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न्यूज क्लिपिंग्स् | मजदूरों को पता नहीं चला और भुगतान हो गया

मजदूरों को पता नहीं चला और भुगतान हो गया

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published Published on Dec 23, 2010   modified Modified on Dec 23, 2010

जागरण ब्यूरो, भोपाल। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में गड़बडी थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं। जबलपुर के बाद अब दमोह में फर्जी भुगतान का मामले सामने आए हैं।

मनरेगा के तहत वन विभाग बिगड़े वनों के तहत कराए गए काम की मजदूरी मजदूरों को नहीं मिली है। उनके खाते तो खोल दिए गए लेकिन उसमें से भी जाली हस्ताक्षरों से उनकी मजदूरी निकाल ली गई। खास बात तो यह है कि मजदूरों को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि कब उनके खाते खुल गए और राशि निकाल ली गई। लेकिन मामले का खुलासा तब हुआ जब एक मजदूर ने जबरन अपनी पासबुक वापस ले ली और उसे देखा। मामला चंदना ग्राम पंचायत का है। वन परिक्षेत्र तारादेही के चंदना पंचायत के ग्राम खारी देवरी में बिगड़े वनों के सुधार के लिए लगभग 14 लाख 88 हजार रुपए मनरेगा से स्वीकृत हुए थे। 100 हैक्टेयर के भूमि में 13 हजार 6 सौ नए पौधरोपण होना थे। जिनकी पाच वर्ष तक देखभाल की जाना थी। लेकिन अधिकतर पौधे कागजों में ही लगा दिए गए एवं उसी वर्ष लगभग 10 लाख 35 हजार रुपए का खर्च बताया दिया गया। यह खर्च मजदूरी, पत्थरों को एकत्र करने, खकरी बनाने, सीपीडब्ल्यू, स्टेशनरी खरीदने, मिट्टी ढोने में दर्शाया गया है। एक बिल में तो 25 ट्रॉली गोबर की खाद खरीदने व ढोने पर करीब 30 हजार रुपए खर्च करना बताया गया है। जबकि मजदूरों ने बताया कि मात्र दो ट्रॉली खाद ही लिया था। एक वर्ष की अवधि में जो पौधे मर जाते हैं उनके स्थान पर नए पौधे 10 प्रतिशत के मान से 1360 पौधा लगाने के नाम पर वर्ष 2009-2010 में लगभग 1 लाख 76 हजार रुपए एवं 2010-2011 में 1 लाख 7 सौ रुपए खर्च करना बताया है। जबकि कार्य प्रारंभ के समय ही कुछ हजार पौधे लगाए गए थे। उसके बाद दोबारा पौधे लगाए ही नहीं गए। पौधों की देखरेख के लिए दो चौकीदार भी लगाए गए थे। न वहा पर वृक्ष हैं ओर न ही देखरेख करने वाले चौकीदार। जिन मजदूरों ने पौधे लगाए थे उन्हें शासन द्वारा निर्धारित 91 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी दी जानी थी। लेकिन मजदूरी के नाम पर गिने-चुने मजदूरों को 50 रुपए के हिसाब से ही भुगतान किया गया है। जबकि वर्ष 2008-2009 में अलग-अलग दिनाकों में 14 मस्टरों पर 510 मजदूरों के नाम दर्ज हैं। जिसमें मजदूरों को लगभग 3 लाख 50 हजार का भुगतान किया गया है। वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा ही सेवा सहकारी समिति प्रबंधन से संाठ-गंाठ कर समिति से रुपए निकाल कर मजदूरों का भुगतान किया गया है। जब एक मजदूर की पासबुक देखी तो उसमें से मजदूरी की राशि आहरित थी। लेकिन उसके जॅाब कार्ड में काम करने का उल्लेख नहीं था। चंदना के मजदूर प्रहलाद, रोहन, हक्कू, शारदा, सीताराम आदि ने बताया कि वन विभाग के अधिकारी सेवा सहकारी समिति में खाते खुलवाने के लिए उनकी फोटो उतरवा कर ले गए थे। उन्हीं ने तारादेही बैंक में खाते खुलवाए थे। लेकिन मजदूरों को नहीं बुलाया था। उन्होंने बताया कि आज भी उनकी पासबुक एवं जॉब कार्ड वन विभाग के अधिकारियों के पास ही जमा हैं। कई बार मागने पर भी नहीं दिए जा रहे हैं। ग्राम के सिर्फ तीन मजदूरों को ही उनकी पास बुक जबर्दस्ती करने पर मिली हैं।

वन समिति के अध्यक्ष कोदू सिंह ने बताया है कि बताया कि जब-जब उन्होंने पौधों की गिनती करना चाही तो वन विभाग के अधिकारियों ने मना कर दिया। वन विभाग के एसडीओ आरके श्रीवास्तव ने बताया कि मजदूरों के खाते खुलवाना एवं जॉब कार्ड बनाना पंचायत का काम है। बैंक समिति का काम है कि जिसका पैसा है वो उसी को दे और अगर किसी और का भुगतान करे तो इसमें कोई क्या कर सकता है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_7071436.html


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