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न्यूज क्लिपिंग्स् | परमाणु विधेयक संशोधन पर पीछे हटी सरकार

परमाणु विधेयक संशोधन पर पीछे हटी सरकार

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published Published on Jun 16, 2010   modified Modified on Jun 16, 2010

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार ने परमाणु क्षतिपूर्ति उत्तारदायित्व विधेयक में आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारियों से जुड़े एक प्रावधान को हटाने के मामले में अपने बढे़ हुए कदम वापस खींच लिए हैं। सरकार अमेरिकी कंपनियों को लाभ पहुंचाने की नीयत से संशोधन करना चाहती है जैसे आरोपों की बौछार के बीच सरकार को कहना पड़ा है कि प्रस्तावित संशोधन सुझाव मात्र थे। संसद की एक स्थाई समिति की आपत्तिायों तथा भारतीय जनता पार्टी और वाम दलों के कड़े विरोध के बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है। क्षतिपूर्ति की मुआवजा राशि बढ़ाने की भी बात उठाई गई है।

परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव श्रीकुमार बनर्जी ने मंगलवार को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तावित संशोधन के मसले पर खेद प्रकट किया। समिति की पिछली बैठक में इस विधेयक की धारा 17[बी] को संशोधित करने के प्रस्ताव से सबंधित एक नोट परमाणु ऊर्जा विभाग ने वितरित किया था।

धारा 17[बी] में यह प्रस्ताव है कि यदि परमाणु सामग्री, उपकरण या सेवाओं के आपूर्तिकर्ता या उनके कर्मचारी की ओर से जानबूझ कर या लापरवाही के कारण कोई हादसा होता है तो आपरेटर कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

स्थाई समिति की 8 जून को हुई पिछली बैठक में जो नोट बांटा गया था, उसमें धारा 17[बी] को हटा दिया गया था और 17 [ए] तथा 17 [सी] को रखा गया था।

सूत्रों के मुताबिक, मंगलवार को हुई बैठक में समिति को यह सूचना दी गई कि सरकार उस नोट को वापस ले रही है और धारा 17[बी] को विधेयक में रखा जा रहा है।

धारा 17 [ए] में प्रावधान है कि यदि अनुबंध में लिखित में साफ-साफ इसका उल्लेख किया गया हो तो आपरेटर कानूनी कार्रवाई कर सकता है जबकि 17 [सी] में प्रावधान है कि यदि क्षति की मंशा से किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य या चूक से कोई हादसा होता है तो आपरेटर कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

पूरे दिन चली बैठक में समिति के सदस्यों ने बनर्जी और अन्य अधिकारियों से इस बात को लेकर सवाल किए कि इस संशोधन के पीछे क्या मंशा थी और क्या इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी ली गई थी?

ऐसा माना जा रहा है कि अधिकारियों ने समिति को यह बताया है कि संशोधन का सिर्फ सुझाव दिया गया था।

सरकार के इस प्रस्ताव का भाजपा व वाम दलों ने कड़ा विरोध किया था और सवाल उठाया था कि क्या ऐसा अमेरिकी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। विवाद का दूसरा मुद्दा था किसी परमाणु संयंत्र में हादसे की सूरत में क्षतिपूर्ति की 500 करोड़ की सीमा तय करना। ऐसी मांग की जा रही थी कि इस सीमा को और बढ़ाया जाए। बैठक में समिति के सदस्यों ने परमाणु दुर्घटना की स्थिति में आपूर्तिकर्ता से सिर्फ 500 करोड़ रुपये ही मुआवजा के तौर पर लेने के प्रस्ताव को संशोधित करने को कहा। मांग की गई कि मुआवजा राशि की सीमा को बढ़ाया जाए।

समिति की बैठक के दौरान विदेश सचिव निरुपमा राव, गृह सचिव जी के पिल्लै, वित्ता सचिव अशोक चावला, व्यय सचिव सुषमा नाथ, पर्यावरण सचिव विजय शर्मा और विधाई सचिव वी के भसीन ने सदस्यों के सवालों का जवाब दिया।

स्थाई समिति के सदस्यों की विधेयक की धारा 35 पर भी चिंता थी, जिसमें कहा गया था कि किसी भी दीवानी अदालत को ऐसे किसी भी मामले पर सुनवाई करने का अधिकार नहीं होगा बल्कि सुनवाई करने का अधिकार दावा आयुक्त को होगा।

सदस्य चाहते थे कि मुआवजे के लिए दावा करने के अधिकार की 10 साल की निर्धारित समय सीमा को बढ़ा दिया जाए क्योंकि उनकी राय में परमाणु हादसे के लंबे समय तक रहने वाले प्रभाव के मद्देनजर यह अवधि काफी छोटी है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/politics/5_2_6493369.html


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