई जा सकती है। इससे पानी का बहाव नियंत्रित ही नहीं होगा बल्कि साल भर गंगा में पानी के बहाव की गारंटी भी मिलेगी। इन बांधों में जमा होने वाले पानी का प्रयोग करके संपूर्ण भारत की ऊर्जा और पानी की समस्या का हल ढूंढ़ा जा सकता है।

हिमालय में बांधों के निर्माण के सुझाव को यह कह कर दरगुजर किया जाता रहा है कि इससे पर्यावरण को नुकसान होगा। इस तर्क में दम नहीं है क्योंकि बांध बनाने से जिस क्षेत्र को झील में परिवर्तित किया जाएगा उसका अधिकतर हिस्सा बरसात के चार महीनों में पहले ही झीलनुमा बन जाता है। बांधों के विरोध में दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि हिमालय पर्वत भूकम्प की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील इलाके मेंस्थित है। बड़े भूकम्प के समय बांध फटने का अंदेशा रहेगा और उसके फलस्वरूप पानी के बहाव के कारण मैदानी क्षेत्रों में तबाही मच सकती है।

आजकल आधुनिक निर्माण विधि भूकम्प-रोधी बांध बनाने में सक्षम है। अत: इस संदेह का हल इंजीनियरों के पास उपलब्ध है। पिछले वर्ष केदारनाथ में आई बाढ़ के कारण उपजी परिस्थितियों के अध्ययन से बांध बनाने की योजना को एक और मजबूत आधार मिल जाता है। अगर टिहरी बांध न होता तो पिछले वर्ष केदारनाथ में आई बाढ़ के कारण हरिद्वार बिजनौर, रुड़की, मुजफ्फरनगर और दिल्ली तक कई शहर तबाह होकर नक्शे से गायब हो गए होते। टिहरी बांध का जल-स्तर उस समय न्यूनतम था, जिसके कारण उसने वर्षा के आधे पानी को अपने में समेट लिया था। अगर हिमालय में इस प्रकार के दर्जनों बांध होंगे तो भूकम्प या भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदा में एक या दो बांध के क्षतिग्रस्त होने से भी कोई बड़ी हानि नहीं होगी। दूसरे बांध इस विभीषिका को नियंत्रित करने में सक्षम होंगे।

गंगा सफाई अभियान में दूसरी बड़ी चुनौती गंगा को मैदानी क्षेत्रों में नियंत्रित करने की है। हरिद्वार से निकलते ही गंगा कई मील चौड़ी जल-धारा में परिवर्तित हो जाती है। तटों को पार करके गंगा का पानी प्रतिवर्ष एक बहुत बड़े क्षेत्र में तबाही मचाता हुआ समुद्र में जा मिलता है। तटों को मजबूत बना कर मैदानी क्षेत्रों में गंगा पर प्रत्येक तीस किलोमीटर पर एक कम ऊंचाई वाला मिट््टी का बांध बनाया जा सकता है। इस पानी का प्रयोग गंगा के दोनों ओर कम-से-कम पचास किलोमीटर के क्षेत्र में सिंचाई और पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है। तट-बंधों के बन जाने से शहरों और उद्योगों से निकलने वाला गंदा पानी स्वत: गंगा में मिलने से रुक जाएगा। मशीनीकरण के युग मे इस प्रकार के मिट््टी के  बांध या तट-बंध बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है।

शहरों और उद्योगों के गंदे पानी को गंगा में मिलने देना एक गंभीर समस्या है। पिछले गंगा सफाई अभियान के दौरान गंदे पानी को साफ करने के लिए मल-परिशोधन संयंत्रों पर बहुत बड़ी धनराशि खर्च की गई थी। इसके बावजूद मल-युक्त पानी गंगा में प्रवाहित हो रहा है। हकीकत यह है कि अधिकतर मल-परिशोधन संयंत्र बेकार पड़े हैं या ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। इसके लिए कोई अन्य तरकीब ढूंढ़ने की आवश्यकता है। मल-युक्त पानी को मल-शोधन के

प्राकृतिक तरीकों को ही नया स्वरूप देकर परिशोधित इस पानी का प्रयोग खेतों मे सिंचाई के लिए किया जा सकता है। मल-युक्त पानी को नदियों के जल में मिलने देना एक अपराध के समान है।

लोगों को जागरूक करके उनका सहयोग लिए बिना गंगा को प्रदूषण-मुक्त बनाना निरा स्वप्न ही साबित होगा। धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के वशीभूत दूर-दूर से लोग शवों का अंतिम संस्कार करने गंगा-तट पर आते है और अधजले शव नदी में बहा कर चले जाते हैं। प्रतिवर्ष करोड़ों लोगों की अस्थियां नदियों में विसर्जित की जाती हैं। लाखों की संख्या में मवेशियों और जानवरों के शव नदियों में तैरते देखे जा सकते हैं। लाखों की संख्या में साधु-समाज गंगा तट पर जीवन-यापन कर रहा है। धार्मिक मान्यताओं को व्यावहारिक रूप देने की आवश्यकता है। जब तक गंगा तट पर शवों का दहन होता रहेगा और अस्थियां विसर्जित होती रहेंगी, गंगा को प्रदूषण-मुक्त नहीं किया जा सकता।

धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को बदलने के लिए धार्मिक गुरुओं को विश्वास में लेने की जरूरत है। ऐसा करना असंभव नहीं है। कुरुक्षेत्र के चारों ओर अड़तालीस कोस के क्षेत्र को महाभारत का धर्मक्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में यह परंपरा है कि शव-दहन के बाद अस्थियों या राख को श्मशान से नहीं उठाया जाता। समय के साथ अस्थियां और राख श्मशान की भूमि की मिट््टी का हिस्सा बन जाती हैं। इसी प्रकार का एक दूसरा उदाहरण भी है। हाल ही में एक नई नहर का निर्माण हुआ है जो हरिद्वार में गंगा से निकल कर मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली और बागपत जिलों से होकर गुजरती है। इस नहर के आसपास बसे गांवों के लोगों ने अब अस्थियां लेकर हरिद्वार जाना बंद कर दिया है। इस नहर के जल को ही गंगा जल मान कर अस्थियां उसमें प्रवाहित कर दी जाती हैं। अभिप्राय यह है कि परंपराएं और मान्यताएं बदली जा सकती हैं, बशर्ते सभी को विश्वास में लेकर इसकी तर्कसंगत शुरुआत की जाए। इस विषय पर भी विचार करने की आवश्यकता है कि क्यों न अस्थियों को जल में प्रवाहित करने के बजाय धरती मां की गोद में स्थान दिया जाए। इससे अस्थियां मिट््टी का हिस्सा बन जाएंगी।

पर्वतीय और मैदानी इलाकों में गंगा नदी पर बांध बना कर गंगा की जलधारा को अविरल बनाया जा सकता है जिसका प्रयोग सवारी और माल ढोने के लिए जल-मार्ग के रूप में किया जा सकता है। इससे नदी के किनारों पर बसे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और सड़क और रेल यातायात से सस्ती और सुलभ यातायात सुविधा लोगों को उपलब्ध हो सकेगी। अविरल जल-धारा में पानी के जीव और वनस्पति फले-फूलेंगे जिससे पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

   गंगा के घाटों पर स्थान-स्थान पर प्रतिदिन होने वाले कर्मकांड, पूजा और स्नान की बदौलत जलधारा सबसे अधिक प्रदूषित होती है। इसके लिए मुख्य धारा में से एक अलग धारा निकाल कर इस प्रकार के धार्मिक उपक्रमों के लिए अलग से व्यवस्था की जा सकती है। इस अलग धारा के पानी को मुख्यधारा से अलग रख कर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

गंगा के प्रवाह को अविरल बनाए रखने के लिए यह भी जरूरी हो जाता है कि इसके बहाव क्षेत्र के बीच से रेत और गाद को निरंतर हटाया जाए। खनन गतिविधियों को नियंत्रित करने से ही ऐसा करना संभव हो सकता है। अत: नियोजित खनन को गंगा के प्रवाह-क्षेत्र में अनुमति देनी होगी। इससे सरकार को कर के रूप में काफी राजस्व भी प्राप्त होगा और बहुतेरे लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

निर्मल गंगा अभियान एक व्यावहारिक अवधारणा है इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। पर यह काम आसान नहीं है। इसके लिए व्यापक स्तर पर तालमेल की आवश्यकता होगी। तालमेल समिति में पवर्तीय क्षेत्रों में काम करने वाले इंजीनियर, धार्मिक संगठनों से जुड़े धर्म-गुरु, प्रबुद्ध समाज के प्रतिनिधि, यातायात विशेषज्ञ, नहर विभाग के इंजीनियर, जल परियोजनाओं से जुड़े इंजीनियर, वित्त और योजना विभाग के विशेषज्ञ और जन-प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए। इसके लिए सभी संबंधित राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक उच्चाधिकार प्राप्त आयोग की स्थापना की जानी चाहिए जो स्वतंत्र फैसले लेने में सक्षम हो। जाहिर है, एक व्यापक कानून बना कर ही ऐसा किया जा सकता है।

गंगा को निर्मल बनाने का अभियान एक महत्त्वाकांक्षी योजना है और महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए प्रतिबद्धता की खुराक जरूरी होती है। प्रतिबद्धता और प्रयास के सहारे भगीरथ गंगा को स्वर्ग से उतार लाए थे। अब गंगा को निर्मल बनाने के लिए भी भगीरथ प्रयत्न की आवश्यकता है। यह तो भविष्य ही बता सकेगा कि निर्मल गंगा का प्रस्तावित प्रयास कितना सफल होगा। पर अभियान के पीछे काम कर रही मंशा पर किसी प्रकार के संदेह की गुंजाइश नहीं है।

http://www.jansatta.com/index.php?option=com_content&view=article&id=71833:2014-06-25-03-51-10&catid=20:2009-09-11-07-46-16


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close