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न्यूज क्लिपिंग्स् | बिना उजाड़े भी विकास संभव सिक्किम दिखा रहा है राह

बिना उजाड़े भी विकास संभव सिक्किम दिखा रहा है राह

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published Published on Feb 15, 2016   modified Modified on Feb 15, 2016
कहते हैं कि तरक्की के लिए कुछ समझौते करने पड़ते हैं. बात करें किसी राज्य की तरक्की की, तो सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ता है उसके वनों और खेतों को़ चूंकि उन्हें उजाड़कर कल-कारखाने और कॉलोनियां बसायी जाती हैं. लेकिन देश के छोटे राज्यों में शुमार, सिक्किम ने अपनी नीतियों की बदौलत वनों को बचा-बढ़ाकर और जैविक कृषि को अपनाकर और यह धारणा तोड़ी है़

सेंट्रल डेस्क

आज भौतिक तरक्की की दौड़ में पर्यावरण का मुद्दा पीछे छूट चुका है़ खेती के लिए जंगल काटना तो कुछ हद तक ठीक भी था, लेकिन बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करने के लिए उन खेतों पर कंक्रीट के जंगल खड़े किये जा रहे हैं. ऐसे में प्रकृति का रूठना लाजिमी है़ कहीं अतिवृष्टि, कहीं अनावृष्टि तो कहीं भू-स्खलन, पर्यावरण की दृष्टि से की गयी हमारी लापरवाहियों का ही नतीजा है़ बहरहाल, स्थिति अब भी ज्यादा नहीं बिगड़ी है़ देश के उत्तर-पूर्व में हिमालय की गोद में बसे सिक्किम जैसे राज्य हमें प्रेरित करते हैं कि पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाकर भी हम विकास की राह पर चल सकते हैं. यहां यह जानना जरूरी है कि उपग्रह डेटा के आधार पर 21 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 47.3 प्रतिशत वन क्षेत्र के साथ सिक्किम को देश का सबसे हरा-भरा राज्य माना जाता है़

सिक्किम, गोवा के बाद देश का सबसे छोटा राज्य है़ पूर्व से पश्चिम 64 किमी और उत्तर से दक्षिण 112 किमी में फैला यह छोटा-सा राज्य अपने 7,168 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में अब तक 3,390 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को वनों के अधीन लाया जा चुका है़ इस राज्य में 500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में अत्यंत घने, 2,161 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सामान्य घने और 698 वर्ग किलोमीटर में खुले वन हैं.

इन वनों के अलावा, राज्य का 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पेड़-पौधों से ढका है. इसके अलावा, राज्य का 38 प्रतिशत क्षेत्रफल पार्कों, जीव अभयारण्यों, जीव मंडलों और संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत लाया गया है, जो देश के सभी राज्यों में सबसे ज्यादा है. राज्य में वनों के बढ़ने से जंगली जानवरों, विलुप्त प्रजातियों, वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गयी है़

बहरहाल, बात करें सिक्किम की जैव विविधता की, तो इस राज्य में फूलों की कुल 4500 प्रजातियां पायी जाती हैं, जिनमें आॅर्किड की 550 और रोडोडेंड्रम व कॉनिफर्स की बीसियों प्रजातियां शामिल हैं. इसके अलावा, 600 प्रजातियों की तितलियां तथा 520 प्रजातियों के पक्षी पाये जाते हैं. इसके अतिरिक्त राज्य के जंगलों में बर्फीले तेंदुए, रेड पांडा, हिमालयी भालू, कस्तूरी मृग एवं गिलहरियों की कई प्रजातियां भी पायी जाती हैं. यही नहीं, राज्य का 1,181 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बांस की पैदावार के अंतर्गत आता है. खेती की बात करें तो यहां चावल, गेहूं, मक्कई, ज्वार, बाजरा, आलू के साथ-साथ अदरक, हल्दी और इलायची की भी अच्छी पैदावार होती है़ हिमालय की तलहटी में बहनेवाली तीस्ता, यहां की प्रमुख नदी है, जिससे पीने के पानी सहित सिंचाई की भी जरूरतें पूरी होती हैं.

यहां यह जानना जरूरी है कि सिक्किम को देश का सबसे हरा-भरा राज्य बनाने का श्रेय इसके मुख्यमंत्री पवन चामलिंग के प्रयासों को जाता है, जिन्होंने राज्य में हरित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए सिक्किम ग्रीन मिशन, स्मृति वन, टेन मिनट्स टू अर्थ जैसी अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं, जिनके काफी अच्छे परिणाम भी सामने आये हैं. राज्य का 82.31 प्रतिशत क्षेत्रफल वनों के अधीन दर्ज किया गया है, जबकि राष्ट्रीय औसत मात्र 23.41 प्रतिशत है. राज्य में पौधरोपण को जन-आंदोलन बनाने के लिए राज्य में मुख्यमंत्री ने वर्ष 2006 में शुरू किये गये 'स्टेट ग्रीन मिशन' के अंतर्गत सभी बंजर और खाली जमीनों को समाज की सक्रिय भागीदारी की मदद से हरा-भरा करके 'ग्रीन सिक्किम' के लक्ष्य को पूरा करना था. इस कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य के विभिन्न हिस्सों में अब तक 50 लाख पौधे लगाये जा चुके हैं. इसके अलावा,

'टेन मिनट टू अर्थ' कार्यक्रम के अंतर्गत 10 मिनट के अंतराल में राज्य की पूरी आबादी ने अपने घरों से निकलकर 6,10,694 पौधे लगाये. यह एक नया विश्व कीर्तिमान था. इस पौधरोपण कार्यक्रम से प्रतिवर्ष 1,400 टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस को पर्यावरण से कम करने में मदद मिल रही है.

यही नहीं, वर्ष 2003 में राज्य की विधानसभा ने जैविक कृषि से जुड़ा एक प्रस्ताव पारित किया़ इसके तहत अब तक राज्य की 75 हजार हेक्टेयर खेती योग्य जमीन को जैविक कृषि के दायरे में लाया जा चुका है़ इस प्रयोग के तहत खेती के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशक को इस्तेमाल में नहीं लाया जाता़ इससे फायदा यह होता है कि राज्य की प्राकृतिक संपदा को कोई नुकसान नहीं होता और न ही कोई प्रदूषण होता है़ इस कोशिश में सरकार ने अपने किसानों को जैविक खाद और कीटनाशक बनाने का न सिर्फ प्रशिक्षण दिया, बल्कि इन्हें उचित दर पर उपलब्ध भी कराया़ जैविक कृषि का फायदा यह हुआ कि राज्य में खेतों की मिट्टी और पैदावार की गुणवत्ता दिन पर दिन सुधरने लगी़ बताते चलें कि आजकल जैविक तरीकों से उपजायी गयी फसलों की मांग बढ़ रही है और किसानों को कीमत भी अच्छी मिल रही है़ बताते चलें कि देश भर में तैयार होनेवाले कुल 12,400 करोड़ टन जैविक कृषि उत्पाद में अकेले सिक्किम का योगदान 8, 000 करोड़ टन होता है़ इस तरह हम कह सकते हैं कि सिक्किम ने बीते एक-डेढ़ दशक में पर्यावरण से तालमेल बिठाते हुए अपनी वन संपदा और कृषि भूमि का न्यायोचित इस्तेमाल करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत कर सबके सामने एक मिसाल पेश की है़


http://www.prabhatkhabar.com/news/special-news/story/725568.html


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