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न्यूज क्लिपिंग्स् | परमाणु करार के शोर में दबे रह गए कई महत्वपूर्ण मसले- सुजय महदूदिया

परमाणु करार के शोर में दबे रह गए कई महत्वपूर्ण मसले- सुजय महदूदिया

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published Published on Jan 30, 2015   modified Modified on Jan 30, 2015
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भारत दौरे के दौरान भले ही दोनों देशों के बीच कारोबार और निवेश पर जोर देते हुए इसे नई दिशा देने वाले द्विपक्षीय समझौते किए हों, पर कई महत्वपूर्ण विषय अब भी अछूते और अनसुलझे रह गए हैं।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा का मसला ऐसे ही अहम मुद्दों में शामिल है। अमेरिका की ओर से इस बारे में कोई भरोसा या संकेत नहीं मिला है कि वह इस मामले में क्या रुख अपनाएगा।

भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने को लेकर तो काफी-कुछ देखने-सुनने को मिला है, इसके बावजूद इस परमाणु करार के मूल पहलुओं के बारे में अभी कोई स्पष्टता नहीं है। इस व्यापक मुद्दे के किन-किन पहलुओं के बीच दोनों देश के बीच किस प्रकार की सहमति बनी है, यह अब तक स्पष्ट नहीं है।

इस करार के बारे में विस्तृत जानकारियां अभी तक सार्वजनिक प्लेटफार्म पर नहीं आई हैं, न ही य स्पष्ट हुआ है कि देनदारी (लायबिलिटी) के मसले को किस प्रकार सुलझाया गया है।

केंद्र सरकार भले ही इस बात का श्रेय ले रही हो कि उसने परमाणु संयंत्रों की अमेरिका द्वारा निगरानी की शर्त को समझौते में न रखने पर ओबामा को राजी कर लिया है, पर मोदी सरकार के इस दावे की हकीकत कुछ और ही है।

अमेरिका में पहले से की सरकार की कई शीर्षस्थ एजेंसियां जिनमें अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन), विदेश मंत्रालय और यहां तक की अमेरिकी संसद खुद अपनी सरकार से कई मौकों पर कह चुकी है कि अमेरिका द्वारा परमाणु संयंत्र की निगरानी किसी भी देश की संप्रभुता में हस्तक्षेप होगी।

अत: इस शर्त परमाणु समझौते में शामिल नहीं किया जा सकता। भारत-अमेरिका के बीच दोतरफा रिश्तों का नया दौर शुरू होने के दावों के बावजूद अमेरिका की दिग्गज कंपनियों वेस्टिंग्स हाउस, जीई और जनरल एटॉमिक्स के प्रमुख इस मामले में ठीक उसी तरह दिग्भ्रमित नजर आए, जैसे कि दोनों देशों के आम लोग और यहां तक कि विशेषज्ञ भी।

एक दिग्गज अमेरिकी कंपनी के सीईओ का कहना है कि ऐसा नहीं है कि केवल दोनों देशों के बीच परमाणु करार हो जाने से ही अमेरिकी कंपनियां भारत में इस दिशा में निवेश करने और सहायक इकाइयां लगाने को दौड़ पडे़ंगी। मामले से जुड़े मूल बिंदुओं को स्पष्ट हुए बिना ऐसा कुछ नहीं होने वाला है।

इसी तरह ओबामा ने द्रवीकृत प्राकृतिक गैस� (एलएनजी) के आयात के लिए भारत को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग को भी एक बार फिर से अनसुना कर दिया। अमेरिका अपने साथ मुक्त व्यापार समझौते वाले देशों को एलएनजी के निर्यात के लिए इसके व्यापक लिक्विफिकेशन की मंजूरी दे रखी है।

दूसरी ओर अन्य देशों के मामले में इस पर प्रकार की सीमाएं और शर्तें लागू हैं, जिनमें भारत भी शामिल है। मौजूदा व्यवस्था के तहत सरकारी कंपनी गेल इंडिया अमेरिका दो टर्मिनलों से 3.5 और 2.5 एमएमटीए एलएनजी का आयात करती है, पर उसके पास भारत को एलएनजी निर्यात करने का लाइसेंस अब तक नहीं है।

उम्मीद की जा रही थी कि ओबामा की भारत यात्रा के दौरान इस मामले में प्रगति होगी, पर परमाणु समझौते के शोर के बीच यह मसला अनछुआ ही रह गया और इस पर कुछ भी नहीं हुआ। इसके अलावा भारत की सरकारी पेट्रोलियम कंपनी ओएनजीसी को अमेरिका द्वारा काली सूची में डाले जाने का भी कोई समाधान नहीं निकला। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने इरान की कंपनी के साथ कारोबार के चलते ओएनजीसी पर यह प्रतिबंध लगा दिया था।


http://www.amarujala.com/news/samachar/business/many-important-issues-remains-untouched-amid-nuclear-deal-hindi-news/


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