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न्यूज क्लिपिंग्स् | बीज में छिपी है खाद्य संप्रभुता- वंदना शिवा

बीज में छिपी है खाद्य संप्रभुता- वंदना शिवा

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published Published on Mar 16, 2012   modified Modified on Mar 16, 2012
यदि किसानों के पास अपना बीज न हो या मुक्त परागण किस्मों तक उनकी पहुंच न हों, जिसे वे सुरक्षित रख सकें या जिसका वे विनिमय कर सकें, तो उनके पास बीज संप्रभुता नहीं होगी। नतीजतन उनके पास खाद्य संप्रभुता भी नहीं होगी। गहराते कृषि एवं खाद्य संकट की जड़ें बीज आपूर्ति प्रणाली में हो रहे बदलाव और बीज विविधता व बीज संप्रभुता के क्षरण में निहित है। क्योंकि खाद्य शृंखला की पहली कड़ी बीज ही है।


बीज संप्रभुता से आशय किसानों के अधिकारों की सुरक्षा और विभिन्न प्रकार के बीज स्रोतों तक पहुंच बनाने के लिए बीज एवं उसकी प्रजातियों के विनिमय से है, जिन्हें उभरती हुई बड़ी बीज कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने, स्वामित्व हासिल करने, नियंत्रित करने और आनुवांशिक रूप से परिष्कृत किए जाने से बचाया जा सकता है। यह बीज एवं जैव विविधता को सार्वजनिक वस्तु के रूप में उपयोग में लाने पर आधारित है।


पिछले 20 वर्षों में बीज विविधता और बीज संप्रभुता के मामले में बड़ी तेजी से क्षरण देखा गया है। अब बीजों पर कुछ बड़ी कंपनियों का नियंत्रण बढ़ गया है। 1995 में जब संयुक्त राष्ट्र ने लाइपजिंग में प्लांट जेनेटिक रिसोर्स कांफ्रेंस का आयोजन किया था, तो बताया गया था कि कृषि जैव विविधता का 75 प्रतिशत हिस्सा 'आधुनिक' किस्मों के इस्तेमाल के कारण लुप्त हो गया। उसके बाद से यह क्षरण तेजी से बढ़ा है।

विश्व व्यापार संगठन के व्यापार संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकार समझौते ने आनुवांशिक रूप से तैयार बीजों के प्रसार में तेजी लाई है, जिसका पेटेंट कराया जा सकता है और रॉयल्टी वसूली जा सकती है। नवदान्या की शुरुआत गैट के व्यवसाय संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकार समझौते के जवाब में की गई थी, जिसके बारे में बाद में मोनसेंटो के प्रतिनिधि ने कहा था कि इस समझौते का मसौदा तैयार करते वक्त इसके सर्वेसर्वा वह ही थे।

निगम ने इसमें एक समस्या को पारिभाषित किया कि किसान बीज को संजोकर रखते हैं। इसका हल उन्होंने यही सुझाया कि बीज के पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकार के जरिये किसानों द्वारा बीज संजोकर रखने को अवैध घोषित कर दिया जाए। इसका नतीजा यह हुआ कि आनुवांशिक रूप से तैयार मक्का, सोया, राई, कपास आदि की खेती का क्षेत्रफल नाटकीय ढंग से बढ़ गया।


पेटेंट कराए गए आनुवांशिक रूप से तैयार बीज विविधता को खत्म और विस्थापित करने के अलावा बीज संप्रभुता को भी कम कर रहे हैं। पूरी दुनिया में नया बीज कानून लाया जा रहा है, जिसमें बीजों का पंजीयन कराना अनिवार्य है। इस प्रकार छोटे किसान अपनी विविध प्रकार की फसलें नहीं उगा सकेंगे और जबरन उन्हें बड़े बीज निगमों पर निर्भर रहना होगा। ये बड़े निगम किसानों द्वारा विकसित मौसम के अनुकूल बीजों का भी पेटेंट करा रहे हैं। इस प्रकार किसानों के बीज और ज्ञान का उपयोग कर वे उन्हें लूट रहे हैं।


बीज एवं बीज संप्रभुता के लिए दूसरा खतरा बीजों का आनुवांशिक सम्मिश्रण (प्रदूषण) भी है। जैसे ही किसानों की बीज आपूर्ति रोक दी जाती है और वे पेटेंट किए हुए बीजों पर निर्भर हो जाते हैं, तो उसका नतीजा यही होता है कि वे कर्जदार हो जाते हैं। कपास उत्पादन के लिए मशहूर भारत बीटी कपास बीज के कारण न केवल कपास बीजों की विविधता गंवा बैठा, बल्कि यहां कपास बीज की संप्रभुता भी खत्म हो गई। 95 प्रतिशत कपास बीज मोनसेंटो कंपनी का बीटी कपास है। हर वर्ष किसानों को बीज खरीदने के लिए मजबूर करके उन्हें कर्ज के जाल में फंसाया जाता है। रॉयल्टी भुगतान नहीं कर पाने के चलते किसान आत्महत्या को मजबूर होते हैं।


यहां तक कि जैव विविधता और बीज संप्रभुता के क्षरण ने व्यापक कृषि एवं खाद्य संकट को जन्म दिया है। बीज निगम सरकार पर दबाव डालता है कि वह सार्वजनिक बीज आपूर्ति को खत्म करने और उसके बदले अविश्वसनीय पेटेंट किए हुए बीजों को खरीदने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करे, जिसे हर साल खरीदना होगा। यूरोप में 1994 में पौधों की प्रजातियों को बचाने के लिए एक प्रस्ताव लाया गया था, जिसमें किसानों को बीज कंपनियों को अनिवार्य स्वैच्छिक योगदान देने के लिए कहा गया। यह अपने-आप में विरोधाभासी है, क्योंकि जो अनिवार्य होगा, वह स्वैच्छिक नहीं हो सकता।

अनिवार्य स्वैच्छिक योगदान यानी रॉयल्टी को इस आधार पर उचित ठहराया जाता है कि बीज कंपनियों को सतत शोध एवं आनुवांशिक संसाधनों को बढ़ाने के लिए शुल्क दिया जाना चाहिए। मोनसेंटो ने जैव विविधता और किसान समुदायों से आनुवांशिक संसाधनों की नकल की थी। ऐसा उसने गेहूं के मामले में किया था, जिस पर नवदान्या ने ग्रीनपीस के साथ जैव नकल का मुकदमा लड़ा था।


पिछले दिनों फोर्ब्स पत्रिका में एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें बताया गया था कि किस तरह कृषि व्यवसाय अमेरिका का अकेला ऐसा क्षेत्र है, जिसमें उसका सकारात्मक व्यापार संतुलन है। अमेरिका इसीलिए जीएम फूड को बढ़ावा देता है, क्योंकि इसके जरिये उसे रॉयल्टी मिलती है। विश्व व्यापार संगठन में भारत के खिलाफ अमेरिका के पहले विवाद के दौरान भारत पर बीजों के पेटेंट की अनुमति के लिए दबाव डाला गया था।

इसलिए 2004 से भारत भी एक बीज कानून लाना चाह रहा है, जिसमें किसानों को अपने बीज का पंजीयन कराना होगा। अगर यह कानून लागू हो गया, तो किसान स्वदेसी बीजों का उपयोग न करने को मजबूर हो जाएंगे। इसके खिलाफ बीज सत्याग्रह तक किया जा चुका है और प्रधानमंत्री को हजारों लोगों के हस्ताक्षर वाला ज्ञापन भी सौंपा गया है।


भारत ने भी मोनसेंटो के साथ भारत-अमेरिकी ज्ञान पहल पर हस्ताक्षर किया है। राज्यों को भी मोनसेंटो के साथ समझौता करने के लिए दबाव डाला जा रहा है। इसका एक उदाहरण मोनसांटो-राजस्थान समझौता है, जिसके तहत मोनसेंटो को आनुवांशिक संसाधनों पर बौद्धिक संपदा अधिकार और बीजों पर शोध करने का अधिकार मिल जाएगा। यह समझना पड़ेगा कि अमेरिकी पर मोनसेंटो का दबाव और फिर इन दोनों का दुनिया भर की सरकारों पर संयुक्त दबाव बीज खाद्य एवं लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा है।

http://www.amarujala.com/Vichaar/Columnist/vandna-shiva/Seeds-hidden-in-the-food-sovereignty-43-410.html


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