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न्यूज क्लिपिंग्स् | प्रदूषण से मुक्ति की खातिर--- विवेक कुमार बडोला

प्रदूषण से मुक्ति की खातिर--- विवेक कुमार बडोला

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published Published on Nov 27, 2017   modified Modified on Nov 27, 2017
कुछ दिन पहले पूर्वोत्तर भारत तथा दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश विषैली धुंध की घनी परत से ढंके हुए थे। दस-पंद्रह दिनों तक काले वायुमंडल ने लोगों के भीतर विचित्र भय पैदा कर दिया था। लेकिन अब दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित धुंध से सने क्षेत्र कुछ-कुछ साफ क्या हुए कि प्रदूषण से ध्यान हट गया है। ऐसी आपात स्थिति से अल्पकालिक छुटकारा मिलने के बाद सरकार व लोगों को यह सोच कर प्रदूषण की विकराल समस्या को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि अब वे सुरक्षित हैं, बल्कि उन्हें भविष्य में प्रदूषण की ऐसी विकट स्थिति से निपटने के स्थायी प्रबंध करने की दिशा में बड़े काम करने चाहिए, उपयोगी योजनाएं बनानी चाहिए, स्थायी समाधान निकालने चाहिए।


प्राय: मार्गशीर्ष प्रारंभ होने से पूर्व दिल्ली-एनसीआर और पूर्वी उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में ऐसा प्रदूषित मौसम पहले कभी नहीं देखा गया। कार्तिक अमावस्या के दिन पड़ने वाली दीपावली में पटाखों का धुआं कभी इतना विषैला नहीं होता था कि वातावरण को सांसों के लिए कष्टसाध्य बना दे। इसी दौरान खरीफ की फसल की कटाई-छंटाई के बाद खेतों में जो फसली अवशेष या पराली फैली रहती है, कृषक उसका निपटान हमेशा जला कर ही करते रहे हैं। रबी की फसल के लिए खेत तैयार करने को उनके पास अधिकतम पंद्रह-बीस दिनों का ही समय शेष रहता है। पुरानी फसल की पराली या अपशिष्ट को ठिकाने लगाने के बाद ही वे नई फसल बोने को खेत तैयार कर सकते हैं। ऐसे में उनके पास फसल अवशेषों को जलाने के अतिरिक्त क्या आसान उपाय है? नई फसल के लिए खेत खाली करने का यह तरीका किसानों का अपना पारंपरिक तरीका है। सरकार ने तो दशकों से इस दिशा में किसान के सहायतार्थ या उसके हित में कोई साधन विकसित नहीं किया।

 

कृषकों के जिम्मे पहले ही देश की आबादी का पेट पालने के लिए खाद्यान्न उपजाने का उत्तरदायित्व है, जिसका निर्वहन वे सदियों से कर रहे हैं। जीवन की इस सबसे बड़ी आवश्यकता के उत्पादक के रूप में पहले तो वे सर्वपूजनीय होने चाहिए। ऐसा अभी तक हो नहीं पाया। उन्हें तो उनके उत्पादन का यथोचित मूल्य भी नहीं मिल पा रहा। न ही कठिन स्थितियों में विभिन्न मौसमीय खाद्यान्न उगाने के लिए उन्हें सरकार की ओर से कृषि संबंधी संसाधन और सुविधाएं ही उपलब्ध कराई गर्इं। जो कुछ भी उन्हें सरकारी स्तर पर मिलता रहा है, वह भी एहसान के भाव के साथ। कृषि कर्म की परेशानियों से जूझते तथा सरकारी व सामाजिक उपेक्षा झेलते हुए भी वे कभी भी अपने दायित्वों से विमुख नहीं हुए। देश में पिछले ढाई दशक में तीन लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं।


बहरहाल, यदि सरकारें रुचि लेकर सक्रिय होतीं तो संभवत: अब तक पुरानी फसल की पराली के प्रसंस्करण और उपयोग की विधियां खोज ली गई होतींं। जब बात पूर्व में अनुभव नहीं किए गए विषैले प्रदूषण से निपटने की होती है तो हमें विचार करना चाहिए कि ऋतु परिवर्तन अवधि के दौरान सामान्य व असामान्य या अत्यधिक प्रदूषण के लिए फसल अपशिष्ट सबसे छोटा कारक है। इस समयावधि में वैश्विक स्तर पर घटने वाली प्राकृतिक हलचलों के कारण किसी भी देश या भूभाग पर मौसम का एक निश्चित कालखंड का स्वरूप कभी भी स्थायी प्रवृत्ति का नहीं रहता।


आठ नवंबर को अचानक दिल्ली-एनसीआर और पूर्वी उत्तर भारत में धुएं की जो काली परत फैली थी, उसके मूल कारण पर बहुत कम लोगों का ध्यान गया है। प्रकृति के अत्यधिक दोहन के कारण दुनिया में जो भी आपात मौसमीय घटनाएं होती हैं, चीन भी जब-तब उनकी चपेट में आता रहता है। अक्टूबर के अंतिम मंगलवार तक चीन की राजधानी बेजिंग दिल्ली-एनसीआर की तरह काली-विषैली धुंध से पटी पड़ी थी। दो दिन बाद वहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का आगमन था। ट्रंप के स्वागत में बेजिंग के वायुमंडल को विशिष्ट वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी के सहारे उजला तथा साफ-सुथरा कर दिया गया। आधिकारिक समाचारों के अनुसार, बेजिंग की काली-विषैली धुंध को स्थानांतरित कर दिया गया था।


चीन के संदर्भ में आपात मौसमीय कारकों को स्थानांतरित करने की यह प्रथम घटना नहीं है। ओलंपिक खेलों के दौरान नौकायन प्रतियोगिता स्थल के ऊपर मंडराते बरसाती बादलों को भी चीन ने कहीं और स्थानांतरित कर दिया था। प्रतिवर्ष वर्षाऋतु में उत्तराखंड के चीन से लगते सीमाक्षेत्रों पर अतिवृष्टिकारक प्रवृत्ति की वर्षा होने लगी है। उससे पहले ऐसा यदा-कदा ही होता था। इस वर्ष की बरसात में उत्तराखंड के कोटद्वार सहित अनेक पहाड़ी क्षेत्रों के एक निश्चित भूभाग पर अतिवृष्टिजनक बादलों का बरसना इस संदेह की गुंजाइश पैदा करता है कि हो न हो ये वे अतिवृष्टि संभावित बादल ही हैं, जिन्हें स्थानांतरित कर सकने की प्रौद्योगिकी से किसी अन्य देश ने स्थानांतरित किया हो। चूंकि भू की तरह वायुमंडल पर किसी देश का कोई आधिकारिक हक नहीं बनता, इसलिए चीन का मौसम विभाग अपने देश पर पड़ने वाली किसी भी प्राकृतिक बला को कहीं भी स्थानांतरित कर देता है।


स्थानांतरित की गई प्राकृतिक आपदाएं, चाहे वे अतिवृष्टि के रूप में हों या धुंध की अपूर्व काली परत के रूप में, स्थानांतरित होने के बाद नष्ट तो होती नहीं। कहीं न कहीं जाकर उन्हें घटना ही होता है। चीन की सीमा से लगे पूर्वोत्तर भारत सहित दिल्ली में जो भी विषैले मौसमीय परिवर्तन हो रहे हैं, वे सभी संभवत: चीन द्वारा प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर अपने देश से स्थानांतरित विभिन्न मौसमीय आपदाएं हैं। यदि कोई देश अपने दुश्मन देश के साथ ऐसे निपटे तो, इसमें उसका चहुंमुखी फायदा ही है।
हालांकि इसमें संदेह नहीं कि प्रदूषण आधुनिक जीवन के कई उपक्रमों के कारण भी फैल रहा है। इसमें वाहनों में प्रयोग होने वाले डीजल-पेट्रोल से लेकर सीमेंट, लौह अयस्क, एल्युमीनियम व अन्य खनिजों के उत्खनन तथा उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले खनिज कणों से निर्मित प्रदूषित आवरण शामिल हैं। प्लास्टिक वस्तुओं के उत्पादन के दौरान विघटित तत्त्वों का वातावरण में मिलना स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। उपग्रह आधारित प्रसारण माध्यम जैसे टेलीविजन चैनलों, मोबाइल फोन, कंप्यूटर पर इंटरनेट प्रसारण से पैदा विकिरणों के बढ़ते दबाव से प्राकृतिक जलवायु अत्यंत अस्थिर हुई है।


उपग्रह चालित प्रसारण माध्यमों का वाइब्रेशन दबाव इतना खतरनाक होता है कि इससे जनजीवन बुरी तरह असंतुलित हो रहा है। सहज ही आकलन किया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर अरबों मोबाइल फोन या इंटरनेट प्रसारण उपकरणों से कितना वाइब्रेशन पैदा होता होगा और इससे मनुष्यों, जीव-जंतुओं व प्रकृति पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता होगा। घरों में रोजमर्रा की आवश्यकता बन गए फ्रिज, वातानुकूलित उपकरणों तथा अन्य विद्युत-चालित उपकरणों से जो विद्युतीय ताप उत्सर्जित होता है, वह भी वातावरण को किसी न किसी रूप में अवश्य दुष्प्रभावित करता है।


वस्तुओं के प्लास्टिक पैकेजिंग के बढ़ते चलन व प्रयोग को देखते हुए सीधा अनुमान लगाया जा सकता है कि दुनिया में मानव बस्ती के बड़े भूभागों पर प्लास्टिक अपशिष्ट के ढेर बढ़ रहे हैं। पतला, मोटा या ठोस जितना भी प्लास्टिक दैनिक उपभोग की वस्तुओं को बनाने या पैक करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, इस्तेमाल के बाद उसके वैज्ञानिक व संतुलित निपटान की कोई कारगर व्यवस्था विश्व-स्तर पर अभी तक नहीं बन सकी है। प्रदूषण से मुक्तिके लिए हमें अपनी आधुनिक व विलासी आदतों को अतिशीघ्र नियंत्रित करना सीखना होगा। नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।


http://www.jansatta.com/politics/opinion-about-pollution-and-plastic-waste-warn-environmentalists/496669/


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