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न्यूज क्लिपिंग्स् | भोपाल जैसे मामले पर लगाम को राष्ट्रीय नीति

भोपाल जैसे मामले पर लगाम को राष्ट्रीय नीति

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published Published on Jun 23, 2010   modified Modified on Jun 23, 2010

नई दिल्ली। भोपाल गैस कांड जैसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने बुधवार को राष्ट्रीय वाद नीति जारी की। विधि मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा कि इस नीति में प्रस्तावित निगरानी और समीक्षा का तंत्र है जो भोपाल गैस कांड की तरह के महत्वपूर्ण मामलों में 'विलंब या अनेदखी' को रोकेगा। यह नीति आगामी एक जुलाई से लागू होगी।

मोइली ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि 24 और 25 अक्टूबर 2009 को 'मुकद्मों में देरी और लंबित मामलों को कम करने की दिशा में न्यायपालिका को मजबूत बनाने के लिए आयोजित राष्ट्रीय परिचर्चा' में विधि एवं न्याय मंत्रालय ने एक प्रस्ताव पेश किया था जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था। यह नीति उसे पूरा करने की दिशा में उठाया गया कदम है।

मोइली ने कहा कि इस नीति का लक्ष्य सरकार को सशक्त और जिम्मेदार बनाना है। इस नीति के तहत मोइली ने कहा कि सरकार अदालती मामलों को श्रेणीबद्ध और समूहबद्ध करेगी ताकि सरकार की ओर से मुकद्मा लड़ रहे लोग उसकी प्राथमिकता निर्धारित कर सकें।

उन्होंने कहा कि अगर इसे लागू किया जाता है तो आखिरकार नियमित समीक्षा, प्राथमिकता निर्धारित किए जाने और श्रेणीबद्ध करके हम सबकुछ को टै्रक कर सकेंगे। हो सकता है कि भोपाल की तरह की घटना की इस देश में पुनरावृत्ति न हो। यही इस नीति का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि एक संवेदनशील सरकार इन सभी मामलों का प्रतिनिधित्व करेगी, ताकि किसी भी चरण में कोई विलंब या अनदेखी न हो, जैसा भोपाल गैस कांड में हुआ। मोइली ने कहा कि इन व्यवस्थाओं को इसलिए लागू किया जा रहा है ताकि भोपाल में हुआ विलंब मानक नहीं बन जाए, क्योंकि 'न्याय में विलंब न्याय को दफनाने के समान है।'

मंत्रियों के समूह द्वारा भोपाल गैस मामले में उपचारात्मक याचिका [क्यूरेटिव पेटिशन] दायर करने पर विचार करने के बारे में पूछे जाने पर अटार्नी जनरल जी ई वाहनवती ने कहा कि विधि मंत्री ने सिर्फ जीओएम के समक्ष सुझाव रखा था और यह 'सोची-समझी राय' नहीं थी।

वाहनवती ने कहा कि जीओएम की रिपोर्ट पहले मंत्रिमंडल के पास जाएगी। उसे ही सुझाव को मंजूर करना है। उन्होंने कहा कि भोपाल गैस मामले में 1996 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला [प्रधान न्यायधीश ए एम अहमदी द्वारा दिया गया फैसला] कानून के हिसाब से गलत था।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर भोपाल मामले में आरोपियों के खिलाफ आरोप को गैर इरादतन हत्या से कम करके लापरवाही का बना दिया था। उन्होंने कहा कि मैं फैसले की आलोचना नहीं कर रहा हूं। मैं आपसे इस बात को कहने के लिए हकदार हूं कि यह गलत है। मैं कानून के हिसाब से इसे गलत बता रहा हूं। मेरा मानना है कि फैसले में काफी विरोधाभास है और ऐसी काफी सामग्री है जो फैसले के बाद सामने आई है।

वाहनवती ने उन साक्ष्यों के उदाहरण दिए जिसमें दर्शाया गया है कि लोग संयंत्र में गड़बड़ियों को जानते थे और किफायत बरतने के चक्कर में उन्होंने कमियों में सुधार नहीं किया। उन्होंने कहा कि उपचारात्क याचिका की व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में गड़बड़ियों में सुधार करने और उसके पूर्व के आदेशों से हुए अन्याय को दूर करने के लिए विकसित किया है।

गृह मंत्रालय की ओर से राष्ट्रपति को अफजल गुरु की दया याचिका को खारिज करने की अनुशंसा के बारे में पूछे जाने पर मोइली ने कहा कि वह इस संबंध में गृह मंत्रालय की राय को मानेंगे।

देश में परिवार की झूठी शान के लिए हत्या की बढ़ती घटनाओं के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय ने इस संबंध में एक विधेयक का मसौदा पहले ही तैयार कर लिया है और इसकी जांच की गई है और यह इस तरह के जघन्य अपराधों को खत्म करने के लिए कठोर कानून होगा।

मोइली ने कहा कि नई वाद नीति के तहत सरकार बाध्यकारी वादी नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि मैं जोर दूंगा कि राज्य सरकारें भी अपनी वाद नीति बनाएं। उन्होंने कहा कि मामलों को आखिरी फैसले के लिए अदालतों पर छोड़ दिए जाने की नीति को त्यागा जाना है। अदालत को फैसला करने दें के सहज रवैए को निश्चित तौर पर छोड़ा जाना चाहिए।

नीति के कार्यांवयन की निगरानी और नीति में निर्धारित सिद्धांतों का अनुकरण करने के लिए सरकारी विभागों की जवाबदेही तय करने के लिए सरकार अधिकार संपन्न समिति गठित करेगी, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय स्तर पर अटार्नी जनरल करेंगे।

मोइली ने कहा कि मामले के शुरुआती चरण को छोड़कर सरकारी वकील स्थगन की मांग करने से बचेंगे। मुकदमे के शुरुआती चरण में याचिकाओं पर सरकारी विभागों के जवाब की आवश्यकता होती है। नीति के तहत सरकार अंतरिम और एकतरफा आदेशों के खिलाफ अपील करने से परहेज नहीं करेगी, लेकिन पहले आदेशों को निष्प्रभावी बनाने की कोशिश करेगी।

न्यायाधिकरण के आदेशों के खिलाफ अपवाद स्वरूप अपील की जाएगी और यह नियमित मामला नहीं होगा। न्यायाधिकरणों का गठन अदालतों के बोझ को कम करने के उद्देश्य से किया गया था। निजी शिकायतों यथा सेवा से जुड़े मामलों, पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ जैसे मामलों में फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जाएगी।

मोइली ने कहा कि सरकार इस बात को भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेगी कि उन मामलों में अपील दायर करने में देरी न हो जहां भारी राजस्व दांव पर हो तथा इस तरह के मामलों में समय पर अपील दायर करने के लिए विभाग प्रमुख जिम्मेदार होंगे। उन्होंने कहा कि अदालतों के बाहर विवादों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करने के लिए सरकार मध्यस्थता और वैकल्पिक विवाद समाधान उपायों को प्रोत्साहन देगी।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/politics/5_2_6514426.html


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