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न्यूज क्लिपिंग्स् | पड़ सकते हैं रोटी के लाले

पड़ सकते हैं रोटी के लाले

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published Published on Apr 26, 2010   modified Modified on Apr 26, 2010

इलाहाबाद : इस बार अन्नदाताओं पर दोहरी मार पड़ रही है। गर्मी के चलते गेहूं की पैदावार मनमाफिक नहीं हुई, उस पर दाने भी पतले हैं। जिन्हें खरीदने के लिये सरकार तैयार नहीं। कृषि विभाग के अफसर भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जनपद में खोले गए 54 गेहूं क्रय केन्द्रों पर सन्नाटा क्यों पसरा है। अगर यही हाल रहा तो आम लोगों को आने वाले दिनों में रोटी के लाले पड़े सकते हैं।

गेहूं की फसल पर अबकी मार्च महीने से अचानक बढ़ी गरमी का प्रभाव इतना पड़ा कि उत्पादन 20 फीसदी से भी ज्यादा कम हो गया। कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस बार अनुमान लगाया था कि 300 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन होगा जिसकी खरीद के लिए जनपद में 54 क्रय केन्द्र खोले गए। इसमें 20 मार्केटिंग विभाग, 19 पीसीएफ, छह एग्रो, छह नेफेड, एक यूपीएसएस, एक कर्मचारी कल्याण निगम, एक एफसीआई का गेहूं क्रय केन्द्र शामिल है। क्रय केंद्र खुले जरूर लेकिन यहां किसानों की भीड़ ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है। वजह साफ है, मौसम की मार ने किसानों की कमर ही तोड़ दी है। उनके सामने खुद रोटी के लाले पड़ गए हैं, ऐसे में वे गेहूं कैसे बेंचे।

लक्ष्य पूरा करना भी मुश्किल

जनपद में गेहूं खरीद का लक्ष्य इस बार 45 हजार मीट्रिक टन का है, किंतु क्रय के ट्रेंड को देखते हुए पूरा होता नहीं दिख रहा है। क्रय लक्ष्य के सापेक्ष जनपद के सभी 54 क्रय केन्द्रों अभी तक लगभग पांच सौ मीट्रिक टन गेहूं की ही खरीद हो पायी है। जिला खाद्य विपणन अधिकारी डीसी मिश्र ने बताया कि गेहूं के पतले होने के चलते यह परेशानी हो रही है। 11 सौ रुपये प्रति क्विंटल में फेयर एवरेज क्वालिटी वाले गेहूं की खरीद की जा रही है। सात फीसदी तक सिकुडे़ गेहूं को भी खरीद लिया जा रहा है लेकिन गेहूं के दाने 50 से 60 प्रतिशत तक सूखे आ रहे हैं, जिनकी खरीद संभव नहीं है। बताया कि क्रय केन्द्रों पर आने वाले किसानों का गेहूं छानकर लेने की व्यवस्था भी की गयी है इसके लिए पुराने चलने के साथ ही 'एफसीआई' की सलाह पर चार एमएम के झन्ने भी इस्तेमाल किये जा रहे हैं लेकिन बात बन नहीं रही है। किसान पूरे गेहूं को लिये जाने की बात करते हैं जो मानक के अनुसार संभव नहीं है।

खेत में ही जल गया गेहूं

नवाबगंज के कौड़िहार के रहने वाले किसान सुरेश यादव, राजकिशोर का कहना है कि हर बार एक बीघा खेत में लगभग छह-सात क्विंटल गेहूं निकलता था लेकिन इस बार महज तीन बोरा गेहूं निकलना ही मुश्किल हो गया। कोड़सर के रामदुलार ने बताया कि तेज धूप के चलते गेहूं की फसल खेत में ही जल गयी। इसी प्रकार अन्य किसानों का भी कहना है कि जिनके सामने इस बार गेहूं की रोटी खाने का संकट उत्पन्न हो गया है।

दिसम्बर की फसल पर चोट

दिसम्बर में देरी से बोये गेहूं पर मौसम की मार पड़ी है जबकि नवम्बर में बोयी गयी फसल ठीक थी। इसे समय रहते काट लिया गया था। दिसम्बर में बोयी फसल को किसान अप्रैल के प्रथम सप्ताह में काटना चाहते थे लेकिन मार्च में ही मौसम ने ऐसे तेवर बदले कि फसल पूरी तरह पनपने से पहले ही मुरझा गयी।

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''गेहूं का उत्पादन इस बार लक्ष्य से बीस फीसदी से अधिक कम हुआ है। गरमी की वजह से गेहूं के दाने भी काफी पतले हुए हैं। जिस कारण क्रय केंद्रों पर खरीद उतनी बेहतर नहीं हो पा रही है। इससे आने वाले दिनों में लोगों के सामने का संकट उत्पन्न हो सकता है। हालांकि कृषि विभाग अधिक से अधिक गेहूं क्रय करने की कोशिश कर रहा है।''

एसपी सिंह, उप निदेशक कृषि


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6369304_1.html


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