Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | न्याय की चौखट पर न अटके विकास - डॉ. भरत झुनझुनवाला

न्याय की चौखट पर न अटके विकास - डॉ. भरत झुनझुनवाला

Share this article Share this article
published Published on Feb 13, 2018   modified Modified on Feb 13, 2018
हर वर्ष बजट की पूर्वसंध्या पर केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक सर्वेक्षण जारी किया जाता है। इस रपट में बीते वर्ष का लेखा-जोखा दिया जाता है। इस वर्ष के सर्वेक्षण में आर्थिक विकास पर न्यायपालिका के प्रभाव को भी बताया गया। इसमें कहा गया कि विकास की तमाम योजनाओं पर कोर्ट ने स्टे दे रखा है, जिसके कारण वे रुकी पड़ी हैं। इन स्टे के कारण 52,000 करोड़ की योजनाएं रुकी हुई हैं। जैसे सड़क बनाने के लिए किए जा रहे भूमि के अधिग्रहण पर कोर्ट ने स्टे दे दिया तो उस सड़क का काम रुक गया। रुके प्रोजेक्ट अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालते हैं। करीब साढ़े सात लाख करोड़ से ज्यादा की विशाल राशि भी अदालतों और न्यायाधिकरणों में लंबित मामलों के कारण फंसी हुई है। यह जीडीपी का 4.7 फीसदी है। विकास परियोजनाओं के थमने और टैक्स की राशि के लंबित रहने का एक कारण न्यायाधीशों की अपनी पसंद के वाद सुनने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच बीते दिनों उपजा विवाद इस बात को लेकर था कि किस वाद को कौन सुनेगा? सामान्यत: यह प्रधान न्यायाधीश के क्षेत्राधिकार में रहता है कि वह वाद का आवंटन करें। कुछ वकीलों की मानें तो चीफ जस्टिस द्वारा कुछ खास वाद अपने चहेते जजों को दिए जा रहे थे। दूसरे वरिष्ठ जजों ने आपत्ति जताई कि ऐसे वादों के आवंटन में उनका भी हिस्सा होना चाहिए। हालांकि अब यह विवाद ठंडा पड़ गया है।

 

 

हमारी न्यायपालिका स्वायत्त है। इस व्यवस्था में वर्तमान जजों द्वारा नए जजों की नियुक्ति की जाती है। नियुक्ति की यह प्रक्रिया गुप्त रहती है। एक अनुमान है कि हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में 80-90 प्रतिशत नियुक्तियां जजों के परिजनों में से होती हैं। जैसे घर का मुखिया किसी बेटी पर मेहरबान हो तो दूसरी बेटियां पूछने का साहस नहीं करतीं। इसी प्रकार जजों के कोलेजियम द्वारा जजों के बेटों को क्यों नियुक्त किया गया, यह कोई पूछ नहीं सकता। जैसे रियासतों के दौर में राजमहल से फरमान जारी होते थे, उसी प्रकार आज जजों की नियुक्ति के फरमान जारी होते हैं। ऐसा किसी लोकतांत्रिक देश में नहीं होता।

 

 

अर्थव्यवस्था के ढीलेपन का एक कारण जजों का संभावित भ्रष्टाचार भी माना जाता है, जो कि उनकी स्वायत्तता के कारण पूर्ण रूप से रक्षित है। इस समस्या के हल के लिए एनडीए सरकार ने नेशनल ज्युडिशियल एकाउंटेबिलिटी कानून बनाया था। इस कानून में व्यवस्था थी कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति एक ऐसे कोलेजियम द्वारा की जाएगी, जिसमें न्यायपालिका, सरकार और स्वतंत्र नागरिक सदस्य होंगे। ऐसा होने पर जज अपने चहेतों की नियुक्ति नहीं कर पाते। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि न्यायपालिका के कार्य में विधायिका का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं है। इसका नतीजा यह हुआ कि जजों का संभावित भ्रष्टाचार रक्षित बना रहा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का एक सार्थक पक्ष भी है। आज हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बड़ी संख्या में वाद सरकार की मनमानी के विरुद्ध दायर होते हैं। तमाम जज इन मामलों का निस्तारण निर्भीकता से करते हैं। वे सरकार के विरुद्ध निर्णय देते हैं, जैसे कोयला ब्लॉक और 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में सुप्रीम कोर्ट ने किया था। इन निर्णयों से देश को भारी लाभ भी हुआ है।

 

 

अदालतों द्वारा सरकार के विरुद्ध निर्णय देना इसलिए संभव है, क्योंकि वे स्वायत्त हैं। उनकी नियुक्ति दूसरे जजों द्वारा की जाती है, सरकार द्वारा नहीं। उन्हें सरकार हटा भी नहीं सकती है। इस सबके बावजूद हमारे सामने चुनौती है कि न्यायपालिका की गोपनीय कार्यशैली को पारदर्शी और जनता के प्रति जवाबदेह कैसे बनाया जाए, जिससे न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नियंत्रण हो। ऐसा करते हुए न्यायपालिका को सरकार की गिरफ्त से बाहर भी रखना है, ताकि सरकार के गलत कदमों पर न्यायपालिका का अंकुश बना रहे। हम कुएं और खाई के बीच फंसे हैं। अगर न्यायाधीशों की नियुक्ति का अधिकार उन्हें ही देते हैं तो बंदरबांट होने की आशंका बनी रहेगी और अगर यह अधिकार सरकार को देते हैं तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता का हनन हो सकता है। इन दोनों से बचने का एक रास्ता इलाहाबाद हाई कोर्ट के हाल के एक निर्णय से निकलता है। उसके समक्ष एक विवाद बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर था। स्वामी स्वरूपानंद एवं स्वामी वासुदेवानंद, दोनों की नियुक्ति को हाइकोर्ट ने अवैध पाया। सामान्य परंपरा के अनुसार वर्तमान शंकराचार्य द्वारा अगले शंकराचार्य की नियुक्ति एक इच्छा पत्र के द्वारा की जाती है। आज यह प्रक्रिया संपन्न् नहीं हो सकती है, क्योंकि शायद ही कोई शंकराचार्य इस तरह से नियुक्त किया गया हो। ऐसे में हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि नए शंकराचार्य की नियुक्ति काशी विद्वत परिषद, भारत धर्म सभा मंडल और तीन अन्य शंकराचार्यों द्वारा सम्मिलित रूप से की जाए। इससे यह सिद्धांत निकलता है कि दूसरे स्वतंत्र व्यक्तियों द्वारा नियुक्ति की जाए और उनकी पहचान दूसरे वैध तरीकों से की जाए। ऐसा नहीं है कि हाईकोर्ट ने किन्हीं मनचाहे पांच व्यक्तियों को शंकराचार्य नियुक्त करने का अधिकार दे दिया हो। काशी विद्वत परिषद, भारत धर्म सभा मंडल एवं तीन शंकराचार्य किन्हीं अलग प्रक्रियाओं द्वारा नियुक्त होते हैं। इसमें कोर्ट और सरकार, दोनों का ही हाथ नहीं होता। इसी प्रक्रिया को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए अपनाया जा सकता है।

 

 

जजों की नियुक्ति ऐसे स्वतंत्र व्यक्तियों द्वारा कराई जाए, जो दूसरे वैध तरीकों से नियुक्त होते हों और जो कोर्ट व सरकार, दोनों से स्वतंत्र हों। मसलन, एक ऐसा कोलेजियम बनाया जा सकता है, जिसमें एक सदस्य बार काउंसिल ऑफ इंडिया का अध्यक्ष हो, दूसरा इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया का अध्यक्ष हो, तीसरा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का अध्यक्ष हो, चौथा सबसे बुजुर्ग शंकराचार्य हो और पांचवां सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन का अध्यक्ष हो। ये सभी किसी अलग प्रक्रिया द्वारा अपने पदों पर पहुंचे होते हैं। इनके चयन में कोर्ट और सरकार की भूमिका नहीं होती। इस प्रकार के कोलेजियम द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति और साथ ही उनके भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की जाए, तो देश न्यायपालिका की बंदरबाट और न्यायपालिका पर सरकार के शिकंजे, दोनों ही आशंकाओं से मुक्त हो जाएगा। यहां आपत्ति उठाई जा सकती है कि जजों की काबिलियत की पहचान शंकराचार्य द्वारा कैसे की जा सकेगी? यह भय निर्मूल है। जिस तरह जजों द्वारा टैक्स के बेहद पेचीदा मामलों में निर्णय दिए जाते हैं, उसी तरह इन विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा जजों की काबिलियत के बारे में भी निर्णय दिए जा सकते हैं। जरूरत नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की है, साथ ही उसमें वर्तमान जजों के हस्तक्षेप का अंत करने की भी। तब अदालतों द्वारा स्टे कम दिए जाएंगे, जजों के बीच मनचाहे वादों के आवंटन को लेकर विवाद नहीं उपजेंगे, वाद जल्द निबटाए जाएंगे और जनता को राहत मिलने के साथ अर्थव्यवस्था को गति भी मिलेगी।

 

(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री व आईआईएम, बेंगलुरु के पूर्व प्राध्यापक हैं)

 


https://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-development-should-not-be-stalled-on-the-door-of-judiciary-1554639?utm_source=naidunia&utm_medium=home&utm_campaign=editorial


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close