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न्यूज क्लिपिंग्स् | बिना खाद वाली फसलें तैयार करने की कोशिश

बिना खाद वाली फसलें तैयार करने की कोशिश

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published Published on Jul 16, 2012   modified Modified on Jul 16, 2012
गेट्स फाउंडेशन अनुवांशिक रूप से संवर्धित यानी जेनेटिकली मॉडिफाइड अनाज की फसलों का विकास करने के लिए ब्रितानी शोधकर्ताओं की एक टीम को एक करोड़ डॉलर की सहायता देगा.

अनुवांशिक संवर्धन के क्षेत्र में ये ब्रिटेन में सबसे बड़े एकमुश्त निवेशों में से एक है. इस राशि से होने वाले शोध में मक्का, गेहूं और चावल की ऐसी फसलें उगाने की कोशिश होगी जिनके लिए बहुत कम खाद की जरूरत होगी या फिर होगी ही नहीं.

इस शोध के लिए ये राशि देने का फैसला ऐसे समय में हुआ है जब जैव तकनीक से जुड़े शोधकर्ता अनुवांशिक संवर्धन को लेकर आम लोगों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.

नॉरविच में जॉन इनेस सेंटर में होने वाले शोध से उन अफ्रीकी किसानों को फायदा हो सकता है जो खाद का खर्च नहीं उठा सकते हैं.

फसलों के उत्पादन के लिए दुनिया भर में कृषि खाद की जरूरत पड़ती है. लेकिन बहुत सारे निर्धनतम किसान खाद नहीं खरीद पाते हैं. साथ ही इस खाद से बड़े पैमाने पर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है.

जॉन इनेस सेंटर ऐसी फसलें विकसित करने में जुटा है जो खेतों में डाली जाने वाली अमोनिया की बजाय हवा से ही नाइट्रोजन ले सकें जैसे मटर और बीन्स लेते हैं.

अगर ये कोशिश कामयाब रही तो इससे खेती करने के तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं और खास कर उप सहारा अफ्रीकी इलाके में मक्का उगाने वाले किसानों की बड़ी मदद हो सकती है.

बिल एंड मेलिंडा फाउंडेशन इस शोध को लेकर बहुत उत्साहित है.
विरोध

जॉन इनेस सेंटर में प्रोफेसर और शोध टीम के प्रमुख गिल्स ओल्ड्रॉयड का मानना है कि ये शोध गरीब किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और दुनिया भर में खेतीबाड़ी पर इसका 'बड़ा असर' पड़ सकता है.

वैसे अनुवांशिक संवर्धित फसलों के आलोचकों का कहना है कि इस शोध के नतीजों को आने में दशकों लगेंगे जबकि इस वक्त वैश्विक स्तर पर खाने की किल्लत से वितरण प्रणाली को बेहतर कर और बर्बाद में कमी लाकर ही निपटा जा सकता है.

इस तकनीक के खिलाफ सरगर्म एक संगठन जीएम फ्रीज के अभियान निदेशक पेटे रिले का कहना है कि दुनिया भर के बहुत से किसान इस बात को मानने लगे हैं कि “अनुवांशिक संवर्धन परिणाम देने में नाकाम रहा है.”

वो कहते हैं कि अगर अमरीका को देखें तो वहां इससे उत्पादन में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है, बल्कि अकसर घट ही जाता है.

http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2012/07/120715_gm_crops_aa.shtml


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