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न्यूज क्लिपिंग्स् | पानी का संकट पहल का इंतजार

पानी का संकट पहल का इंतजार

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published Published on Jul 12, 2015   modified Modified on Jul 12, 2015
उत्तर भारत, खासकर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली की धरती के नीचे का जल-स्तर गिरता जा रहा है। नासा की हालिया रिपोर्ट में इस बात की तस्दीक की गई है कि बढ़ते शहरीकरण और सिंचाई पर ज्यादा निर्भरता के कारण भारत गंभीर जल संकट की तरफ बढ़ चला है। जिंदगी के लिए जरूरी जल-संसाधन के गहराते संकट पर संजय शर्मा की प्रस्तुति

कुएं भले ही अतीत की चीज हो गए हैं, लेकिन फिलहाल वे हमारे भविष्य के अंदेशे को बता रहे हैं। देश में चार हजार कुओं पर किए गए अध्ययन से यह साबित हुआ कि सात साल में देश के भूजल में 54 फीसदी की कमी हो गई है और 22 शहर गंभीर जल आपूर्ति संकट से गुजर रहे हैं। नासा के 2003 से 2013 तक के अध्ययन पर आधारित हाल के आंकड़ों के अनुसार सिंधु बेसिन जल-स्तर -4.263 मिलीमीटर प्रतिवर्ष और गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन में जल-स्तर -19.564 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से कम हो रहा है।

 

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान में संकट गहरा
नासा के उपग्रहों की हाल में जारी तस्वीरों ने भारत की चिंता बढ़ा दी है। इनके मुताबिक भारत-पाकिस्तान में सिंधु नदी के बेसिन क्षेत्र यानी उत्तर-पश्चिम भारत में भूजल तेजी से कम हो रहा है। उसने अपने उपग्रहों की तस्वीरों के आधार पर एक अध्ययन 2009 में भी जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि सिंचाई के कारण उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली में 108 क्यूबिक किलोमीटर भूजल खत्म हो गया है। ये आंकड़े 2002 से 2008 के बीच थे। तब से निश्चित रूप से यह संकट अब और गंभीर हुआ है।

 

 

सिंचाई सबसे बड़ी जिम्मेदार
नासा के जुड़वां उपग्रहों ग्रेविटी रिकवरी और क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (ग्रेस) ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में कुछ परिवर्तन महसूस किए। इनकी वजह जल वितरण के तरीके में छिपी मिली। इसमें भूजल भी शामिल है। नासा ने पाया कि उत्तर भारत में भूजल तेजी से खत्म हो रहा है। मैट रोडेल की अगुवाई में हुए अध्ययन के मुताबिक उत्तरी भारत कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए सिंचाई पर निर्भर हो गया है। यदि भूजल के संतुलित उपयोग के कदम नहीं उठाए गए तो क्षेत्र के 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कृषि पैदावार में कमी आएगी और पीने योग्य पानी की किल्लत बढ़ेगी।

 

 

भूजल उपयोग का तरीका
संकट उतना जल का नहीं है, जितना जल नीतियों का खड़ा किया हुआ है। भूजल स्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। देश के राजनीतिज्ञ बड़े वोट बैंक को खुश रखने के लिए ट्यूबवैल जैसे उपकरणों और बिजली जरूरतों पर बड़े पैमाने पर सब्सिडी दे रहे हैं। हरित क्रांति की शुरुआत से ही मिली इस छूट के कारण भारत में भूजल सिंचाई बहुत तेजी के साथ बढ़ी है। जब बरसात पर्याप्त नहीं होती तो यह निर्भरता और बढ़ जाती है।

 

जुलाई 2012 में भारत की कुल जनसंख्या का आधा यानी 67 करोड़ लोगों (दुनिया की आबादी का 10 प्रतिशत) को ग्रिड फेल होने की वजह से बिजली संकट से जूझना पड़ा था। विशेषज्ञों ने इसकी वजह उत्तरी भारत में सूखे को ठहराया था। दरअसल कम वर्षा के कारण जल की कमी थी। किसानों ने फसल सींचने के लिए जरूरत से ज्यादा बिजली का उपयोग किया और ग्रिड फेल हो गई।

 

भयावह भविष्य
कुछ क्षेत्रों में पानी की मांग-आपूर्ति की स्थिति में असुंतलन है। शहरी क्षेत्रों में मांग 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (एलपीसीडी) है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह मांग इसकी एक तिहाई यानी 40 एलपीसीडी है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2050 तक शहरी भारत की आबादी कुल जनसंख्या का 50 प्रतिशत बढ़ जाएगी। यानी जल की कमी वाले क्षेत्रों में 84 करोड़ लोग निवास कर रहे होंगे। अभी यह संख्या 32 करोड़ है। जल के कारण कई राज्यों में आपसी विवाद देखने को मिल चुके हैं। इनके और बढ़ने की संभावना है।

 

 

भूजल का बेहिसाब इस्तेमाल
नासा ने इस बात के लिए चेताया है कि भूजल का दोहन नियंत्रित नहीं किया गया तो संकट और गंभीर हो जाएगा। आज देश में 55 प्रतिशत भूजल स्रोतों का उपयोग हो रहा है। सतह का जल हमें नदियों से मिलता है। बांधों के जरिये इसका अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है। इन बांधों के कारण कुछ नदियों का जल प्रवाह प्रभावित हुआ है। देश की खेती में 60 प्रतिशत भूजल लग रहा है। कुल मिलाकर 80 फीसदी पानी खेती में जा रहा है। इसके अलावा शहरों में 30 फीसदी और गांवों में 70 फीसदी आपूर्ति भूजल से ही होती है।

 

 

नदियों के समुचित पानी का उपयोग नहीं
भारत में कुछ विशाल नदियां हैं। इन नदियों के एक बड़े हिस्से का उपयोग प्राकृतिक कारणों से नहीं हो पाता है। ब्रह्मपुत्र जल उपयोग के हिसाब से सबसे ज्यादा संभावना वाली नदी है, लेकिन इसका हम महज चार प्रतिशत ही उपयोग कर सकते हैं। वास्तव में यह नदी दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों से बहती है, जिससे इसके पानी का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। भारत में नदियों के 1900 अरब क्यूबिक मीटर जल उपयोग की संभावना है, लेकिन उपयोग 700 अरब क्यूबिक मीटर ही हो पाता है। बांधों के कारण सतह के जल पर भी असर पड़ा है।

 

 

देश में जल की किल्लत 
भारत में जनसंख्या वृद्धि और अनियंत्रित शहरीकरण से जल संकट गहरा गया है। आइए जानें कुछ तथ्य-

 

 

देश की जनसंख्या : एक अरब 20 करोड़
- 54% जल संकट है भारत में, कहीं स्थिति गंभीर तो कहीं बहुत ज्यादा गंभीर है।
- 2030 में पानी की मांग के कारण राष्ट्रीय आपूर्ति में गिरावट 50% नीचे जाने की आशंका जताई विशेषज्ञों ने।
- एक अरब लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है।
- 4,000 से ज्यादा भूमिगत जल स्रोतों में जल का स्तर लगातार कम होता जा रहा है।

 

 

पानी की किल्लत से जूझते देश के प्रमुख शहर 
- 32 प्रमुख भारतीय शहरों में से 22 पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। 
- जमशेदपुर में सबसे ज्यादा संकट मांग और आपूर्ति में है। मांग-आपूर्ति में 70 फीसदी के करीब अंतर है।
- 30 फीसदी कम पानी की आपूर्ति होती है फरीदाबाद, मेरठ, कानपुर, आसनसोल, धनबाद, विशाखापत्तनम, मदुरै और हैदराबाद जैसे शहरों में। 
- 415.8 करोड़ लीटर रोजाना है दिल्ली में पानी की जरूरत, लेकिन 315.6 करोड़ लीटर की ही हो पाती है आपूर्ति।
- 52 फीसदी अधिक पानी की आपूर्ति होती है नागपुर में। 
- लुधियाना, राजकोट, कोलकाता, इलाहाबाद और नासिक जैसे शहर भी पानी की जरूरत पूरी करने में सक्षम हैं।

 


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