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न्यूज क्लिपिंग्स् | बड़े कर सुधार की बड़ी चुनौतियां - डॉ भरत झुनझुनवाला

बड़े कर सुधार की बड़ी चुनौतियां - डॉ भरत झुनझुनवाला

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published Published on Jul 6, 2017   modified Modified on Jul 6, 2017
तीस जून की मध्यरात्रि से 'एक राष्ट्र, एक कर के रूप में जीएसटी लागू हो चुका है। जीएसटी के लाभ सर्वविदित है। अब एक्साइज ड्यूटी और सेल्स टैक्स को अलग-अलग अदा नहीं करना होगा। एक राज्य से दूसरे राज्य में माल की बिक्री आसान हो जाएगी। अदा किए गए सर्विस टैक्स की क्रेडिट ली जा सकेगी। आम आदमी के द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं पर जीएसटी की दरें न्यून रखी गई हैं जो कि सामाजिक न्याय के अनुरूप है। इन क्रांतिकारी कदमों को उठाने के लिए मोदी सरकार को बधाई। इन सुप्रभावों को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि जीएसटी लागू होने से भारत की रेटिंग में सुधार होने की संभावना है। रेटिंग मे सुधार होने से विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ता है। इससे भारत में विदेशी निवेश ज्यादा मात्रा मे आने की संभावना बनती है। लेकिन जीएसटी के कुछ प्रावधानों को देखते हुए जापानी रेटिंग एजेंसी नोमुरा ने कहा है कि 'जीएसटी से व्यापार छोटी कंपनियों से बड़ी कंपनियों की ओर स्थानांतरित होगा। वहीं एक अन्य रेटिंग एजेंसी इकरा ने कहा है कि जीएसटी से असंगठित क्षेत्र को संगठित क्षेत्र से प्रतिस्पर्द्धा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।

जीएसटी से कागजी कार्य बहुत बढ़ जाएगा। अब तक छोटे उद्योगों को तिमाही अथवा कुछ राज्यों मे केवल एक वार्षिक रिटर्न दाखिल करना होता था। लेकिन अब जीएसटी के तहत इन्हें हर माह एक रिटर्न दाखिल करना होगा। इस रिटर्न मे तीन बार सूचना भेजनी होगी इसलिए व्यवहारिक स्तर पर यह माह में तीन रिटर्न हो जाते हैं। इसके साथ-साथ उन्हें एक वार्षिक रिटर्न दाखिल करना होगा। इस तरह वर्ष में कुल 37 रिटर्न दाखिल करने होंगे। छोटे उद्योगों के लिए यह कार्य कठिन है। अक्सर ये खाते लिखते ही नहीं हैं। इन पर माह में तीन रिटर्न दाखिल करने का बोझ बढ़ जाएगा। छोटे उद्यमी पर इस बोझ को लादने के पीछे सरकार की सोच नंबर दो के धंधे को रोकने की है, जो कि सही भी है, परंतु छोटे उद्यमी पर इसका दुष्प्रभाव तो फिर भी पड़ेगा ही। इसीलिए नोमुरा और इकरा जैसी रेटिंग एजेंसियों ने कहा है कि जीएसटी से छोटे उद्यमी पर संकट बढ़ेगा। जीएसटी से अंतरराज्यीय व्यापार आसान हो जाएगा। अंतरराज्यीय व्यापार करने की क्षमता बड़े उद्योगों की अधिक होती है। जैसे वर्तमान में मुरादाबाद के पीतल के सामान के निर्माता को दूसरे राज्य में बने बर्तनों से स्वाभाविक संरक्षण उपलब्ध है। जमशेदपुर में बने स्टील के बर्तन उत्तर प्रदेश में आसानी से प्रवेश नहीं कर पाते हैं। इसी तरह जयपुर के कपड़ा बाजार में सूरत की साड़ी आसानी से प्रवेश नहीं कर पाती। जीएसटी के तहत अंतरराज्यीय व्यापार आसान हो जाने से जमशेदपुर और सूरत की बड़ी कंपनियों के लिए अपना माल पूरे देश मे भेजना आसान हो जाएगा। इससे उपभोक्ता को लाभ होगा। उसे मुरादाबाद और सांगानेर के माल तक सीमित नहीं रहना होगा। तथापि मुरादाबाद एवं सांगानेर के छोटे उद्यमियों को अब तक मिलने वाला संरक्षण समाप्त हो जाएगा। इनका धंधा कमजोर पड़ेगा। इसीलिए नोमुरा और इकरा ने कहा है कि जीएसटी से छोटे उद्यमी पर संकट बढ़ेगा।

 

जीएसटी व्यवस्था के तहत 20 लाख तक के व्यापारी के लिए पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। 50 लाख तक के व्यापारी कंपोजिशन स्कीम का लाभ उठा सकते है, जिसमें उन्हें 0.5 से 2.5 प्रतिशत तक का न्यून टैक्स अदा करना होगा, लेकिन माल खरीदने वाली बड़ी कंपनी को इनसे खरीदे गए माल पर टैक्स अदा करना होगा। इस टैक्स का बाद में बड़ी कंपनी क्रेडिट ले सकती है, इसलिए अतिरिक्त बोझ नही पड़ेगा। जैसे कि किसी फैक्ट्री के गेट पर चायवाला कंपनी के दफ्तर में चाय सप्लाई करता है, लेकिन उसे जीएसटी अदा नहीं करना होगा। हां, कंपनी को खरीदी गई चाय पर पहले जीएसटी देना होगा, फिर उसका क्रेडिट लेना होगा। बड़ी कंपनी आखिर इस झंझट में क्यों पड़ना चाहेगी? इसलिए भी नोमुरा और इकरा ने कहा है कि जीएसटी से छोटे उद्यमी पर संकट बढ़ेगा।

 

इस संकट के संकेत उपलब्ध होने लगे हैं। मार्बल स्टोन गृह उद्योग समिति के अध्यक्ष के अनुसार इस उद्योग को बीती मई से नए आर्डर नहीं मिल रहे हैं। स्टेशनरी सप्लाई करने वाले एक छोटे व्यापारी के अनुसार उसके क्रेताओं की मांग है कि वही जीएसटी अदा करे, अन्यथा वे दूसरे सप्लायर को खोजेंगे। एक रपट के अनुसार छोटे टाइल उत्पादकों का बाजार का हिस्सा 40 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है। छोटे उद्योगों का यह संकट पूरी अर्थव्यवस्था में फैल सकता है। देश के रोजगार में इनका हिस्सा 80 प्रतिशत है। इनके संकट का सीधा परिणाम होगा कि 80 प्रतिशत जनता की क्रयशक्ति घटेगी। बाजार में माल की मांग घटेगी। यदि ऐसा हुआ तो अर्थव्यवस्था की विकास दर में गिरावट आ सकती है। टैक्स व्यवस्था के सरलीकरण का जो निर्विवादित सुप्रभाव है, वह इस क्रयशक्ति के घटने से निरस्त हो जाएगा।

 

सरकार को जीएसटी की बधाई, लेकिन उसके सामने चुनौती भी है। सबसे बड़ी चुनौती टैक्स प्रशासन के चरित्र को सुधारने की है। हम देख चुके हैं कि किस प्रकार नोटबंदी के बाद कई जगहों पर बैंककर्मियों ने पुराने नोटों को गुपचुप ढंग से नए में बदलकर सरकार की नीति पर पानी फेरने का काम किया। इसी प्रकार की चुनौती जीएसटी के मामले में भी है। वर्तमान में बड़ी कंपनियों द्वारा नंबर दो की समानांतर उत्पादन व्यवस्था चलाई जाती है, जिसमें टैक्स कर्मियो का हिस्सा बंधा होता है। बड़ी कंपनियों के लिए इस व्यवस्था को चलाना और आसान हो जाएगा, क्योंकि अब उन्हें एक्साइज और सेल्स टैक्स के दो अधिकारियों के स्थान पर जीएसटी के एक अधिकारी से ही सेटिंग करनी होगी। दूसरी तरफ इन्हीं टैक्स कर्मियों को छोटे उद्यमियों से हफ्ता वसूल करने के नए अवसर उपलब्ध हो जाएंगे। यदि टैक्स कर्मियों ने बड़े उद्योगों से साठगांठ और छोटे से हफ्ता वसूली की तो परिणाम घातक होगे। इसमें कोई संशय नहीं है कि मोदी ने गुजरात में आम आदमी को सरकारी कर्मियों के आंतक से मुक्त कराया था। मोदी की सीधी नजर सरकारी कर्मियों के काम पर रहती थी। शिकायत मिलने पर त्वरित कार्रवाई होती थी। पर गुजरात और भारत में भेद है, जैसा कि नोटबंदी के दौरान दिखा भी।

 

सरकार के सामने यह भी चुनौती है कि जीएसटी को छोटे उद्यमी के लिए सरल बनाए और नंबर दो के बड़े उद्यमियों पर सख्ती करे। सरकार को छोटे कारोबारियों को पंजीकरण एवं रिटर्न भरने से मुक्त करना चाहिए। इन्हें जीएसटी पेड माल की खरीद पर रिफंड मिलना चाहिए, जबकि उनके द्वारा बेचा गया माल जीएसटी से मुक्त होना चाहिए। साथ-साथ टैक्स कर्मियों को सख्त निर्देश देने चाहिए कि बड़ी मछली को पकड़ें, न कि छोटी मछली से हफ्ता वसूल करें।

 


http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-huge-challenges-of-huge-tax-reform-1228638


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