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न्यूज क्लिपिंग्स् | बफर जोन बनाएं, कॉरिडोर बचाएं

बफर जोन बनाएं, कॉरिडोर बचाएं

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published Published on Oct 27, 2010   modified Modified on Oct 27, 2010

बाघ बचाने के तमाम उपायों और कार्ययोजनाओं में से एक महत्वपूर्ण उपाय है राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों एवं संरक्षित वनों के बाहर के क्षेत्र का संरक्षण। दुर्भाग्य से देश भर में यह नहीं हो रहा है। यहां सीधे-सीधे बाघ के वजूद और आदमी के स्वार्थों का टकराव है।


राजनेता, खनन माफिया और अन्य स्वार्थी-लोभी तत्व ऐसे उपायों का विरोध करते हैं। बाघ की सुरक्षा के लिए बफर क्षेत्र उपयोगी है इसलिए टाइगर रिजर्व के आसपास के क्षेत्र को बचाए रखना अब बेहद जरूरी हो गया है। वन क्षेत्र तेजी से घट रहे हैं और बाघ संक्रमण के दौर से गुजर रहा है इसलिए केंद्र सरकार ने 2006 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) में संशोधन कर पार्क के बाहर बफर जोन बनाने को कानूनी रूप दिया।


परंतु राजनेताओं को बाघ बचाने से अधिक रुचि (स्वाभाविक रूप से) जनता के मतों (वोट बैंक) में दिखती है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (जो वन्यप्राणी बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं) ने 21 अक्टूबर को पन्ना जाकर वहां के राष्ट्रीय उद्यान के बाहर बनाए जा रहे बफर जोन का खुलेआम विरोध कर दिया। इससे देश भर में यह संदेश गया कि श्री चौहान को बाघ बचाने में कम दिलचस्पी है।


बफर जोन के बारे में जनमानस में कई भ्रांतियां हैं। जैसे बफर जोन के बनने के बाद स्थानीय आबादी का विस्थापन होगा, वह इलाका राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य में परिवर्तित हो जाएगा, वहां कोई भी विकास कार्य संभव नहीं होगा तथा पशु चराई, वनोपज संग्रहण जैसे परंपरागत अधिकारों से वनवासी वंचित हो जाएंगे। परंतु यह हकीकत नहीं है। पन्ना या अन्य स्थानों पर बफर जोन का मुख्य उद्देश्य ही है कि उस क्षेत्र के ग्रामीणों और वनवासियों की जरूरतें स्थानीय वनों से पूरी हों।


साथ ही कोर क्षेत्र के बाहर बाघों को उपयुक्त और सुरक्षित वन क्षेत्र मिल सके। अज्ञानतावश स्थानीय नागरिक और वोट-बटोरू नेता इसका विरोध करते हैं। पन्ना में भी यही हो रहा है। यह मुद्दा इतना गंभीर है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जो स्वयं बाघ-प्रेमी माने जाते हैं, ने कई मुख्यमंत्रियों को सिर्फ बफर जोन के बारे में अप्रैल 2010 में पत्र लिखा है। बफर जोन बनाना कानूनी प्रावधान होने पर भी कई राज्य इसका उल्लंघन कर रहे हैं। मध्यप्रदेश भी उनमें से एक है। यह स्थिति दु:खद है।


मध्यप्रदेश में कान्हा (1134 वर्ग कि.मी.) और पेंच (768 वर्ग कि.मी.) के बफर जोन नए कानून के आधार पर शासन ने अक्टूबर 2010 में अधिसूचित किए हैं। पन्ना में 776.18 वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र (39 पंचायतें एवं 68 ग्राम) बफर क्षेत्र में आना प्रस्तावित है। स्थानीय पंचायतों की मंजूरी के बाद इसे किया जाना है। लेकिन ‘‘बाघ प्रदेश’’ के मुख्यमंत्री का ऐसा विरोध दुखदायी है। पन्ना बाघ त्रासदी पर गठित राज्य शासन की विशेषज्ञ समिति ने भी बफर जोन बनाने पर विशेष जोर दिया था। समिति के सदस्य और देश के प्रख्यात बाघ विशेषज्ञ एचएस पंवार और कई अन्य संरक्षणविद चौहान के रवैये से बेहद खफा हैं।


बफर जैसी ही बात कॉरिडोर की है। जिस तरह संरक्षित क्षेत्र के बाहर बफर चाहिए वैसे ही एक संरक्षित क्षेत्र से दूसरे संरक्षित क्षेत्र तक के वन्यप्राणियों के सुरक्षित-सुगम आवागमन हेतु कॉरिडोर आवश्यक है। जिससे जीन पुल सुरक्षित रहेगा तथा जीन खराब होने/कमजोर होने से बीमारियों की चपेट में बाघ कम आएंगे और स्वस्थ बाघ लंबे समय तक सुरक्षित रह सकेंगे।


अचानकमार-कान्हा-पेंच-सतपुड़ा-मेलघाट (बिलासपुर, बालाघाट, डिंडोरी, मंडला, जबलपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, बैतूल और अमरावती तक का यह फैला हुआ क्षेत्र है)। इस कॉरिडोर की हालत खराब है। आसपास कई होटल्स/मोटल्स खड़े हो गए हैं। बाघ के सदियों पुराने आवासीय क्षेत्रों में मानवीय हलचल लगातार बढ़ रही है। इसके चलते बाघ मारे जा रहे हैं। यहां राष्ट्रीय राजमार्ग 12-ए बन रहा है और राष्ट्रीय राजमार्ग-7 जो पेंच से होकर गुजर रहा है, बाघों के लिए काफी हानिकारक है। बाघ को विचरने के लिए झाड़ी-झुरमुटों वाले शांत वन चाहिए।


वह काफी दूर-दूर तक विचरण करता है। पन्ना का जो नर बाघ पेंच से वहां लाया गया था, वह भागकर पुन: पेंच पार्क जाने की कोशिश में था। पन्ना से सैकड़ों कि.मी. दूर वह पाया गया। इससे पता चला कि जिन मार्गो से वह बेचारा शिकारियों से छिपता-छिपता पुन: अपने पेंच वापस जाना चाह रहा था, उन स्थानों पर कभी न कभी बाघ रहते थे। आशय यह है कि इस खूबसूरत वन्यजीव की आवश्यकताओं को समझकर भी मनुष्य नासमझी से पेश आ रहा है। इंसान की नासमझी का खामियाजा जंगल के राजा को अपनी जान देकर भुगतना पड़ रहा है। बफर और कॉरिडोर जैसे मुद्दों पर राजनेताओं-अधिकारियों को समग्र रूप से पुन: विचार और ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है।

http://www.bhaskar.com/article/save-tiger-1495920.html


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