Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | मजदूरों के संघर्ष ने बोए उम्मीद के बीज-- बाबा मायाराम

मजदूरों के संघर्ष ने बोए उम्मीद के बीज-- बाबा मायाराम

Share this article Share this article
published Published on Apr 11, 2018   modified Modified on Apr 11, 2018
पिछले कुछ समय से भ्रष्टाचार के छोटे-बड़े कई घोटाले सामने आए हैं। यह एक बड़ी बीमारी की तरह फैल गया है। वैसे तो हर तरह का भ्रष्टाचार समाज व देश के लिए नुकसानदेह है पर गरीबों पर इसका हमला उनसे रोजी-रोटी छीन लेता है। व्यक्तिगत रूप से वे इस भ्रष्टाचार को रोकने में असहाय महसूस करते थे पर सामूहिक रूप से उसे रोकने में कामयाब हो गए। इसका अच्छा उदाहरण राजस्थान के मजदूर किसान शक्ति संगठन है।

हाल ही में मुझे एक कार्यक्रम के दौरान मजदूर किसान शक्ति संगठन( एम.के.एस.एस.) के बारे में जानने का मौका मिला जब इसके दो संस्थापक सदस्य निखिल डे, शंकर सिंह और मुकेश से मिला। शंकर सिंह और मुकेश ने संगठन की लम्बी कहानी सुनाई।

वर्ष 1987-88 की बात है। अरूणा राय, निखिल डे और शंकर सिंह गांव में लोगों के साथ जुड़कर सामाजिक काम करना चाह रहे थे। अरूणा राय, पहले आई. ए. एस. अधिकारी थीं जिन्होंने यह ऊंची नौकरी छोड़ दी थी। निखिल डे, संयुक्त राज्य अमेरिका से लौटे एक आदर्शवादी युवा थे। शंकर सिंह व उनकी पत्नी अंशी गांव से निकले दम्पति थे। वे अजमेर जिले के लोटियाना गांव के हैं। इन सबने अपने सामाजिक काम की शुरूआत राजस्थान के राजसमंद जिले के एक छोटे से गांव देवडूंगरी से की।

राजसमंद, राजस्थान के मध्य में स्थित है। इसी जिले के देवडूंगरी गांव में कच्चे घर में अपना आवास और संगठन का कार्यालय बनाया। यह तय कि यहीं रहेंग, लोगों के बीच काम करेंगे, उनसे ही सीखेंगे और उनके साथ ही आगे बढ़ेंगे। और खुद भी सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी की सीमा अपने लिए रखेंगे और इतना ही खर्च करेंगे।

सबसे पहले गांव वालों ने कुछ संदेह किया और घर में झांक कर देखा कि ये कैसे रहते हैं। कहां से पैसा आता है और कितना आता है। जब उन्हें पता चला कि सभी कार्यकर्ता साधारण व बहुत मामूली जरूरतों के साथ रहते हैं। और वे भी दूसरे गांव वालों की तरह न्यूनतम मजदूरी जितनी राशि से अपना खर्च चलाते हैं, तब उन्हें अपनेपन का भरोसा हुआ।

संगठन के पास शुरूआत में न्यूनतम मजदूरी कानून के उल्लंघन की शिकायतें बहुत आईं। ग्रामीण रोजगार कार्य और अकाल राहत कार्य में न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी मिलती थी। होता यह था कि जो कम काम करे उसे भी मजदूरी उतनी मिलती थी जितनी काम करने वाले को मिलती थी। सुबह से शाम तक उपस्थिति जरूरी होती थी, चाहे काम पहले ही खत्म हो जाए। मजदूरी भी तय दर से कम मिलती थी और वह भी देर से। यहीं से न्यूनतम मजदूरी का संघर्ष शुरू हुआ।

यह मुहिम चलाई गई कि जो ग्रामीण रोजगार के काम हो रहे हैं जनता के समक्ष पूरी जानकारी रखी जाए। मस्टर रोल दिखाए जाएं। फोटो कापी व हिसाब-किताब का पूरा ब्यौरा ग्रामीणों के सामने रखा जाए। धरना प्रदर्शन हुए। भूख हड़ताल हुई।

शुरूआत में तो जानकारी देने में आना-कानी की गई। फिर यह कहा गया कि फोटो कापी देने व हिसाब-किताब को जनता को दिखाने का कोई कानून नहीं है। यहीं से सूचना के अधिकार की शुरूआत हुई। और लम्बी लड़ाई के बाद पहले राजस्थान में वर्ष 2000 में और फिर 2005 में देश में सूचना का अधिकार का कानून बना। यह कानून एक बड़ी सफलता थी।

मजदूर किसान शक्ति संगठन न केवल सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार की पोल खोल करता रहा है बल्कि वह कई स्थानों पर भ्रष्टाचार करने वालों से पैसा वापस भी करवाता रहा है। जन सुनवाई, भ्रष्टाचार को उजागर करने का असरदार साबित हो रही हैं। जो भ्रष्टाचार व्यक्तिगत रूप से रोकने में कठिन लगता है, वह सामूहिक रूप से करने में आसान हो जाता है।

लेकिन फिर भी उतनी पर्याप्त नहीं थी कि लोग अपनी गुजर ठीक से कर सकें। महंगाई की बढ़ती मार से लोगों को राहत दिलाने के लिए मजदूर किसान किराना स्टोर खोला गया। मार्जिन कम रख कर अच्छा सामान उपलब्ध कराना ही इसका उद्देश्य है। यह दुकान बहुत अच्छे से चल रही हैं और उसे चलाने वाले संगठन के कार्यकर्ता भी न्यूनतम मजदूरी जितना मानदेय लेते हैं।

मजदूर किसान शक्ति संगठन के संघर्ष के दौरान कई गीत व कहानियां बनी हैं। कठपुतली नृत्य़ भी बहुत लोकप्रिय माध्यम बन गया है। इसके माध्यम से लोगों को जोड़ने व उन तक अपना संदेश पहुंचाने में बहुत मदद मिलती है। ये गीत भी लोगों भी बनाए हैं।

इस सबका असर यह हुआ कि बहुत ही कम समय में आम मजदूर- किसानों के जीवन में बड़ा बदलाव आया। अन्याय- अत्याचार के खिलाफ लोगों में चेतना जगी। गांवों का जीवन जो आम तौर कठिनाईयों से भरा होता है, उससे कुछ राहत मिली। भ्रष्टाचार पर लगाम लगी। उचित दामों पर लोगों को अच्छा सामान मिलने लगा।

कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि जब जन संगठन व जन आंदोलन कमजोर हो रहे हैं, संसाधनों की कमी रहती हैं, बाहरी आर्थिक स्रोतों पर निर्भर होते हैं, वे मजदूर किसान शक्ति संगठन के माडल से सीख सकते हैं। किस तरह इस संगठन ने बहुत ही कम स्थानीय संसाधनों से अपने आप को खड़ा किया है। यह आदर्श हो सकता है। निजी जिंदगी और सार्वजनिक जीवन एक सा है।

दूसरी बात सीखने लायक यह है कि संगठन ने स्थानीय मुद्दों पर संघर्ष करते हुए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत करवाने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। सूचना का अधिकार और इसी तरह रोजगार गारंटी योजना इसके उदाहरण हैं। यानी स्थानीय मुद्दों पर काम करते हुए उसके महत्व को बड़े परिपेक्ष्य में देखना। तीसरी बात जो महत्वपूर्ण है लोकतंत्र में जनता की आवाज को न केवल केन्द्र में लाना जो हाशिये पर ढकेली जा रही है बल्कि उसे सशक्त और जोरदार तरीके से उठाना।



Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close